उलूक टाइम्स: पर्व
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शनिवार, 16 जुलाई 2022

पर्व “हरेला” की बधाई और शुभकामनाओं के बहाने दो बात हरी हरी

 

एक लम्बे समय तक 
यूँ ही खुद ब खुद स्याही उगलती लेखनी
धीरे धीरे शाँत हो चली

कल ही किसी ने पूछ लिया लिख नहीं रहे हो आजकल
क्या बताता लिखा तो कभी भी नहीं था
बस उगल दिया करता था
वो सब जो पचता नहीं था और उसके लिये सोचना नहीं पड़ता था

समय ने जो रफ्तार पकड़ी
दिखाई देना सुनाई देना जैसा सब आदत में शामिल होने लगा
और
जरूरतेँ बदल गयी कलम की भी
बस कुछ हवा हवा और फुस्स फुस्स

भ्रमित होना कोई गुनाह नहीं है होते चले गये
आईने बने पानी में बहते रहे बदलते चले गये

दिख रहा सच नहीं है
भीड़ ने एक नहीं कई बार चेताया बताया

देखो हमारी नजरों से
सब कुछ साफ साफ देखने लगोगे
अपनी आँखों से देखने पर हमेशा धोखा होता है
और आखें भीड़ हो ली धीरे धीरे

कोई नहीं ये चलता रहेगा

सच और झूठ
परिभाषाएँ बदलते रहेंगी समय के साथ
जैसे गाँधी कभी सच था आज झूठ हो लिया है
क्योंकि सच किसी और पलड़े में लटक कर झुक लिया है

आज हरेला है हरियाली का पर्व
हर किसी को बधाई और शुभकामनाएँ हरे के लिये

इसी हरियाली पर जब टटोला खुद को
तो हरा ही गायब नजर आया
कहाँ गायब हो गया होगा
फिर लगा शायद अँधा होना जरूरी होता होगा
सावन में देखने के लिये हरा

अरे
हरा देखना कहाँ है
हरा फैलाना है हरा बोना है
हरा बतियाना है हरा टापना है हरा छापना है

एसा नहीं है कि कलम उठती नहीं है
उठती है हमेशा उठती है बस अंतर हो गया है
अब कुछ उगला नहीं करती है क्योंकि सोच कर लिखना आदत नहीं है
उगलना आदत में शुमार था

बदहजमी शायद ठीक हो गयी है भीड़ के साथ
वैसे भी हर किसी के पास वैक्सीन है अपनी अपनी।
फिर भी आशावान हैं

समय बदलेगा
कलम फिर से उगलेगी स्याही
बिना सोचे कुछ देख कुछ सुन कर।
बकवास हमेशा एक तरह से हो कोई जरूरी नहीं
आज हरी बकवास हरेला पर्व के साथ।
शुभकामनाएँ हरी हरी।

चित्र साभार: https://www.ekumaon.com/

रविवार, 27 अक्टूबर 2019

शुभकामनाएं पर्व दीपावली पटाखे फुलझड़ी भी नहीं




कुछ
रोशनी
की
करनी हैं
बातें

और
कुछ भी
नहीं

दीवाली
अलग है
इस बार की

पहले
जैसे
अब नहीं

अंधेरा
अब
कहीं
होता
ही नहीं

जिक्र
करना
भी नहीं

उजाले
लिख दिये
जायें
बस

दीयों
की
जरूरत
ही नहीं

बोल
रोशनी हुऐ
लब दिये

तेल की
कुछ
कमी नहीं

सूरज
उतर आया
जमीं पर

मत
कह देना
नहीं नहीं

चाँद तारे
सभी पीछे
उसके

एक तेरा
कुछ
पता नहीं

आँख
बंद कर
अंधेरा
सोचने से

अब
कुछ होना नहीं

शुभकामनाएं
पर्व दीपावली

पटाखे
फुलझड़ी
भी नहीं

खाली जेब
सब
रोशनी से
लबालब भरी

‘उलूक’ 
हाँ हाँ
ही सही

नहीं नहीं

जरा
सा भी
ठीक नहीं।
चित्र साभार: http://www.clipartpanda.com