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बुधवार, 10 जनवरी 2024

लिख कुछ भी लिख लिखे पर ही लगायेंगे मोहर लोग कुछ कह कर जरूर लिख कुछ भी लिख


लिख और लिख कमाल का कुछ लिख
लिख और लिख बबाल सा कुछ लिख
कुछ लिख जरूर लिख
मगर कभी सवाल भी कुछ लिख
लिखेगा कुछ तभी तो सुनेगा भी कुछ तो लिख
कोई कहेगा कुछ लिखे पर
कोई सहेजेगा लिखे का कुछ इसलिए लिख
जमा मत कर
अन्दर कुछ लिख बाहर बेमिसाल कुछ लिख
चाहे किसी पेड़ किसी दीवार में लिख
डर मत बेधड़क कुछ लिख
अपने सभी सवाल कुछ लिख
जवाब में मिलेगा उधर से भी सवाल कुछ लिख
चढ़ेंगे शरीफ ही कलम लेकर
लिखेगा तब भी नहीं लिखेगा तब भी
ढाल रहने दे तलवार कुछ लिख
गुलाब लिखे कोई लिखे झडे पत्ते
गिन और बेहिसाब लिख
दिमाग में भरे गोबर को साफ़ कर
थोड़ा कभी जुलाब कुछ लिख
लिखते हैं लोग मौसम लिखते हैं लोग बारिश
लिखते हैं पानी भी गुलाब भी और शराब भी
लाजवाब लिखते हैं और बेहिसाब लिखते हैं
पर देखा कर तेरे थोड़ा सा इतिहास लिखते ही
रोम रोम खड़े दिखते हैं और जवाब लिखते हैं
कोई नहीं फिर भी लड़खड़ा मत किताब लिख
लिखने से आजाद होता है आदमी बेहिसाब लिख
आदत है किसी को गुलामी की उसका हिजाब लिख
‘उलूक’ बेधड़क लिखता है धड़कनें
दिखता है लिखा 
किसी के लिखे से है तुझे कुछ परेशानी
तो रहने दे अपनी ही हिसाब की कोई किताब लिख
चित्र साभार: https://www.freepik.com/

बुधवार, 26 अगस्त 2020

सोच तो थी बहुत कुछ लिखने की लेकिन लगता नहीं है उसमें से थोड़ा सा कुछ भी लिख पाउँगा कहीं

 


सारी जिन्दगी निकल गयी
लेकिन लगने लगा है
थोड़ी सी भी आँख तो अभी खुली ही नहीं 

अन्धा नहीं था लेकिन अब लग रहा है
थोड़ा सा भी पूरे का
अभी तो कहीं से भी दिखा ही नहीं 

नंगा और नंगई सोचने में
शर्म दिखाने के बाद भी बहुत आसान सा लगता रहा
बस कपड़े ही तो उतारने हैं कुछ शब्द के
सोच लिया

अरे क्या कम है
बस ये किया और कुछ किया ही नहीं 

परदे बहुत से
बहुत जगह लगे दिखे लहराते हुऐ हवा में
कई कई वर्षॉं से टिके
खिड़कियाँ भी नहीं थी ना ही दरवाजे थे
कहीं दिखा ही नहीं 

क्या क्या कर रहे हैं
सारे शरीफ़
अखबार की सुबह की खबर और पेज में दिखाई देने वाले

जब बताने पै आ जाता है एक गरीब
तब शर्म आती है आनी भी चाहिये
बहुत लिख लिये गुलाब भी और शराब भी

लिख देने वाला सच
बेशर्मी से जरा सा भी तो
‘उलूक’
कहीं भी
आज तक लिखा ही नहीं।

चित्र साभार: https://www.dreamstime.com/

ulooktimes.blogspot.com २६/०८/२०२० के दिन 

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मंगलवार, 12 नवंबर 2019

स्याही से भरी दिख रही है हर कलम पर कुछ नहीं लिख रही है


स्याही से
भरी
दिख रही है

पर

कुछ नहीं
लिख रही है

उँगलियों
से
खेल रही है

मगर

कुछ
भारी होकर
कलम

आज

बस
रिस रही है

चलती
रही है
हमेशा

किसी के
इशारों से

आज भी
दिख रही है

ना जाने
क्यों
लग रहा है

कुछ
झिझक
रही है

कुछ
रुक रही है

कागज कागज
न्योछावर
होती रही है

अपनी
आज भी

कुछ नहीं
कह रही है

लाल
गलीचा
लिये
खुद बिछी है
हमेशा

अभी भी
उसी तरह

जमीन जमीन
बिछ रही है

मुद्दत
के बाद
जैसे

नींद से
उठ रही है

शिद्दत से
बेखौफ

अँधेरों
को
लिखने वाली

पता नहीं
किसलिये ‘उलूक’

