उलूक टाइम्स: स्मारक
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शुक्रवार, 28 नवंबर 2014

बलात्कार चीत्कार व्यभिचार पर स्मारक बनें खूब बने बनाने बनवाने में किसलिये करना है और क्यों करना है कुछ भी विचार


क्या किया जाये बहुत बार होता है
लिखा जाये या नहीं लिखा जाये

होता है होता है
एक पूरा आदमी हो जाने से ही
सब कहाँ होता है

जैसे कि एक कच्ची रह गई सोच में हो
वही सब कुछ
जो किसी और की सोच से बाहर
आता हुआ तो दिखता है
पर अपनी ऊपर की मंजिल में ही बस
उसका पता नहीं मिलता है

होता है होता है
जैसे कि बहुत सी चीज अजीब लगती होती हैं
होती हुई अपने ही आस पास
पर बनती हैं इतिहास
बैचेनी होने लगती है देख देख कर कभी
और कुछ कुछ होता है

इतिहास हो जाती हैं आदत हो जाती है
फिर कुछ नहीं होता है
आदत हो गई होती है सब कर रहे होते हैं
कुछ नहीं कह रहे होते हैं

एक सामान्य सी ही बात हो जाती है
समझ में नहीं भी आती है तब भी
बहुत अच्छी तरह आ रही है
देखी और दिखाई जाती है
दिखाना पड़ता है

जैसे अपनी और अपनों की ही बात हो जा रही है
कहा नहीं भी जाता है पर जमाना मान जाता है

शहीदों की चिताओं पर लगने वाले मेलों की बात
एक इतिहास हो जाता है

जमाना बदलता है 
बलात्कार व्यभिचार अत्याचार और
ना जाने क्या क्या
सब पर ही बनाया जाता है

स्मारक दर स्मारक
स्मारक के ऊपर स्मारक चढ़ाया जाता है
कुछ समझ में आता भी है
कुछ समझ में नहीं भी आता है ।

चित्र साभार: www.clipartlogo.com