मृत्यू तो रोज
ही होती है
रोज मरता है
एक आदमी
कहीं अंदर से
या बाहर से
आभास होता है
परवाह नहीं
करता है
सूखी हुई
आँखों से कुछ
टपकता भी है
ना नमकीन
होता है ना
मीठा होता है
बस कुछ होने
भर का एक
अहसास होता है
चिर निद्रा में
उसे भी सोना
ही होता है जो
उम्र भर सोने
की कोशिश में
लगा रहता है
ऐसी एक नहीं
ढेर सारी मौतों
का कोई भी
प्रायश्चित कहीं
भी नहीं होता है
इन सभी मृत्युओं
के बीच अपने किसी
बहुत नजदीकी
की मृत्यू से
आहत जब
कोई होता है
कोई शब्द
नहीं होता है
बस एक
मौन रोता है ।
ही होती है
रोज मरता है
एक आदमी
कहीं अंदर से
या बाहर से
आभास होता है
परवाह नहीं
करता है
सूखी हुई
आँखों से कुछ
टपकता भी है
ना नमकीन
होता है ना
मीठा होता है
बस कुछ होने
भर का एक
अहसास होता है
चिर निद्रा में
उसे भी सोना
ही होता है जो
उम्र भर सोने
की कोशिश में
लगा रहता है
ऐसी एक नहीं
ढेर सारी मौतों
का कोई भी
प्रायश्चित कहीं
भी नहीं होता है
इन सभी मृत्युओं
के बीच अपने किसी
बहुत नजदीकी
की मृत्यू से
आहत जब
कोई होता है
कोई शब्द
नहीं होता है
बस एक
मौन रोता है ।