उबलते उबलते
कुछ छलक कर गिरे
और बिखर जाये जमीन पर तिनका तिनका
छींटे पड़े कहीं सफेद दीवार पर
कुछ काले पीले धब्बे बनायें
लिख लिया कर
मेरी तरह रोज का रोज
कुछ ना कुछ कहीं ना कहीं
किसी रद्दी कागज के टुकड़े पर ही सही
कागज में लिखा बहुत आसान होता है
छिपा लेना मिटा लेना
आसान होता है जला लेना
राख
हवा के साथ उड़ जाती है
हवा के साथ उड़ जाती है
बारिश के साथ बह जाती है
बहुत कुछ हल्का हो जाता है
बहुत से लोग
कुछ भी नहीं कहते हैं
ना ही उनका लिखा हुआ
कहीं नजर में आता है
और
एक तू है
एक तू है
जब भी भीड़ के
सामने जाता है
सामने जाता है
बहुत कुछ लिखा हुआ
तेरे चेहरे माथे और आँखों में
साफ नजर आ जाता है
तुझे पता भी नहीं चलता है
हर कोई तुझे
कब और किस समय
पढ़ ले जाता है
मत हुआ कर सरे आम नंगा
इस तरह से
जब कागज में
सब कुछ लिख लिखा कर
आसानी से बचा जाता है
कब से लिख रहा है 'उलूक'
देखता नहीं क्या
एक था पन्ना कभी
जो आज लिखते लिखते
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (01-112-2013) को "निर्विकार होना ही पड़ता है" (चर्चा मंचःअंक 1448)
पर भी है!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
500वीं पोस्ट की बधाई हो।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वासी मिले पहाड़ के, नामी डाक्टर जान |
जवाब देंहटाएंबीमारी हमको बड़ी, झट भूलूं पहचान |
झट भूलूं पहचान, बड़ा दौड़ाया घोड़ा |
गया सूर्य इत डूब, किन्तु पहुंचा अल्मोड़ा |
इत बोलूं मैं मर्ज, उधर रविकर इक राशी |
लम्बी कविता दर्ज, इकठ्ठा दो बकवासी ||
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।। त्वरित टिप्पणियों का ब्लॉग ॥
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 02 नवम्बर 2021 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
2013 का आंकड़ा है। अब तो ये बहुत आगे पहुंच गया होगा। हार्दिक बधाई सुशील । ये आंकड़े यूं ही बढ़ते रहें यही कामना है 🙏🙏
जवाब देंहटाएं