रविवार को
उलूक चिंतन
कुछ ढीला
पढ़ जाता है
लिखने के लिये
कुछ भी नया
आसपास जब
नहीं ढूँढा जाता है
घर पर बैठे ठाले
अगर कुछ
कोई लिखना
भी चाहता है
परिणाम के
रूप में झाड़ू
अपने सामने
से पाता है
अपनी
कमजोरियों
को दिखाना
भी कहाँ अच्छा
माना जाता है
हर कोई
अपनी छुरी को
तलवार ही
बताना चाहता है
दो काम हों
करने अगर
अच्छा काम
पहले करने को
हमेशा से
कहा जाता है
पर ऎसा
कहाँ किसी से
हर समय
हो पाता है
रावण भी
तो स्वर्ग तक
सीढ़ियाँ नहीं
बना पाता है
पहले सीता
मैया जी को
हरने के लिये
चला जाता है
पुरुस्कार
के रूप में
रामचन्द्र जी
के हाथों मार
दिया जाता है
उलूक भी
इसीलिये
सोच में कुछ
पड़ जाता है
सब्जी
बाजार से
लाने से पहले
चौका बरतन
झाड़ू पौछा
करने को चला
ही जाता है
कभी कभी
बुद्धिमानी कर
मार खाने से
बच जाता है ।
उलूक चिंतन
कुछ ढीला
पढ़ जाता है
लिखने के लिये
कुछ भी नया
आसपास जब
नहीं ढूँढा जाता है
घर पर बैठे ठाले
अगर कुछ
कोई लिखना
भी चाहता है
परिणाम के
रूप में झाड़ू
अपने सामने
से पाता है
अपनी
कमजोरियों
को दिखाना
भी कहाँ अच्छा
माना जाता है
हर कोई
अपनी छुरी को
तलवार ही
बताना चाहता है
दो काम हों
करने अगर
अच्छा काम
पहले करने को
हमेशा से
कहा जाता है
पर ऎसा
कहाँ किसी से
हर समय
हो पाता है
रावण भी
तो स्वर्ग तक
सीढ़ियाँ नहीं
बना पाता है
पहले सीता
मैया जी को
हरने के लिये
चला जाता है
पुरुस्कार
के रूप में
रामचन्द्र जी
के हाथों मार
दिया जाता है
उलूक भी
इसीलिये
सोच में कुछ
पड़ जाता है
सब्जी
बाजार से
लाने से पहले
चौका बरतन
झाड़ू पौछा
करने को चला
ही जाता है
कभी कभी
बुद्धिमानी कर
मार खाने से
बच जाता है ।