उलूक टाइम्स: मटकी
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रविवार, 17 नवंबर 2013

कंंधा नहीं लगायेगा तो ऊपर क्या है कैसे देख पायेगा

पता ही
नहीं चलता
कब कहाँ
किसी को
क्या नजर
आ जाये

किस
हाल में
किसी को
किसी
के लिये
क्या कुछ
करना ही
पड़ जाये

समझाता भी
कौन है यहां
किताबों से
बाहर की बातें

जो समझ में
आसानी से
किसी के
यूं ही आ जाये
कंंधा लगाये हुऐ

कुछ लोगों के
कंंधे पर चढ़ा
हुआ कोई
उँचाई पर
कुछ ढूंंढने
के लिये
जब चला जाये

क्या दिखा
क्या मिला
नीचे उतरने
पर भी
कंंधे दिये
हुओं को
तक भी
ना बताये

कंंधे
 लगाये
हुओं को
इस बात से
कोई मतलब
ही ना रह जाये

एक उतरा
नहीं नीचे
दूसरा कंंधों
पर चढ़ कर
ऊपर देखना
शुरु हो जाये

चढ़ना उतरना
चल रहा हो
ऊपर जाता
हुआ मगर
कोई नजर
कभी कहीं
भी नहीं आये

शायद हो
दही की मटकी
ऊपर कहीं
हुई लटकी
हिम्मत फोड़ने
की ऐसे में
कोई क्यों और
कैसे कर पाये

इंतजार में हो
सब कन्हैया के
सभी 
कंंधे
पै लगे हो

इसीलिये
अपना भी 
कंंधा लगाये
'उलूक'
देखे खुद
समझे खुद
और खुद को
खुद ही
ये समझाये

किसी की
समझ में इसमें
कुछ और
अगर आ जाये
तो बहुत
मेहरबानी होगी
पक्का बताये
जरूर बताये ।