पता ही नहीं है कुछ भी अन्जान बन रहे हैं
लगता भी नहीं है
कहते हैं
इन्सान बन रहे हैं
कहते हैं
इन्सान बन रहे हैं
खूबसूरत बन रहे हैं कफन
बेफिक्र होकर
जिंदगी के साथ साथ बुन रहे हैं
बेफिक्र होकर
जिंदगी के साथ साथ बुन रहे हैं
आरामदायक भी बनें सोच कर
सफेद रूई को एक
लगातार धुन रहे हैं
कब तक है रहना खबर ही नहीं है
बेखबर होकर
एक सदी का सामान चुन रहे हैं
कहानियाँ हैं बिखरी
कुछ मुरझाई हुई सी कुछ दुल्हन सी निखरी
कबाड़ में बैठे हुऐ कबाड़ी
आँख मूँदे हुऐ
जैसे कुछ इत्मीनान गिन रहे हैं
फितरत छिपाये अपनी
लड़ाके सिपाही
एक रणछोड़ की
झूठी दास्तान सुन रहे हैं
‘उलूक’
रोने के लिये कुछ नहीं है
हँसने के फायदे कहीं हैं
सोच से अपनी लोग खुद
बिना आग बिना चूल्हे
भुन रहे हैं ।
चित्र साभार: https://owips.com https://twitter.com