आईये
फिर से
शुरु हो जायें
गिनती करना
उम्मीदों की
उम्मीदें
किसकी कितनी
उम्मीदें कितनी
किससे उम्मीदें
हर बार
की तरह
फिर एक बार
मुड़ कर देखें
कितनी
पूरी हो गई
कितनी अधूरी
खुद ही रास्ते में
खुद से ही
उलझ कर
कहीं खो गई
आईये
फिर से उलझी
उम्मीदों को
उनके खुद के
जाल से
निकाल कर
एक बार
और सुलझायें
धो पोछ कर
साफ करें
धूप दिखायें
कुछ लोबान
का धुआँ
लगायें
कुछ फूल
कुछ पत्तियाँ
चढ़ायें
कुछ
गीत भजन
उम्मीदों के
फिर से
बेसुरे रागों
में अलापें
बेसुरे हो कर
सुर में
सुर मिलायें
आईये
फिर से
कमजोर
हो चुकी
उम्मीदों की
कमजोर
हड्डियों की
कुछ
पन्चगुण
कुछ
महानारयण
तेल से
मालिश
करवायें
आह्वान करें
आयुर्वेदाचार्यों का
पुराने अखाड़ों
को उखाड़ फेंक
नयी कुश्तियाँ
करवाने के
जुगाड़ लगवायें
आईये
हवा से हवा में
हवा मारने
की मिसाईलें
अपनी अपनी
कलमों में
लगवायें
करने दें
कुर्सीबाजों
को सत्यानाश
सभी का
खीज निकालें
खींस निपोरें
बेशरम हो जायें
करने वाले
करते रहें
मनमानी
कुछ ना
कर सकने का
शोक मनायें
बहुत
लिख लिया
‘उलूक’
पिछ्ले साल
अगले साल
के लिये
बकवासों की
फिर से
बिसात बिछायें
इकतीस
दिसम्बर
को लुढ़कें
होश गवायें
एक
साल बाद
उठ कर
कान
पकड़ कर
माफी माँग
फिर से
शुरु हो जायें।
(श्वेता जी के अनुरोध पर 2018 की शुभकामनाओं के साथ) :
चित्र साभार: http://tvtropes.org
फिर से
शुरु हो जायें
गिनती करना
उम्मीदों की
उम्मीदें
किसकी कितनी
उम्मीदें कितनी
किससे उम्मीदें
हर बार
की तरह
फिर एक बार
मुड़ कर देखें
कितनी
पूरी हो गई
कितनी अधूरी
खुद ही रास्ते में
खुद से ही
उलझ कर
कहीं खो गई
आईये
फिर से उलझी
उम्मीदों को
उनके खुद के
जाल से
निकाल कर
एक बार
और सुलझायें
धो पोछ कर
साफ करें
धूप दिखायें
कुछ लोबान
का धुआँ
लगायें
कुछ फूल
कुछ पत्तियाँ
चढ़ायें
कुछ
गीत भजन
उम्मीदों के
फिर से
बेसुरे रागों
में अलापें
बेसुरे हो कर
सुर में
सुर मिलायें
आईये
फिर से
कमजोर
हो चुकी
उम्मीदों की
कमजोर
हड्डियों की
कुछ
पन्चगुण
कुछ
महानारयण
तेल से
मालिश
करवायें
आह्वान करें
आयुर्वेदाचार्यों का
पुराने अखाड़ों
को उखाड़ फेंक
नयी कुश्तियाँ
करवाने के
जुगाड़ लगवायें
आईये
हवा से हवा में
हवा मारने
की मिसाईलें
अपनी अपनी
कलमों में
लगवायें
करने दें
कुर्सीबाजों
को सत्यानाश
सभी का
खीज निकालें
खींस निपोरें
बेशरम हो जायें
करने वाले
करते रहें
मनमानी
कुछ ना
कर सकने का
शोक मनायें
बहुत
लिख लिया
‘उलूक’
पिछ्ले साल
अगले साल
के लिये
बकवासों की
फिर से
बिसात बिछायें
इकतीस
दिसम्बर
को लुढ़कें
होश गवायें
एक
साल बाद
उठ कर
कान
पकड़ कर
माफी माँग
फिर से
शुरु हो जायें।
(श्वेता जी के अनुरोध पर 2018 की शुभकामनाओं के साथ) :
चित्र साभार: http://tvtropes.org