उलूक टाइम्स: पाँचसौवीं
पाँचसौवीं लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
पाँचसौवीं लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शनिवार, 30 नवंबर 2013

और ये हो गयी पाँचसौंवी बकवास

इससे पहले 
उबलते उबलते 
कुछ छलक कर गिरे 
और बिखर जाये जमीन पर तिनका तिनका 

छींटे पड़े कहीं सफेद दीवार पर 
कुछ काले पीले धब्बे बनायें 

लिख लिया कर 
मेरी तरह रोज का रोज 
कुछ ना कुछ कहीं ना कहीं

किसी रद्दी कागज के टुकड़े पर ही सही 

कागज में लिखा बहुत आसान होता है 
छिपा लेना मिटा लेना 
आसान होता है जला लेना 

राख
हवा के साथ उड़ जाती है 
बारिश के साथ बह जाती है 
बहुत कुछ हल्का हो जाता है 

बहुत से लोग 
कुछ भी नहीं कहते हैं 
ना ही उनका लिखा हुआ 
कहीं नजर में आता है 

और
एक तू है 
जब भी भीड़ के
सामने जाता है 

बहुत कुछ लिखा हुआ 
तेरे चेहरे माथे और आँखों में 
साफ नजर आ जाता है 

तुझे पता भी नहीं चलता है 
हर कोई तुझे 
कब और किस समय 
पढ़ ले जाता है 

मत हुआ कर सरे आम नंगा
इस तरह से 

जब कागज में 
सब कुछ लिख लिखा कर 
आसानी से बचा जाता है 

कब से लिख रहा है 'उलूक' 
देखता नहीं क्या 

एक था पन्ना कभी 
जो आज लिखते लिखते 
हजार का आधा हो जाता है ।

चित्र साभार: https://www.123rf.com/