बहुत कुछ है
लिखने के लिये बिखरा हुआ
समेटना ठीक नहीं इस समय
रहने देते हैं
होना कुछ नहीं है हिसाब का
बेतरतीब ला कर
और बिखेर देते हैं
बहे तो बहने देते हैं
दीमकें जमा होने लगी हैं फिर से
नये जोश नयी ताकतों के साथ
कतारें कुछ सीधी कुछ टेढ़ी
कुछ थमने देते हैं
आती नहीं है नजर
मगर होती है खूबसूरत
आदेश कतारबद्ध होने के
रानी को
घूँघट के पीछे से देने देते हैं
तरीके लूटने के नये
अंगुलियाँ अंगुलीमाल के लिये
साफ सफाई हाथों की जरूरी है
डेटोल डाल कर धोने देते हैं
बज रही हैं दुंदुभी रण की
कोई नहीं है कहीं दूर तक
शोर को गोलियों के
संगीत मान चुके सैनिकों को
सोने देते हैं
दहाड़ सुनते हैं
कुछ कागज के शेरों की
उन्हें भी शहर के जंगलों की
कुछ कागजी कहने देते हैं
लिखना क्या सफेद कागज पर
काली लकीरों को
नावें बना कर रेत की नदी में
तेजी से बहने देते हैं
गाँधी झूठ के पर्याय
खुल के झूठ बोलते रहे हैं सुना है
सच तोलने वालों को चलो अब
खुल के उनके अपने नये बीज
बोने देते हैं
सच है दिखता है
उनके अपने आईने से जो भी
उन्हें सम्मानित कर ही देते हैं
अखबार के पन्ने सुबह के
बता देते हैं
पढ़ने वालों में से कुछ रो ही लेते हैं
तो रोने देते हैं
बकवास करने में लगे कर
जारी हों लाईसेंस
सेंस में रहना अच्छा नहीं
नाँनसेंस ‘उलूक’ जैसे
अपनी कह कह कर
किसी और को कुछ कहने नहीं देते हैं ।
चित्र साभार: clipartimage.com/