रेल की
पटरी पर
दौड़ती हुई
एक रेलगाड़ी
एक दिशा में
और
दूर जाते
उल्टी
दिशा में
भागते हुऐ
पेड़ पौँधें
मैदान खेत
पहाड़
सब कुछ
और
बहुत कुछ
अपना देश
अपने दृष्य
अपनी सोच भी
दौड़ती हुई
साथ में
रुकती हुई कुछ
अटकते हुऐ
मजबूर करते हुऐ
सोचने के लिये
कुछ शौच पर भी
सामने दिखते हुऐ
खुले आकाश के नीचे
शौच पर बैठे हुऐ
एक के बाद एक
थोड़े से नहीं
बहुत से लोगों को
सूरज
और उसकी
रोशनी का भी
कोहरे से छुपने
का एक
असफल प्रयास
हो रहा हो जैसे
थरथराती
निकलती
दौड़ती
रेलगाड़ी
बेखबर
जैसे
दिखते हुऐ पर
कुछ कहने की
उसे जरूरत नहीं
और
शौच पर
क्या कुछ
कहा जाये
हर चीज पर
कुछ लिख
लिया जाये
इसकी भी
मजबूरी नहीं
फिर गर्व
होता हुआ
सा कुछ कुछ
घर पर बने
शौचालयों पर
और कुछ
कुछ इतना
पढ़े लिखे
भी होने पर
सोच सके जो
शौच की सोच
शौच और
शौचालय पर
दिखाये जा रहे
विज्ञापनों को
अंतर उनमें
और मुझ में
बस इतना
वो विज्ञापन
देखते हैं
और
चले आते हैं
खुले आकाश
के नीचे
और मैं
अपनी
बंद सोच
के साथ
शौच के बाद
दूरदर्शन
पर बैठा
देख रहा
होता हूँ
एक विज्ञापन
शौच की
सोच का
अब शौच
भी कोई
विषय है
सोच कर
कुछ लिख
लेने के लिये
कौन समझाये
किस को ?
चित्र साभार: www.michellehenry.fr
पटरी पर
दौड़ती हुई
एक रेलगाड़ी
एक दिशा में
और
दूर जाते
उल्टी
दिशा में
भागते हुऐ
पेड़ पौँधें
मैदान खेत
पहाड़
सब कुछ
और
बहुत कुछ
अपना देश
अपने दृष्य
अपनी सोच भी
दौड़ती हुई
साथ में
रुकती हुई कुछ
अटकते हुऐ
मजबूर करते हुऐ
सोचने के लिये
कुछ शौच पर भी
सामने दिखते हुऐ
खुले आकाश के नीचे
शौच पर बैठे हुऐ
एक के बाद एक
थोड़े से नहीं
बहुत से लोगों को
सूरज
और उसकी
रोशनी का भी
कोहरे से छुपने
का एक
असफल प्रयास
हो रहा हो जैसे
थरथराती
निकलती
दौड़ती
रेलगाड़ी
बेखबर
जैसे
दिखते हुऐ पर
कुछ कहने की
उसे जरूरत नहीं
और
शौच पर
क्या कुछ
कहा जाये
हर चीज पर
कुछ लिख
लिया जाये
इसकी भी
मजबूरी नहीं
फिर गर्व
होता हुआ
सा कुछ कुछ
घर पर बने
शौचालयों पर
और कुछ
कुछ इतना
पढ़े लिखे
भी होने पर
सोच सके जो
शौच की सोच
शौच और
शौचालय पर
दिखाये जा रहे
विज्ञापनों को
अंतर उनमें
और मुझ में
बस इतना
वो विज्ञापन
देखते हैं
और
चले आते हैं
खुले आकाश
के नीचे
और मैं
अपनी
बंद सोच
के साथ
शौच के बाद
दूरदर्शन
पर बैठा
देख रहा
होता हूँ
एक विज्ञापन
शौच की
सोच का
अब शौच
भी कोई
विषय है
सोच कर
कुछ लिख
लेने के लिये
कौन समझाये
किस को ?
चित्र साभार: www.michellehenry.fr