किसी
बेवकूफ
ने सभी
पदों पर
नोटा पर
निशान
लगाया था
तुरन्त
होशियार
के
होशियारों
ने उसपर
प्रश्नचिन्ह
लगाया था
सोये हुऐ
प्रशासन
की नींद
जारी
रही थी
काम
निपटाये
जा रहे थे
लिंगदोह
कुछ देर
के लिये
अखबार
में दिखा था
और
प्रशासन
की फूँक
भी खबर
के साथ
हवा में
उड़ती हुई
थोड़ी देर
के लिये
चेतावनियाँ
लिये
उड़ी थी
अखबार में
खबर किसने
चलाई थी
और क्यों ये
अलग प्रश्न था
अलग बात थी
गुण्डाराज
के गुण्डों
पर किसे
कुछ
कहना था
और
किस की
औकात थी
पर पिछले
दो महीने
के ताण्डवों
से परेशान
कुछ दूर
दराज के
गावों से
शहर में
आकर पढ़
रहे इन्सान
सुखाते
जा रहे
कुछ जान
कुछ बेजान
कुछ परेशान
किसी ने
नहीं देखे थे
दिखते
भी कैसे
नशे में
चूर भीड़
बौराई
हुई थी
और
प्रशासन
शाशन के
आशीर्वादों
से
लबालब
जैसे
मिट्टी नई
किसी
खेत की
भुरभुराई
हुई थी
जो
भी था
चुनाव
होना था
हुआ
मतपत्र
गिने
जाने थे
किसी ना
किसी ने
गिनना था
एक मत पत्र
बीच में
अकेला दिखा
जिसमें हर
पद पर नोटा
था दिया गया
किसी ना
किसी
ने कुछ
तो कहना
ही था
बेवकूफ
वोट देने
ही क्यों
आया था
सारे पदों
पर
नोटा पर
मुहर लगा
अपनी
बेवकूफी
बता कर
आखिर
उसने क्या
पाया था
‘उलूक’
मन ही मन
मुस्कुराया था
हजारों में
एक ही
सही पर
था कहीं
जो अपने
गुस्से का
इजहार
कर
पाया था
असली
मतदान
कर उस
अकेले
ने सारे
निकाय
को आईना
एक
दिखाया था ।
चित्र साभार: Canstockphoto.com
बेवकूफ
ने सभी
पदों पर
नोटा पर
निशान
लगाया था
तुरन्त
होशियार
के
होशियारों
ने उसपर
प्रश्नचिन्ह
लगाया था
सोये हुऐ
प्रशासन
की नींद
जारी
रही थी
काम
निपटाये
जा रहे थे
लिंगदोह
कुछ देर
के लिये
अखबार
में दिखा था
और
प्रशासन
की फूँक
भी खबर
के साथ
हवा में
उड़ती हुई
थोड़ी देर
के लिये
चेतावनियाँ
लिये
उड़ी थी
अखबार में
खबर किसने
चलाई थी
और क्यों ये
अलग प्रश्न था
अलग बात थी
गुण्डाराज
के गुण्डों
पर किसे
कुछ
कहना था
और
किस की
औकात थी
पर पिछले
दो महीने
के ताण्डवों
से परेशान
कुछ दूर
दराज के
गावों से
शहर में
आकर पढ़
रहे इन्सान
सुखाते
जा रहे
कुछ जान
कुछ बेजान
कुछ परेशान
किसी ने
नहीं देखे थे
दिखते
भी कैसे
नशे में
चूर भीड़
बौराई
हुई थी
और
प्रशासन
शाशन के
आशीर्वादों
से
लबालब
जैसे
मिट्टी नई
किसी
खेत की
भुरभुराई
हुई थी
जो
भी था
चुनाव
होना था
हुआ
मतपत्र
गिने
जाने थे
किसी ना
किसी ने
गिनना था
एक मत पत्र
बीच में
अकेला दिखा
जिसमें हर
पद पर नोटा
था दिया गया
किसी ना
किसी
ने कुछ
तो कहना
ही था
बेवकूफ
वोट देने
ही क्यों
आया था
सारे पदों
पर
नोटा पर
मुहर लगा
अपनी
बेवकूफी
बता कर
आखिर
उसने क्या
पाया था
‘उलूक’
मन ही मन
मुस्कुराया था
हजारों में
एक ही
सही पर
था कहीं
जो अपने
गुस्से का
इजहार
कर
पाया था
असली
मतदान
कर उस
अकेले
ने सारे
निकाय
को आईना
एक
दिखाया था ।
चित्र साभार: Canstockphoto.com