उलूक टाइम्स: मरना
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शनिवार, 8 अगस्त 2015

हर कोई मरता है एक दिन मातम हो ये जरूरी नहीं होता है

हर बाजार में
हर चीज बिके
ये जरूरी भी
नहीं होता है
रोज बेचता है कुछ
रोज खरीदता है कुछ
उसके बाद भी कैसे
किसी को अंदाजा
नहीं होता है
किसी की मौत
कहाँ बिकेगी
कौन कब और
कहाँ पैदा होता है
कहीं सुंदर सी
आँखों की गहराई
ही बिकती है
कहीं खाली आवाज
गुंजाता हुआ
खंडहर हो चुके
एक कुऐं में भी
प्राइस टैग बहुत
उँचे दामों का
लगा होता है
कहीं बहुत भीड़
नजर आती है
और सामने से
बहुत कुछ उधड़ा
हुआ सा होता
ये जरूरी नहीं है
जिंदगी का फलसफा
हर किसी के लिये
हमेशा एक सा होता है
किसी को खून देखकर
गश आना शुरु होता है
किस को अगर नशा
होता है तो बस गिरे हुऐ
खून के लाल रंग को
देखने से ही होता है
बहुत मरते हैं रोज
कहीं ना कहीं दुनियाँ
के किसी कोने में
हर किसी के मरने
का मातम जरूरी नहीं है
हर किसी के यहाँ होता है ।

चित्र साभार: www.examiner.com

शुक्रवार, 17 जुलाई 2015

मर जाना किसे समझ में आता नहीं है

मर जाने
का मतलब
मरने मरने तक
कैसे समझ में
आ सकता है

मरने का
मतलब
कोई
बिना मरे
कैसे बता
सकता है

मर जाना
भी तो
कई तरह
का होता है

कोई
मरता भी है
और
उसे पता भी
नहीं होता है

सापेक्ष मरना
निरपेक्ष मरना
जिंदा मरना
मरा हुआ मरना

बहुत सारे भ्रम
हो ही जाते हैं
मरने मारने
पर आने
के मायने
वैसे भी अलग
हो ही जाते हैं

सच का मरना
झूठ का मरना
अलग अलग
बात हो जाती हैं

जिंदा मर जाना
मरा हुआ सा
नजर आना
अलग ही बात
हो जाती है

बे‌ईमान के लिये
एक ईमानदार
मर जाता है

ईमानदार मरे हुऐ
की लाश उठाता है

मरना भी अजीब है

मर जाने के बाद
कोई कैसे बताये
समझ में आता है
या नहीं आता है

सब मरते हैं
मरने से पहले भी

कभी
कहीं थोड़ा
कहीं
कभी ज्यादा

मरने
की बात
कोई भी
मरने वाला
किसी भी
जिंदा
आदमी को
मगर कभी भी
नहीं बताता  है । 

चित्र साभार: www.clker.com