उलूक टाइम्स: नवीन चौरे
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सोमवार, 31 जनवरी 2022

"नवीन चौरे" की उस कविता को सलाम जिसे सदी की कविता कहना जरूरी हो जाता है


कुछ भी
खौलने तक
नहीं पहुँच पाता है
गरम होना
बहुत बड़ी बात है

ठंडे रहने के फायदे में 
जब
इंसान होने से बचने के रास्ते
उँगलियों में कोई गिनाता है

गिनतियाँ सिखायी जाती हैं अब भी
भीड़ गिनना गुनाह है साथ में बताया जाता है

कई सदियों में
कोई
ऐसा भी निकल कर आता है
आँखें बन्द कर आँखों देखी कविताएं बोने वालों के लिये
मुँह छुपाने का आईना हो जाता है

आश्चर्य होता है

ऐसी
अदभुद कविता
जिसमें गणित विज्ञान से लेकर
तकनीक तक का असर
शब्द दर शब्द
बुना हुआ नजर आता है

भीड़ के बीच में भीड़ हो चुकी 
आत्मा से लेकर
परमात्मा होने के अहसास से
फिर कहाँ बचा जाता है

शब्द नहीं हैं पास में 
“नवीन चौरे” की कविता के लिये

शायद
इस सदी की 
सबसे उबलती
खौलती कविता से सामना हो चुका है
नासमझ होने के बावजूद
कुछ समझ में आ गया का अहसास हो जाता है

एक बकवास से
बन्द किया गया
पिछले साल के अंतिम दिन का बहीखाता

नये साल के पहले महीने की अंतिम तारीख को
एक कटी उँगली और उस पर लगे खून के
बहाने ही सही
कुछ हिलौरे मार जाता है

‘उलूक’
स्वीकार करता है
उसके खुद के
उसी भीड़ का एक हिस्सा होने का

आँखों को बन्द कर
आँखों देखे हाल सुनाती
अंधी कविताओं के समुंदर के बीच में

सदियों में
एक तूफान उबलते अशआरों का
जब इस तरह का कोई
दिल खोल के सामने से ले आता है
सलाम "नवीन चौरे" जुबाँ से निकल ही जाता है।

साभार: यू ट्यूब