दृश्य एक:
बड़े बड़े हैं बहुत बड़े हैं
बड़प्पन दिखा रहे हैं
आँख मूँदे बैठे हैं
कान में सरसों का
गुनगुना तेल डलवाकर
भजन गुनगुना रहे हैं
कुछ
उसी तरह का दृश्य बन रहा है
जैसे
अफ्रीका के घने जंगल के
खूबसूरत बड़े नाखून और
तीखे दाँतों वाले बब्बर शेर
परिवार और मित्रों
के साथ बैठे हुऐ
घास फूस की दावत उड़ा रहे हैं
दूसरे दृश्य में :
तमाशा दिखाने वाले
शेरों के ही अगल बगल
एक टाँग पर खड़े हुए
कुछ बगुले दिखा रहे हैं
कुछ बगुले दिखा रहे हैं
सफेद हैं झकाझक हैं
अपनी दुकानें
सरकारी दुकान के अन्दर के
किसी कोने में सजा रहे हैं
बेचने को बहुत कुछ है
अलग बात है शेरों का है
खरीदने वालों को पता है
भीड़ उमड़ रही है
खालें बिक रही हैं
बोली बढ़ा चढ़ा कर लगा रहे हैं
बगुलों की गरम हो रही जेबें
किसी को नजर नहीं आ रही हैं
बगुले
मछलियों के बच्चों को
शेरों के दाँतों की फोटो बेच कर
पेड़ों में चढ़ने के तरीके सिखा रहे हैं
जय हो जंगल की
जय हो शेरों की
जय हो भक्तों की
जय हो सरकार
और
सरकारी आदेशों की
जय हो उन सभी की
जो इन सब की बत्ती बनाने वालों
को
देख समझ कर
देख समझ कर
खुद अपने अपने
हनुमानों की चालीसा गा रहे हैं
निचोड़:
परेशान नहीं होना है
आँख और कान वालो
शेखचिल्ली उलूक
और
उसके मुँगेरीलाल के हसीन
सपने
कौन सा पाठ्यक्रम में जुड़ने
जा रहे हैं
जंगल अपनी जगह
शेर अपनी जगह
बगुले अपनी जगह
लगे हुऐ अपनी अपनी जगह
जगह ही तो बना रहे हैं ।
सार:
श्श्श्श शोर नहीं
मास्साब
आँख कान मुँह नाक बंद करके
शिष्यों को आजकल
इंद्रियाँ पढ़ा रहे हैं ।
चित्र साभार: country.ngmnexpo.com