उलूक टाइम्स: पलटना
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सोमवार, 9 फ़रवरी 2015

बुलाया होगा तुझे पहली बार यहाँ शतरंज की बिसात को ही पलटा गया

पहली बार आया
और चला गया
जाने के बाद
पता चला
जिसने बुलाया
उसे ही चूना
लगा गया
ऐसा भी क्या
आना हुआ
गणित पढा‌ने
वाले को ही
हिसाब समझा गया
यहाँ आया चुपचाप
अंदर ही अंदर
मुस्कुरा गया
वापिस जाने के बाद
अपनी हंसी को
खुल कर अखबार
में छपवा गया
दे कर कुछ
भी नहीं गया
सपने के कारखाने
के मालिक को ही
सपने दिखा गया
यहीं कह जाता
सब कहना सुनना
ये क्या बात हुई
घर वापस पहुँचने
के संदेशे के साथ
फटे कपड़ों के
टल्लों की बात
मुहल्ले मुहल्ले
में फैला गया
तेरे आने का
फायदा तो
बुलाने वाले के
हिस्से में आने
से पहले ही
हाथ से फिसल
कर चला गया
बहुत बुरी बात है
झाड़ने वाले को
शाबाशी देने
के बजाय
झाड़ू वाले की
पीठ थपथपा गया
तू तो बाजीगरी के
उस्तादों की नगरी
में आकर
हाथ की सफाई
उनको ही दिखा गया
गजब किया
मुँह के राम को
बगल में छुरी
होने का पक्का
भरोसा दिला गया
किसलिये आया
क्यों आया पूरी की पूरी
बाजी ही उल्टी करा गया
आज की रात
का कर फिर
तू भी इंतजार
कल पता चलेगा
किसको मजा आया
और किसको मजा
आते आते चला गया ।


चित्र साभार: www.dreamstime.com

बुधवार, 12 फ़रवरी 2014

सपने लिखने के लिये नहीं देखने के लिये रखना

इतना सब
उट पटांग
लिखने से
अच्छा ये नहीं है
कि कुछ सपने
ही देख लो
कुछ सपने
ही लिख लो
क्या सपने भी
नहीं आते हैं अब
किसे क्या
बताया जाये
किसे क्या
समझाया जाये
सपने किसे
नहीं आते हैं
कहने को सभी
कोशिश करते हैं
बड़े सपने
देखने के लिये
उकसाते भी हैं
पर सपने भी तो
वही सब कुछ
दिखाते हैं जैसा
आस पास अपने
सब देख सुन कर
रोज सो जाते हैं
फिर भी कुछ
सपने अपने
होते ही हैं
किसी से भी
साझा नहीं
किये जाते हैं
रोज बनते हैं
एक नहीं कई
हो जाते हैं
जमा होते रहते हैं
जैसे बैंक के खाते
में चले जाते हैं
कुछ लोग याद
नहीं रखते हैं
कुछ बार बार
देखना चाहते हैं
जैसे एक पुराने
रद्दी अखबार के
ढेर में से कभी
पुराना एक
अखबार निकाल कर
एक पुरानी खबर
ढूँढना शुरु हो जाते हैं
मनमाफिक मिल
गया होता है
चले आते हैं
नहीं मिलता है अगर
अखबार के ढेर से
फिर उलझ जाते हैं
अच्छे होते हैं सपने
ढेर सारे सपनों के
ढेर से उलझना
एक निकालकर उसे
उलटना पलटना
फिर जहाँ से
उठाया गया हो
वहीं उसी जगह
एक तह किये गये
कपड़े की तरह
रख देना
फिर कभी किसी दिन
निकाल कर देख
लेने के लिये
बाकी करने को
बहुत कुछ होता है
करते चले जाना
कुछ इसका गिराना
कुछ उसका लुढ़काना
बस इस सब में
सपने कभी मत
लिख देना
गलती से भी
ऐसी बेवकूफी
भूल कर भी कभी
मत कर जाना
लिखना रोज
यहाँ भी आना |