एक मित्र
को
चिंता है
अच्छी
रचना
कोई
क्यों नहीं
सुनता है
किस्म
किस्म
के लोग
जब
एक साथ
हो जाते है
एक ही
बाजार में
कुछ खरीदने
जाते हैं
अपनी अपनी
पसंद का
माल ही
तो उठाते हैं
मित्र
आप भी
तो अपनी
पसंद की
साड़ी खरीद
कर ही ले जाती हैं
पतिदेव की
कलर चौईस
पर कभी कभी
मुँह बनाती हैं
यहाँ तो लोग
सूई से हाथी
बना कर
लगा रहे हैं
हम
कौन सा
खरीदते
जा रहे हैं
मेरे बहुत से
मित्रों के मित्र
बड़े बड़े नेता हैं
पर
हमको
पार्टी वाला
कहाँ कुछ
कभी देता है
काँग्रेस
भाजपा
सपा बसपा
हर तरह की
पार्टियां लगीं थी
पर हमें तो
बस अपने देश
की पतली होती
हालत की
ही पड़ी थी
हम कब से
भुनभुना रहे थे
हमारे हजार
फेसबुक मित्रों में
से बीस पच्चीस
ही तो हमारे साथ
ताली बजा रहे थे
सबसे
बड़ी बात
आपकी
समझ में
भी अब तक
आ जानी चाहिये
कोई
क्या सोचता है
कहता है
इस रास्ते पर गाड़ी
नहीं दौड़ानी चाहिये
लगे रहिये
आप भी
हमारी तरह
मसाले
छौंक के सांथ
दाल पकानी चाहिये
कोई
खाये तो खाये
नहीं खाता है
तो
उसके लिये
बिरयानी नहीं
पकानी चाहिये।