आँखों में इतनी धुंध छायी है कि बस
आइने में अपना अक्स नज़र नहीं आता ।
आने वाले पल के मंज़र में खोये हो तुम
मुझे तो बीता कल नज़र नहीं आता ।
रात की बात करते हो सोच लिया करना
मुझे दिन के सूरज में नज़र नहीं आता ।
तेरी बैचेनी को महसूस तो किया है मैने
चाहता भी हूं पर देखा ही नहीं जाता ।
भटकने लगे हो अब कहते कहते भी तुम
कहना आता है तुमसे कहा ही नहीं जाता ।
अपनी रोनी सूरत से ऊब चला हूं अब
तुम खिलखिलाते रहो मुझे रोना नहीं आता ।
कैसे कह दूं तमन्ना है अब सिर्फ मर जाने की
कुछ सुहानी यादें जिनको छोडा़ ही नहीं जाता ।
अपने वीरान शहर की बात कुछ करने की नहीं अब
बसने तेरे शहर आ भी जाता पर अब नहीं आता ।
बस इंतज़ार है अब तेरे इस शहर से गुज़रने का
तब ना कहना तुम्हें तो ठहरना ही नहीं आता ।