स्याही से
भरी
दिख रही है
पर
कुछ नहीं
लिख रही है
उँगलियों
से
खेल रही है
मगर
कुछ
भारी होकर
कलम
आज
बस
रिस रही है
चलती
रही है
हमेशा
किसी के
इशारों से
आज भी
दिख रही है
ना जाने
क्यों
लग रहा है
कुछ
झिझक
रही है
कुछ
रुक रही है
कागज कागज
न्योछावर
होती रही है
अपनी
आज भी
कुछ नहीं
कह रही है
लाल
गलीचा
लिये
खुद बिछी है
हमेशा
अभी भी
उसी तरह
जमीन जमीन
बिछ रही है
मुद्दत
के बाद
जैसे
नींद से
उठ रही है
शिद्दत से
बेखौफ
अँधेरों
को
लिखने वाली
पता नहीं
किसलिये ‘उलूक’
उजाले उजाले
हर तरफ
बिक रही है
उदास नहीं है
मगर
खुश भी
नहीं
दिख रही है
स्याही
से
भरी
दिख रही है
पर
कुछ भी
नहीं
लिख रही है ।
चित्र साभार: https://flowvella.com/
नींद से
उठ रही है
शिद्दत से
बेखौफ
अँधेरों
को
लिखने वाली
पता नहीं
किसलिये ‘उलूक’
उजाले उजाले
हर तरफ
बिक रही है
उदास नहीं है
मगर
खुश भी
नहीं
दिख रही है
स्याही
से
भरी
दिख रही है
पर
कुछ भी
नहीं
लिख रही है ।
चित्र साभार: https://flowvella.com/