बस भी कर
रहने दे
परेशान
हो गये हैं
अक्षर
शायद सभी
तेरी बातों
में आकर
तेरे लिये
तेरी बातें
बनाते बनाते
बख्स भी दे
अच्छा नहीं है
रहने दे
परेशान
हो गये हैं
अक्षर
शायद सभी
तेरी बातों
में आकर
तेरे लिये
तेरी बातें
बनाते बनाते
बख्स भी दे
अच्छा नहीं है
उछल कूद
कराना
इतना ज्यादा
दुखने लगे
हैं जोड़
ऊपर से लेकर
नीचे तक
अक्षरों को
हो सके तो
इतना
मत तोड़
अक्षर भी
जुड़ते हैं
मेहनत से
खुद ही
हर जगह
सबके साथ
सीधे सीधे
सीधे रास्ते के
होते हैं आदी
सीधे अक्षर
सभी जोड़ते हैं
अपने अपने
हिसाब से
कहीं कोई
कष्ट नहीं
होता है
ज्यादातर का
जोड़ घटाना
गुणा भाग
एक सा
होता है
आदत हो
जाती है
अक्षरों
को भी
जोड़ घटाना
गुणा भाग
करने वालों
को भी
एक दूसरे की
तेरा जैसा भी
बहुत सारों
के बीच में
कोई एक
होता है
तोड़ता है
मरोड़ता है
सीधे रास्तों
को छोड़ता है
पकड़ लेता है
कोई ना कोई
खूंटा कहीं
दीवार का
छोड़ कर
पेड़ पर जैसे
टाँक कर
अक्षरों को
छोड़ देता है
कब तक
सहे कोई
होता है
विद्रोही
सीधे साधे
चलने का
आदी अक्षर
जब कभी
बहुत ज्यादा
उन्हे टेढ़ा मेढ़ा
बना कर
टेढ़े मेढ़े
रास्ते में
मजबूरन
चलने के लिये
घुसेड़ देता है
पढ़ने वाला भी
रोज रोज के
टेढ़े मेढ़े को
देख कर
आना ही
छोढ़ देता है
इसीलिये
फिर से सुन
बस भी कर
रहने दे
परेशान
हो गये हैं
अक्षर
शायद सभी
तेरी बातों
में आकर
तेरे लिये
तेरी बातें
बनाते बनाते
किसी दिन
एक दिन
के लिये
ही सही
अक्षरों को
तोड़ना
मरोड़ना
और
निचोड़ना
छोड़ कर
उन्हे भी
कुछ
सीधे रास्ते
का
सीधा साधा
विराम
क्यों नहीं
कुछ दे
देता है ।
चित्र सभार: www.shutterstock.com
कराना
इतना ज्यादा
दुखने लगे
हैं जोड़
ऊपर से लेकर
नीचे तक
अक्षरों को
हो सके तो
इतना
मत तोड़
अक्षर भी
जुड़ते हैं
मेहनत से
खुद ही
हर जगह
सबके साथ
सीधे सीधे
सीधे रास्ते के
होते हैं आदी
सीधे अक्षर
सभी जोड़ते हैं
अपने अपने
हिसाब से
कहीं कोई
कष्ट नहीं
होता है
ज्यादातर का
जोड़ घटाना
गुणा भाग
एक सा
होता है
आदत हो
जाती है
अक्षरों
को भी
जोड़ घटाना
गुणा भाग
करने वालों
को भी
एक दूसरे की
तेरा जैसा भी
बहुत सारों
के बीच में
कोई एक
होता है
तोड़ता है
मरोड़ता है
सीधे रास्तों
को छोड़ता है
पकड़ लेता है
कोई ना कोई
खूंटा कहीं
दीवार का
छोड़ कर
पेड़ पर जैसे
टाँक कर
अक्षरों को
छोड़ देता है
कब तक
सहे कोई
होता है
विद्रोही
सीधे साधे
चलने का
आदी अक्षर
जब कभी
बहुत ज्यादा
उन्हे टेढ़ा मेढ़ा
बना कर
टेढ़े मेढ़े
रास्ते में
मजबूरन
चलने के लिये
घुसेड़ देता है
पढ़ने वाला भी
रोज रोज के
टेढ़े मेढ़े को
देख कर
आना ही
छोढ़ देता है
इसीलिये
फिर से सुन
बस भी कर
रहने दे
परेशान
हो गये हैं
अक्षर
शायद सभी
तेरी बातों
में आकर
तेरे लिये
तेरी बातें
बनाते बनाते
किसी दिन
एक दिन
के लिये
ही सही
अक्षरों को
तोड़ना
मरोड़ना
और
निचोड़ना
छोड़ कर
उन्हे भी
कुछ
सीधे रास्ते
का
सीधा साधा
विराम
क्यों नहीं
कुछ दे
देता है ।
चित्र सभार: www.shutterstock.com