उलूक टाइम्स

गुरुवार, 4 अक्तूबर 2012

पकौड़ी


दर्द जब होता है हर कोई दवाई खाता है
तुझे क्या ऎसा होता है कलम उठाता है ।

रोशनी के साथ मिलकर ही इंद्रधनुष बनाता है
अंधेरे में आँसू भी हो तो पानी हो जाता है ।

सपना देखता है एक तलवार चलाता है
लाल रंग की स्याही देखते ही डर जाता है ।

सोच को चील बना ऊँचाई पर ले जाता है
ख्वाब चीटियों से भरा देख कर मुर्झाता है ।

हुस्न और इश्क की कहानी बहुत सुनाता है
अपनी कहानी मगर हमेशा भूल जाता है ।

बहुत सोचने समझने के बाद समझाता है
समझने वाला हिसाब लेकिन खुद लगाता है ।

दुखी होता है जब जंगल निकल जाता है
डाल पर उल्लुओं को देख कर मुस्कुराता है ।

रोज का रोज मान लिया जलेबी बनाता है
पकौड़ी बन गई कभी किसी का क्या जाता है ।
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जलेबी तो हो गयी पकौड़ी अब इस पर 
रविकर जी की टिप्पणी का मजा लीजिये




रोज जलेबी खा रहा, हो जाता मधुमेह |
इसीलिए दिखला रहा, आज पकौड़ी नेह |

आज पकौड़ी नेह, खूब चटकारे मारे |
लेता जम के खाय, रात बार बड़ा डकारे |

सके न चूरन फांक, जगह जो पूरी फुल है |
बैठा जाके शाख, यही तो इसका हल है ||
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चित्र साभार: peurecipes.blogspot.com