घर हमारा
आपको
बहुत ही
स्वच्छ
मिलेगा
कूड़ा
तरतीब
से संभाल
कर के
नीचे
वाले पड़ोसी
की गली में
पौलीथिन में
पैक किया
हुआ मिलेगा
पानी हमारे
घर का
स्वतंत्र रूप
से खिलेगा
वो गंगा
नहीं है कि
सरकार
के इशारों
पर उसका
आना जाना
यहां भी चलेगा
जहाँ उसका
मन चाहेगा
बहता ही
चला जायेगा
किसी की
हिम्मत नहीं है
कि उसपर
कोई बाँध बना
के बिजली
बना ले जायेगा
नालियों में
कभी नहीं बहेगा
जहां भी मन
आये अपनी
उपस्थिति
दर्ज करायेगा
हम ऎसे वैसे
लोग नहीं हैं
अल्मोड़ा शहर
के वासी हैं
गांंधी नेहरू
विवेकानन्द
जैसे महापुरुषों
ने भी कभी
इस जगह की
धूल फाँकी है
इतिहास में
बुद्धिजीवियों
के वारिसों
के नाम से
अभी भी
इस जगह को
जाना जाता है
पानी भी
पी ले
कोई मेरे
शहर का
तो बुद्धिजीवी
की सूची में
अपना नाम
दर्ज कराता है
योगा करना
जिम जाना
आर्ट आफ
लिविंग के
कैम्प लगाना
रामदेव और
अन्ना के
नाम पर
कुर्बान होते
चले जाना
क्या क्या
नहीं आता
है यहां के
लोगों को
सीखना
और
सिखाना
सुमित्रानन्दन पंत
के हिमालय
देख देख
कर भावुक
हो जाते हैं
यहाँ की
आबो हवा
से ही लोग
पैदा होते
ही योगी
हो जाते है
छोटी छोटी
चीजें फिर
किसी को
प्रभावित नहीं
करती यहाँ
कैक्टस के
जैसे होकर
पानी लोग
फिर कहाँ
चाहते हैं
अब आप को
नालियों और
कूड़े की पड़ी
है जनाब
तभी कहा
जाता है
ज्यादा पढ़ने
लिखने वाले
लोग बहुत
खुराफाती
हो जाते हैं
अमन चैन
की बात
कभी भी
नहीं करते
फालतू बातों
को लोगो को
सुना सुना
सबका दिमाग
खराब यूँ ही
हमेंशा करने
यहाँ भी
चले आते हैं।
आपको
बहुत ही
स्वच्छ
मिलेगा
कूड़ा
तरतीब
से संभाल
कर के
नीचे
वाले पड़ोसी
की गली में
पौलीथिन में
पैक किया
हुआ मिलेगा
पानी हमारे
घर का
स्वतंत्र रूप
से खिलेगा
वो गंगा
नहीं है कि
सरकार
के इशारों
पर उसका
आना जाना
यहां भी चलेगा
जहाँ उसका
मन चाहेगा
बहता ही
चला जायेगा
किसी की
हिम्मत नहीं है
कि उसपर
कोई बाँध बना
के बिजली
बना ले जायेगा
नालियों में
कभी नहीं बहेगा
जहां भी मन
आये अपनी
उपस्थिति
दर्ज करायेगा
हम ऎसे वैसे
लोग नहीं हैं
अल्मोड़ा शहर
के वासी हैं
गांंधी नेहरू
विवेकानन्द
जैसे महापुरुषों
ने भी कभी
इस जगह की
धूल फाँकी है
इतिहास में
बुद्धिजीवियों
के वारिसों
के नाम से
अभी भी
इस जगह को
जाना जाता है
पानी भी
पी ले
कोई मेरे
शहर का
तो बुद्धिजीवी
की सूची में
अपना नाम
दर्ज कराता है
योगा करना
जिम जाना
आर्ट आफ
लिविंग के
कैम्प लगाना
रामदेव और
अन्ना के
नाम पर
कुर्बान होते
चले जाना
क्या क्या
नहीं आता
है यहां के
लोगों को
सीखना
और
सिखाना
सुमित्रानन्दन पंत
के हिमालय
देख देख
कर भावुक
हो जाते हैं
यहाँ की
आबो हवा
से ही लोग
पैदा होते
ही योगी
हो जाते है
छोटी छोटी
चीजें फिर
किसी को
प्रभावित नहीं
करती यहाँ
कैक्टस के
जैसे होकर
पानी लोग
फिर कहाँ
चाहते हैं
अब आप को
नालियों और
कूड़े की पड़ी
है जनाब
तभी कहा
जाता है
ज्यादा पढ़ने
लिखने वाले
लोग बहुत
खुराफाती
हो जाते हैं
अमन चैन
की बात
कभी भी
नहीं करते
फालतू बातों
को लोगो को
सुना सुना
सबका दिमाग
खराब यूँ ही
हमेंशा करने
यहाँ भी
चले आते हैं।