उलूक टाइम्स: जमा
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शुक्रवार, 29 मई 2015

कुछ नहीं कहना है कह कर क्या कुछ होना है पढ़ लेना बस मानकर इतना कि ये रोज का ही इसका रोना है

किसी दिन बहुत
हो जाता है जमा
कहने के लिये यहाँ
क्या कहा जाये
क्या नहीं
आग लिखी जाये
या लिखी जाये चिंगारी
या बस कुछ धुऐं में से
थोड़ा सा कुछ धुआँ
अरे गुस्सा थूक
क्यों नहीं देता है
खोद लेता है क्यों नहीं
कहीं भी एक नया कुआँ
उसकी तरह कभी
नहीं था तू
ना कभी हो पायेगा
उसको खेलना आता है
बहुत अच्छी तरह
रोज एक नया जुआँ
झूठ की पोटली है
बहुत मजबूत है
ओढ़ना आता है उसे
सच और दिखाना
सच्चाई और झौंकना
आँखों में धूल मिलाकर
अपनी मक्कारी का धुआँ
सब पहचानते हैं उसे
रहते हैं साथ उसके
पूछो कभी कुछ उसके
बारे में यूँ ही तो
कहते कुछ नहीं
उठा के पूँछ कर
देते हैं बस हुआँ हुआँ ।



चित्र साभार: imgkid.com

बुधवार, 12 फ़रवरी 2014

सपने लिखने के लिये नहीं देखने के लिये रखना

इतना सब
उट पटांग
लिखने से
अच्छा ये नहीं है
कि कुछ सपने
ही देख लो
कुछ सपने
ही लिख लो
क्या सपने भी
नहीं आते हैं अब
किसे क्या
बताया जाये
किसे क्या
समझाया जाये
सपने किसे
नहीं आते हैं
कहने को सभी
कोशिश करते हैं
बड़े सपने
देखने के लिये
उकसाते भी हैं
पर सपने भी तो
वही सब कुछ
दिखाते हैं जैसा
आस पास अपने
सब देख सुन कर
रोज सो जाते हैं
फिर भी कुछ
सपने अपने
होते ही हैं
किसी से भी
साझा नहीं
किये जाते हैं
रोज बनते हैं
एक नहीं कई
हो जाते हैं
जमा होते रहते हैं
जैसे बैंक के खाते
में चले जाते हैं
कुछ लोग याद
नहीं रखते हैं
कुछ बार बार
देखना चाहते हैं
जैसे एक पुराने
रद्दी अखबार के
ढेर में से कभी
पुराना एक
अखबार निकाल कर
एक पुरानी खबर
ढूँढना शुरु हो जाते हैं
मनमाफिक मिल
गया होता है
चले आते हैं
नहीं मिलता है अगर
अखबार के ढेर से
फिर उलझ जाते हैं
अच्छे होते हैं सपने
ढेर सारे सपनों के
ढेर से उलझना
एक निकालकर उसे
उलटना पलटना
फिर जहाँ से
उठाया गया हो
वहीं उसी जगह
एक तह किये गये
कपड़े की तरह
रख देना
फिर कभी किसी दिन
निकाल कर देख
लेने के लिये
बाकी करने को
बहुत कुछ होता है
करते चले जाना
कुछ इसका गिराना
कुछ उसका लुढ़काना
बस इस सब में
सपने कभी मत
लिख देना
गलती से भी
ऐसी बेवकूफी
भूल कर भी कभी
मत कर जाना
लिखना रोज
यहाँ भी आना | 

बुधवार, 8 अगस्त 2012

दूध मत दिखा दही जमा

सब 
सब देखते हैं
तू भी देख कर आ
किसी ने नहीं है तुझको कहीं रोका

थोड़ा बतायेगा
चलेगा
सब कुछ मत बता
हमको भी तो रहता ही होगा
कुछ पता

कोई नई छमिंंया
देख कर आया है अगर तो 
किस्सा सुना जा

काले बादल की तरह रोज 
कड़कड़ाता है यहाँ
कभी रिमझिम सी बारिश की फुहार भी
दिखा जा

कभी कभी 
कहीं पर थोड़ी मेहनत भी कर लिया कर 
कहाँ जा रही है दुनियाँ नये जमाने में 
देख भी कुछ लिया कर

देखते सुनते सभी आते हैं
कुछ ना कुछ इधर उधर बनाते हैं 
अपने सपने अपने ख्वाब भी मगर

एक तू है 
लकीर को पीटने वाला फकीर बन जाता है
जो जो देख कर आता है
यहाँ ला कर उलट पलट जाता है

अरे
कुछ अच्छा होता 
तो अखबार में नहीं आ रहा होता
साथ में माला पहने हुऎ तेरी 
फोटो भी दिखा रहा होता 

कब
सुधरेगा 
अब तो सुधर जा
लोगों से कुछ तो सीख 
कब ये सब सीखेगा

दूध देख कर आता है तो 
थोड़ा जामुन भी मिला लिया कर
दही बना कर चीनी के संग भी
कभी किसी को खिला दिया कर

'उलूक'
खाली खाली
दूध यहाँ मत लाया कर

लाता ही है
किसी मजबूरी में अगर
रख दिया कर

कम से कम
रोज तो
ना फैलाया कर । 

चित्र सभार: https://economictimes.indiatimes.com/