उजाले उजाले

हर तरफ
बिक रही है

उदास नहीं है

मगर

खुश भी
नहीं
दिख रही है

स्याही
से
भरी
दिख रही है

पर

कुछ भी
नहीं
लिख रही है ।

चित्र साभार:
https://flowvella.com/

रविवार, 25 अगस्त 2019

कुछ भी लिख ‘उलूक’ मगर लिख रोज लिख हर समय लिख किस लिये कोई दिन बिना कुछ लिखे ही बितारा



कल का 
लिखा

क्या
बिक गया
सारा

आज
फिर से
उसी पर

किसलिये

वही कुछ
लिख लारा
दुबारा

देख

वो
लिख लारा
घड़ियाँ सारी

समय
सबको

जो 
आज
सबका
दिखारा

समझ

पीठ में
लगी चाबियाँ
अपनी
टिक टिक की

दूर कहीं

कहाँ
जा कर
छुपारा

क्यों नहीं

पूछ
कर ही
लिख लेता
किसी से 

कुछ

उसी 

के
हिसाब का

ऐसा
सोच
क्यों नहीं
पारा

सोच

नहीं
सोचा जारा
जिससे

वो
लिखना छोड़

कुछ
पढ़ने को
चला आरा

बता

समझ
में आना

किस ने
कह दिया
जरूरी है

नहीं
आरा
समझ में

तो
नहीं आरा
बतारा

और

जो
समझ भी
जारा
कुछ

कुछ
कहने में
फिर भी
अगर
हिचकिचारा

कौन सा
कुछ

अजब गजब
जो
क्या हो जारा

एक
कविता कहानी साहित्य
के
पन्नों के
थैले बनारा

दूसरा

बकवास
की
मूँगफली के
छिलके
ला ला
कर
फैलारा

तीसरा

इसकी
टोपी
उसके सिर
में
रख कर
के
आरा

सबसे बड़ा

दीवार
चढ़कर
उतरकर
बड़ी खबर
पकारा

उसके
साथ खड़ा

असली
खबर को

देश दुनियाँ
की
फैली
घास बतारा

‘उलूक’

कविता
कहानियों
के बीच

बकवास
अपनी

कई
सालों से
पकारा

सिरफिरा
समझ रा
दिमागदारों
को
पढ़ारा

निचोड़
इन
सब का
अंत में

लिख कर
ये
रख जारा

कुछ
भी लिख

रोज
कुछ
लिखना
जरूरी है

मत कहना
नहीं
बताया

कम कम
लिखने
वालों
का
चिट्ठा दर्जा

आगे
आते आते

पीछे
कहीं
रह जारा।

चित्र साभार: https://www.amazon.in/dp/159020042X?tag=5books-21

बुधवार, 24 जनवरी 2018

लिख कुछ तितली या तितली सा बस मितली मत कर देना

बहुत देर से
कोशिश कर
रहा होता है कोई

एक तितली
सोच कर
उसे उड़ाने की

तितली होती है
कि नजर
ही नहीं आती है

तितली को
कहाँ पता होता है
उसपर किसी को
कुछ लिखना है

हरे भरे पेड़ पौंधे
फूल पत्ती खुश्बू
या कुछ भी
जिसपर तितली
उड़ान भरती है

लिखने वाला
लगा होता है
तितली को
उड़ाने की
सोच जगाने की
ताकि कुछ
निकले तितली सा
कुछ उड़े
आसमान में
कुछ रंगीन सा
इंद्रधनुषीय

