कुछ देर के लिये
याद आया तिरंगा
उससे अलग कहीं
दिखी तस्वीर
संत की
माने बदल गये
यहाँ तक आते आते
उसके भी इसके भी
एक
डिजिटल हो गया
दूसरे की याद भी
नहीं बची कहीं
दिखा थोड़ा सा बाकी
अमावस्या के चाँद सा
समय के साथ साथ
कुछ खो गया
सोच सोच में पड़ी
कुछ डरी डरी सी
कहीं किसी को
अंदाज
आ गया हो
सोचने का
श्राद्ध पर्व
पर जन्मदिन
के दिन का
दिन भी सूखा
दिन हो गया
याद आया कुछ
सुना सुनाया
कुछ कहानियाँ
तब की सच्ची
अब की झूठी
बापू
कुछ नहीं कहना
जरूरतें बदल गई
हमारी वहाँ से
यहाँ तक आते आते
तेरे जमाने
का सच
अब झूठ
और झूठ
उस समय का
इस समय का
सबसे बड़ा सच भी
निर्धारित हो गया
जन्मदिन
मुबारक हो
फिर भी बहुत बहुत
बापू
दो अक्टूबर
का दिन अभी तो
तेरा ही चल रहा है
भरोसा नहीं है
कब कह जाये कोई
अब और आज
से ही इस जमाने के
किसी नौटंकी बाज की
नौटंकी का दिन हो गया ।
चित्र साभार: caricaturez.blogspot.com
याद आया तिरंगा
उससे अलग कहीं
दिखी तस्वीर
संत की
माने बदल गये
यहाँ तक आते आते
उसके भी इसके भी
एक
डिजिटल हो गया
दूसरे की याद भी
नहीं बची कहीं
दिखा थोड़ा सा बाकी
अमावस्या के चाँद सा
समय के साथ साथ
कुछ खो गया
सोच सोच में पड़ी
कुछ डरी डरी सी
कहीं किसी को
अंदाज
आ गया हो
सोचने का
श्राद्ध पर्व
पर जन्मदिन
के दिन का
दिन भी सूखा
दिन हो गया
याद आया कुछ
सुना सुनाया
कुछ कहानियाँ
तब की सच्ची
अब की झूठी
बापू
कुछ नहीं कहना
जरूरतें बदल गई
हमारी वहाँ से
यहाँ तक आते आते
तेरे जमाने
का सच
अब झूठ
और झूठ
उस समय का
इस समय का
सबसे बड़ा सच भी
निर्धारित हो गया
जन्मदिन
मुबारक हो
फिर भी बहुत बहुत
बापू
दो अक्टूबर
का दिन अभी तो
तेरा ही चल रहा है
भरोसा नहीं है
कब कह जाये कोई
अब और आज
से ही इस जमाने के
किसी नौटंकी बाज की
नौटंकी का दिन हो गया ।
चित्र साभार: caricaturez.blogspot.com