उलूक टाइम्स: कुछ रखना कुछ बकना ना कहे कोई घड़ा चिकना हो गया

सोमवार, 31 अक्टूबर 2022

कुछ रखना कुछ बकना ना कहे कोई घड़ा चिकना हो गया


उगलते उगलते उगलना निगलना हो गया
बहकते बहकते बहकना संभलना हो गया

आज का कल में कल का परसों में बदलना हो गया
फिसलना दिन और रात का  महीना निकलना हो गया

आसमां में सुराग हाथ मे पत्थर सोच लेना बहलना हो गया
ख़यालो ही ख़यालो में कुछ थोड़ा खयाली उछलना हो गया

कुछ  पढ़ना इधर कुछ पढ़ना उधर ऐसे ही टहलना हो गया
कहीं  देखना आईना कहीं देखना चेहरा हवा का बदलना हो गया

सफ़ेद लिखना सफ़ेद पर लिखना रोज़ का लिखना मुंह सिलना हो गया
अपनी बातें खुद से करना ‘उलूक’ जमाने से मिलना हो गया

चित्र साभार: https://www.dreamstime.com/

31/10/2022 
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15 टिप्‍पणियां:

  1. आसमां में सुराग हाथ मे पत्थर सोच लेना बहलना हो गया
    ख़यालो ही ख़यालो मेँ कुछ थोड़ा खयाली उछलना हो गया////
    आज उलूक का अंदाज नया- नया सा है।सार्थक रचना सुशील जी।हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई स्वीकार करें 🙏

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (02-11-2022) को  "जंगल कंकरीटों के"  (चर्चा अंक-4600)  पर भी होगी।
    --
    कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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  3. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 02 नवम्बर 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. कुछ पढ़ना इधर कुछ पढ़ना उधर ऐसे ही टहलना हो गया
    कहीं देखना आईना कहीं देखना चेहरा हवा का बदलना हो गया

    सत्य कथन

    उम्दा भावाभिव्यक्ति

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  5. वाह! यथा पिंडे तथा ब्रह्मांडे ! खुद से मिलना जमाने से मिलना होता ही है, जब किसी का खुद जमाने को भीतर समा लेता है

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  6. सफ़ेद लिखना सफ़ेद पर लिखना रोज़ का लिखना मुंह सिलना हो गया
    अपनी बातें खुद से करना ‘उलूक’ जमाने से मिलना हो गया
    .. बहुत खूब! अच्छा लगा एक नए अंदाज में आपके लिखे को पढ़ना

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  7. I am thankful for this blog to gave me much knowledge regarding my area of work. I also want to make some addition on this platform which must be in knowledge of people who really in need. Thanks.
    Satta

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  8. बहुत खूब... घड़ा को इतना चिकना देख कर फिसलना ही पड़ता है आजकल। अच्छा लगा पढ़कर।

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  9. उगलना निकलना हो जाये बहकना संभालना हो जाये तो बात ही क्या ...

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