सच में
एक तितली
सोचने में
इतना ज्यादा
जोर पड़ता है
दिमाग पर

कभी नहीं
सोच पाता
है कोई
एक चालू
लिखने वाला

जोर डालता
है अचानक
तो
समझ में आना
शुरु होता है

तितलियों से
भरा एक देश
उसका
तितली राजा
तितली प्रजा
और सारे
उड़ते हुऐ
मडराते हुऐ
फूलों के ऊपर
गाते हुऐ
तितली गीत
सब कुछ तो
हरा भरा होता है
सब कुछ तो
ठीक ठाक होता है

फिर
किसलिये
‘उलूक’
तितली पर
लिखने के लिये
तुझे एक तितली
सोचने पर भी
दूर दूर तक
नजर नहीं आती है

कुछ
इलाज करवा
कुछ दवा खा
डाक्टर को
अपना मर्ज बता

कि तितली
सोची ही
नहीं जाती है

नींद जैसी
कुछ उबासी
के साथ
चली आती है
उनींदी सी
सोती हुई
पंख बंद
किये हुऐ
एक तितली
बताती हुई
कि वो
एक तितली है
और उस पर
उसे कुछ
तितली सा
लिखना है ।

चित्र साभार: http://clipart-library.com

मंगलवार, 13 अक्टूबर 2015

कुछ भी लिख देना लिखना नहीं कहा जाता है


एक बात पूछूँ

पूछ
पर पूछने से पहले ये बता 
किस से पूछ रहा है पता है 

हाँ पता है 
किसी से नहीं पूछ रहा हूँ 

आदत है पूछने की 
बस यूँ ही
ऐसे ही 
कुछ भी कहीं भी पूछ रहा हूँ 

तुमको
कोई परेशानी है 
तो मत बताना 
बताना
जरूरी नहीं होता है 

कान में
बता रहा हूँ वैसे भी 
कोई 
 कुछ नहीं बताता है 
पूछने से ही
गुस्सा हो जाता है 
गुर्राता है 

कहना
शुरु हो जाता है 

अरे तू भी पूछने वालों में 
शामिल हो गया 
मुँह उठाता है 
और पूछने चला आता है 

ये नहीं कि 
वैसे ही हर कोई
पूछने में लगा हुआ होता है 

एक दो पूछने वालों के लिये 
कुछ जवाब सवाब ही कुछ
बना कर क्यों नहीं ले आता है 

हमेशा 
जो दिखे वही साफ साफ बताना 
अच्छा नहीं माना जाता है 

रोटी पका सब्जी देख दाल बना 
भर पेट खा

खाली पीली अपनी थाली 
अपने पेट से बाहर 
किसलिये फालतू में 
झाँकने चला आता है 

‘उलूक’ 
समाज में रहता है 

क्यों नहीं 
रोज ना भी सही कुछ देर के लिये 
सामाजिक क्यों नहीं हो जाता है 

पूछने गाछने के चक्कर में 
किसलिये प्रश्नों का रायता 
इधर उधर फैलाता है ।

चित्र साभार: serengetipest.com

बुधवार, 16 अप्रैल 2014

लिख आ कहीं जा कर किसी पेड़ की छाल पर ये भी

ईश्वर के
उस पुजारी
की तरफ
मत देख

जिसे उसके
मंदिर की
जिम्मेदारी
दी गई है

उसका पूजा
करने का
तरीका तुझे
पसंद नहीं भी
हो सकता है

पर यज्ञ
हो रहा है
एक बहुत
विशाल

ईश्वर को
लेकर नहीं
नरक हो
चुके लोकों
के उद्धार
करने के लिये

अवतरित
होने की प्रथा
में परिवर्तन कर
पास किया
जा चुका है

ईश विधेयक
नहीं भेजता
भक्तों के
अवलोकन
के लिये कभी

भक्तों का
विश्वास उसकी
ताकत होती है

आहुति देने
के सामान
के बारे में
पूछ ताछ
करना
सख्त मना है

आचार संहिता
और
सरकार के
भरोसे को
तोड़ने वाले को
जेल भेजने
के लिये
बहुत से कानून
उसने अपने
भक्तों को
बांंटे हुऐ हैं

