उलूक टाइम्स

मंगलवार, 4 मार्च 2014

तेरी कहानी का होगा ये फैसला नही था कुछ पता इधर भी और उधर भी

वो जमाना
नहीं रहा
जब उलझ
जाते थे
एक छोटी सी
कहानी में ही
अब तो
कितनी गीताऐं
कितनी सीताऐं
कितने राम
सरे आम
देखते हैं
रोज का रोज
इधर भी
और उधर भी
पर्दा गिरेगा
इतनी जल्दी
सोचा भी नहीं था
अच्छा किया
अपने आप
बोल दिया उसने
अपना ही था
अपना ही है
सिर पर हाथ रख
कर बहुत आसानी से
उधर भी और इधर भी
हर कहाँनी
सिखाती है
कुछ ना कुछ
कहा जाता रहा है
देखने वाले का
नजरिया देखना
ज्यादा जरूरी होता है
सुना जाता है
उधर भी और इधर भी
कितना अच्छा हुआ
मेले में बिछुड़ा हुआ
कोई जैसे बहुत दूर से
आकर बस यूँ ही मिला
दूरबीन लगा कर
देखने वालों को
मगर कुछ भी
ना मिला देखने
को सिलसिला कुछ
इस तरह का
जब चल पड़ा
इधर भी और उधर भी
उसको भी पता था
इसको भी पता था
हमको भी पता था
होने वाला है
यही सब जा कर अंतत:
इधर भी और उधर भी
रह गया तो बस
केवल इतना गिला
देखा तुझे ही क्योंकर
इस तरह सबने
इतनी देर में जाकर
तीरंदाज मेरे घर में
भी थे तेरे जैसे कई
इधर भी और उधर भी
खुल गया सब कुछ
बहुत आसानी से
चलो इस बार
अगली बार रहे
ध्यान इतना
देखना है सब कुछ
सजग होकर तुझे
इधर भी और उधर भी ।