महीना
बीत रहा है
बीत रहा है
कल
कुछ कहा नहीं
कुछ कहा नहीं
क्या
आज भी कुछ
नहीं कह रहा है
कहते हुऐ
तो आ रहा हूँ
आज से नहीं
एक
जमाने से गा रहा हूँ
मेंढको के
सामने
रेंक रहा हूँ
गधों के पास
जा जा
जा जा
कर टर्रा रहा हूँ
इसकी
सुन के आ रहा हूँ
उसकी
बात बता रहा हूँ
बात बता रहा हूँ
पन्ना पन्ना
जोड़ रहा हूँ
एक मोटी सी
किताब
बना रहा हूँ
बना रहा हूँ
रोज ही
दिखता है कुछ
रोज ही
बिकता है कुछ
बिकता है कुछ
शब्दों से
उठा रहा हूँ
समझने की कोशिश
करता रहा हूँ
तुझको
कुछ
तब भी नहीं
समझा पा रहा हूँ
कल का दिन
बहुत
अच्छा दिन था
कल की बात
आज बता रहा हूँ
एक दिन की
दफ्तर
से छुट्टी लिया था
घर में
बैठे बैठे
मक्खियाँ
गिन रहा था
गिन रहा था
अखबार
लेने ही
नहीं गया था
टी वी रेडियो
भी
नहीं खुला था
वहाँ की रियासत
का
वो नहीं दिखा था
यहाँ की रियासत
का
ये नहीं मिला था
छोटे छोटे
राजाओं की
राजाज्ञाओं से
कुछ देर
ही सही
लगा
बच जा रहा हूँ
बच जा रहा हूँ
बहुत
मजा आ रहा था
महसूस
हो रहा था
हो रहा था
रोम में
लगी है
लगती
रहे आग
रहे आग
एक दिन
का ही सही
नीरो बन कर
बाँसुरी
बाँसुरी
चैन की
बजा रहा हूँ ।
बजा रहा हूँ ।
चित्र साभार : www.pinstopin.com