उगलते उगलते उगलना निगलना हो गया
बहकते बहकते बहकना संभलना हो गया
आज का कल में कल का परसों में बदलना हो गया
फिसलना दिन और रात का महीना निकलना हो गया
आसमां में सुराग हाथ मे पत्थर सोच लेना बहलना हो गया
ख़यालो ही ख़यालो में कुछ थोड़ा खयाली उछलना हो गया
कुछ पढ़ना इधर कुछ पढ़ना उधर ऐसे ही टहलना हो गया
कहीं देखना आईना कहीं देखना चेहरा हवा का बदलना हो गया
सफ़ेद लिखना सफ़ेद पर लिखना रोज़ का लिखना मुंह सिलना हो गया
अपनी बातें खुद से करना ‘उलूक’ जमाने से मिलना हो गया
चित्र साभार: https://www.dreamstime.com/
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