अब ऐसे में
‘उलूक'
तू यही कहेगा

किसी भी
पुजारी का
आदमी नहीं है

किसी मंदिर
मस्जिद
गुरुद्वारे चर्च से
तुझे कुछ लेना
और देना नहीं है

तो समझ ले
तेरी सारी
परेशानी की
जड़ तू खुद है

इसीलिये
तुझको
राय दी
जा रही है

तेरे और
तेरे जैसे
थोड़े बहुत
कुछ और
बेवकूफों को
बताने के लिये

यज्ञ
हो रहा है
मान ले
आहुति
देने को
तैयार रह

ईश्वर
और भक्तों
की सत्ता को
मत ललकार

पागल
हो जायेगा
आहुति
का सामान
बाजार में भी
मिलता है
खरीद डाल

बिल की
मत सोच
नेकी कर
कुऐं में
डाल दी गई
चीजों की लिस्ट

कभी किसी
जमाने में
खुदाई में
जरूर निकल
कर के आयेंगी

आगे तेरी
ही पीढ़ी में
किसी को
ताम्र पत्र
दिलाने
के काम
आ जायेंगी
ठंड रख।

रविवार, 6 अप्रैल 2014

नहीं पड़ना ठीक होता है बीच में जहाँ कोई किसी और के आलू बो रहा होता है

सुना है कई कई बार
बहुतों ने कहा है
लिखा भी गया है
इस पार से उस पार
आज का नहीं बरसों
पुराना हो गया है
हर काम जो भी
होता है यहाँ कहीं
अल्ला होता है
किसी के लिये
ईसा होता हो 
या कोई भगवान
उसे कह देता है
यहाँ तक
किसी किसी का
शैतान तक
जैसा कहते हैं
कहीं पर सारी
जिम्मेदारियाँ
ले लेता है
ऐसा ही किसी की
रजामंदी होने का
जिक्र जरूर होता है
काम इस तरह
का भी कहीं और
कहीं उस तरह
का भी होता है
किसी को इस को
करने की आजादी
किसी को उस को
करने पर पाबंदी
किसी के लिये
आराम के एक
काम पर दूसरे के
सिर से पैर तक
डर ही डर
इस पहर से
लेकर उस पहर
तक होता है
फिर कोई क्यों
नहीं बताता
हमें भी
उलूक
तू किस लिये
बात को लेकर
सब कुछ इस
तरह से बेधड़क
लिख लेता है
उसकी सत्ता का झंडा
लहरा लहरा कर
अपनी सत्ता को
पक्का कर लेने का
खेल तो उसके ही
सामने सामने
से ही होता है
वो कर रहा
होता है वहाँ पर
जो भी करना होता है
तेरे बस में लिखना है
तू भी कुछ ना कुछ
लिख रहा होता है
पढ़ने वाले के लिये
ना तुझ में ना तेरे
चेहरे पर कुछ कहीं
दिख रहा होता है
अपने अपने ईश्वरों
के दरबार में
हर कोई दस्तक
दे रहा होता है
देश की सेहत को
कुछ नहीं होने
वाला होता है
जहाँ हर कोई
एक गोली गोल
गोल बना कर के
दे रहा होता है । 

शुक्रवार, 29 नवंबर 2013

कभी होता है पर ऐसा भी होता है

मुश्किल
हो जाता है
कुछ
कह पाना
उस
अवस्था में
जब सोच
बगावत
पर उतरना
शुरु हो
जाती है
सोच के
ही किसी
एक मोड़ पर

भड़कती
हुई सोच
निकल
पड़ती है
खुले
आकाश
में कहीं
अपनी मर्जी
की मालिक
जैसे एक
बेलगाम घोड़ी
समय को
अपनी
पीठ पर
बैठाये हुऐ
चरना शुरु
हो जाती है
समय के
मैदान में
समय को ही

बस
यहीं
पर जैसे
सब कुछ
फिसल
जाता है
हाथ से

उस समय
जब लिखना
शुरु हो
जाता है
समय
खुले
आकाश में
वही सब
जो सोच
की सीमा
से कहीं
बहुत बाहर
होता है

हमेशा
ही नहीं
पर
कभी कभी
कुछ देर के
लिये ही सही
लेकिन सच
में होता है

मेरे तेरे
उसके साथ

इसी बेबसी
के क्षण में
बहुत चाहने
के बाद भी
जो कुछ
लिखा
जाता है
उसमें
बस
वही सब
नहीं होता है
जो वास्तव में
कहीं जरूर
होता है

