उलूक टाइम्स: दास्तान
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शनिवार, 5 अक्तूबर 2019

फितरत छिपाये अपनी लड़ाके सिपाही एक रणछोड़ की झूठी दास्तान सुन रहे हैं


पता ही नहीं है कुछ भी अन्जान बन रहे हैं 
लगता भी नहीं है
कहते हैं
इन्सान बन रहे हैं

खूबसूरत बन रहे हैं कफन
बेफिक्र होकर
जिंदगी के साथ साथ बुन रहे हैं 

आरामदायक भी बनें सोच कर
सफेद रूई को एक
लगातार धुन रहे हैं

कब तक है रहना खबर ही नहीं है
बेखबर होकर
एक सदी का सामान चुन रहे हैं 

कहानियाँ हैं बिखरी
कुछ मुरझाई हुई सी कुछ दुल्हन सी निखरी 

कबाड़ में बैठे हुऐ कबाड़ी
आँख मूँदे हुऐ
जैसे कुछ इत्मीनान गिन रहे हैं 

फितरत छिपाये अपनी
लड़ाके सिपाही
एक रणछोड़ की
झूठी दास्तान सुन रहे हैं

‘उलूक’
रोने के लिये कुछ नहीं है
हँसने के फायदे कहीं हैं
सोच से अपनी लोग खुद
बिना आग बिना चूल्हे
भुन रहे हैं ।

चित्र साभार: https://owips.com https://twitter.com