एक चाँद
बिना दाग का
कब से मेरी
सोच में यूँ ही
पता नहीं क्यों
चला आता है
मुझ से
किसी से
इसके बारे में
कुछ भी नहीं
कहा जाता है
चाँद का बिना
किसी दाग के
होना
क्या एक
क्या एक
अजूबा सा नहीं
हो जाता है
वैसे भी
अगर
चाँद की बातें
हो रही हों
तो दाग की
बात करना
किसको
पसंद
पसंद
आता है
हर कोई
देखने
आता है
तो बस
चाँद को
तो बस
चाँद को
देखने
आता है
आता है
आज तक
किसी ने भी
कहा क्या
वो एक दाग को
देखने के लिये
किसी चाँद को
देखने आता है
आईने के
सामने खड़ा
होकर देखने
की कोशिश
कर भी लो
तब भी
कर भी लो
तब भी
हर किसी को
कोई एक दाग
कहीं ना कहीं
नजर आता है
अब ये
किस्मत की
बात ही होती है
कोई चाँद की
आड़ लेकर
दाग छुपा
ले जाता है
दाग छुपा
ले जाता है
किस्मत
का मारा
हो कोई
बेचारा चाँद
बेचारा चाँद
अपने दाग
को छुपाने
में ही मारा
जाता है
उस समय
मेरी समझ
में कुछ नहीं
आता है
जब
एक चाँद
बिना दाग का
मेरी सोच में
यूँ ही चला
आता है ।