श्राद्ध पक्ष अष्टमी पिता जी का श्राद्ध
सुबह सुबह पंडित जी करवा कर गये आज
साथ में श्राद्ध में प्रयोग हुऐ व्यँजनों को
किसी भी गाय को खिलाने का निर्देश भी दे गये
गलती से भी
कौर खाने का किसी बैल के मुँह में
गाय से पहले ना लगे जरा सा
खबरादर भी कर के गये
श्राद्ध करने कराने तक तो सब
आसान सा ही लग रहा था
कोई मुश्किल नहीं पड़ी थी
सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था
गाय की बात आते ही
समस्या लेकिन बड़ी एक खड़ी हो गई थी
रोज कई दिनों से अखबार टी वी रेडियो
जगह जगह से गाय गाय की माला जपना
हर किसी का दिखता हुआ मिल रहा था
गाय को देखे सुने कई जमाने हो चुके थे
घर के आस पास दूर दूर तक
गाय का पता नहीं मिल रहा था
घर से निकला
हर दुकान में गाय का
प्लास्टिक का पुतला जरूर दिख रहा था
पीठ में एक छेद था पैसा डालने के लिये
आगे कहीं एक नगरपालिका का कूड़ेदान दिख रहा था
एक घायल बैल
प्लास्टिक के एक बंद थेले के अंदर के
कचरे के लिये जीजान से उस पर पिल रहा था
‘उलूक’ चलता ही जा रहा था
गाय की खोज में
गाय गाय सोचता हुआ चल रहा था
खाने से भरा थैला
उसके दायें हाथ से कभी बायें हाथ में
कभी बायें हाथ से दायें हाथ में
अपनी जगह को बार बार बदल रहा था ।
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