और जिसे
बस समय
लिख रहा
होता है
समय पढ़
रहा होता है
समय ही
खुद सब कुछ
समझ रहा
होता है ।

शनिवार, 11 अगस्त 2012

श्रीमती जी की एक राय

लिख लिख 
और लिख
लिखता ही 

चला जा
पर तुझे वो कुछ 

नहीं है पता 
जो मुझको है पता
बस लिखने से
नहीं होने वाला है
तेरा कुछ भला
इन चार लोगों की
दी हुई टिप्पणियों
पर मत इतरा
कुछ मेरी भी
कभी सुनता जा
कुछ करना ही
चाहता है तो
जूते नये ब्राँडेड
लेकर आ
पालिश लगा
कर चमका
ऎसा एक ही दिन
नहीं करना है
समझ जा
इसे अपनी
रोज की
एक आदत बना
कोट की जेब
वो भी ऊपर वाली
में सफेद रुमाल भी
एक अटका
जरा सा धूल
नजर आये
कहीं भी जूते पर
तो थोड़ा रुक जा
रुमाल फिरा
और जूता चमका
व्यक्तित्व की
एक झलक होता है
किसी का
चमकता हुआ जूता
हींग लगे ना फिटकरी
सबसे सस्ता भी
होता है ये तरीका
जूते पर
कर भरोसा
अब भी समय है
समझ जा
लिखने को
मत आजमा
किसी को नहीं
आता है
तेरे लिखे में
कोई मजा
एक बार अपनी
श्रीमती के
कहने को
भी तो आजमा
फिर देख
कैसे उठता है
लोगों के
दिल से धुआँ ।

मंगलवार, 24 अप्रैल 2012

कूड़ा ही लिख


किसी ने 
कहा है 
क्या 
तुझसे 

कुछ लिख

इस पर 
भी लिख
उस  पर 
भी लिख

कुछ होता 
है अगर
तो होने 
पर लिख

नहीं होता 
है
कुछ तो 
नहीं होने 
पर लिख

सब लिख 
रहे हैं
तू भी 
कुछ लिख

किताब 
में लिख
कापी 
में लिख

नहीं मिलता 
है लिखने 
को तो

बाथरूम 
की ही
दीवारों 
पर ही लिख

पर 
सुन तो 
कुछ
अच्छा सा 
तो लिख

रोमाँस 
पर लिख
भगवान 
पर लिख

फूलों 
पर लिख
आसमान 
पर लिख

औल्ड कब 
तक लिखेगा
कुछ बोल्ड 
ही लिख

लिखना 
छोड़ने को
कहने की 
हिम्मत नहीं

पर इतना 
तो बता

किसने 
कहा 
तुझसे 
'उलूक'

तू कूड़े 
पर लिख

और 
कूड़ा 
कूड़ा 
ही लिख।

चित्र साभार: imageenvision.com

सोमवार, 16 अप्रैल 2012

बातें ही बातें

लिख लिख
कर अपनी
बातों को
अपने से ही
बातें करता हूँ

फिर
दिन भर पन्ना
खोल खोल
कई कई बार
पढ़ा करता हूँ

मेरी बातों
को लेकर
वो सब भी
बातेंं करते हैं

मैं बातेंं ही
करता रहता हूँ
बातों बातों
में कहते
रहते हैं

इन सारी
बातों की
बातों से
एक बात
निकल कर
आती है

बातें
करने का
अंदाज किसी का
किसी किसी
की आँखों में
चुभ जाती है

कोई कर भी
क्या सकता है
इन सब बातों का

वो सीधे कुछ
कर जाते हैं
वो बातें कहाँ
बनाते हैं

मैं कुछ भी
नहीं कर
पाता हूँ
बस केवल
बात बनाता हूँ

फिर
अपनी ही
सारी बातों को
मन ही मन
पढ़ पाता हूँ

फिर
लिख पाता हूँ
कुछ बातें

कुछ बातें
लिख लिख
जाता हूँ

कुछ
लिखने में
सकुचाता हूँ

बस अपने से
बातें करता हूँ

बातों की बात
बनाता हूँ

बस बातें ही
कर पाता हूँ।