लिखना
जरूरी है
तरन्नुम
में मगर
ठगे
जाने का
सारा
बही
खाता हिसाब
कौन
जानता है
सुर मिले
और
बन पड़े
गीत
एक
धुप्पल में
कभी
यही बकवास
आज ही
के दिन
हर साल
ठुमुकता
चला आता है
पुराने
कुछ
सूखे हुऐ
घाव कुरेदने
फिर
एक बार
ये अहसास
भूला
जाता है
ताजिंदगी
ठगना खुदा तक को
खुद का
बुलंद कर खुदी
कहाँ
छुपता है
जब
निकल पड़ती है
किसी
बेशरम की कलम
खोदकर
किसी
पुरानी कब्र से
खुद
अपनी भड़ास
निकलते हैं
कपड़े
झक सफेद
कलफ इस्त्री किये
किसी
खास एक दिन
पूरे साल में
धराशायी
करते हुऐ
पिछले
कई सालों के
कीर्तिमान
ठगी के पुराने
खुद के खुद ही
बेहिसाब
फिर भी
जरूरी है
‘उलूक’
बिता लेना
शुभ दिन
के
तीन पहर
किसी तरह
यूँ ही
बधाईयाँ
मंगलकामनाओं
के
बण्डल बाँधकर
चौथे पहर
लिख लेना
फिर
सारा
सब कुछ
ठगी
उठाईगिरी
या
और भी
कुछ
अनाप शनाप।
चित्र साभार: https://biteable.com