उलूक टाइम्स

रविवार, 23 मार्च 2014

जिसकी समझ में नहीं आती है वही समझा जाता है

दो चार आठ पास भी हो जाता है
अ आ क ख 
बस पढ़ना कुछ सीख जाता है
लिखना कोई बहुत बड़ी बात कभी नहीं होती है
शुरु करना होता है चलता चला जाता है
क्या लिखा गया है
इससे किसी को क्या हो जाता है
एक के लिखने विखने की बात को
दूसरे 
लिखने वाले को पता
ऐसे या वैसे कभी ना कभी चल ही जाता है
उसे पता नहीं इस बात को सुन कर
कुछ कुछ जैसा कहीं पर हो जाता है
एक दिन नहीं कहता है
दूसरे दिन कुछ और बात की बात कह ले जाता है
तीसरे दिन जब नहीं रहा जाता है
कह बैठता है
अब लिखना ही है तो कविता क्यों नहीं लिखता है‌‌
उल जलूल लिखने से किसी को क्या मिल जाता है
कविता किसी की 
कोई बेचना चाह कर भी नहीं बेच पाता है
फिर भी एक बिल्ला लगाने भर के लिये
कभी ना कभी कोई दे ही जाता है
किताब कविता की छपवा सका एक दो कभी कहीं अगर
बेरोजगार होने का टोकन हट जाता है
आदमी है कहे ना कहे कोई
कवि है कहना आसान हो जाता है
अंधे का बताया अंधा समझता है
बहरे को बहरे का सुनाई दे जाता है
कवि की कविता से कवि का लेना देना
कभी नहीं होता है 
जब मौका मिलता है दूसरे को अपनी सुनाने के लिये चढ़ जाता है
अपनी बात बात होती है
दूसरे की बात सुनना छोड़ देखने तक नहीं जाता है
अब किस किस को समझाये "उलूक" 
लात खाने की बात को किस किस से जा कर कहा जाता है
लातें पड़ती रहती है कभी कम कभी ज्यादा
पड़ ही जाती है तो सहना ही पड़ जाता है
कुछ को आदत सी हो जाती है कुछ मजे लेते हैं
कुछ बेशरम होते हैं 
कुछ शरमा शरमी थोड़ा कुछ कह देते हैं
कविता करने वाले कवि लोग इन सब से
बहुत उपर के पायदान में होते हैं
जब भी धरती में कहीं कोई रो रहा होता है
उनके सामने बादल भी हों
तब भी एक चाँद कहीं से निकल कर आ जाता है
और 
कहना ना कहना उसी पर हो जाता है
अब इतनी लम्बी सुनने का समय उसे कहाँ हो पाता है
वो तो चल दिया होता है कभी का
बस ये कह कर
तू भी कभी एक कवि क्यों नहीं हो जाता है ।