उलूक टाइम्स

गुरुवार, 11 सितंबर 2014

बीमार था आदतन भरे पेट रोटियों पर झपट रहा था


कई सालों से
जिसे 
एक चिराग मान कर 
उसके कुछ फैलाने को रोशनी समझ रहा था 

पता नहीं क्या क्या था 
और क्या क्या नहीं था
किस को क्या और किस को क्या
कोई 
क्यों समझ रहा था 

चिराग है वो एक 
उसने ही कहा था 
सभी से और मुझ से भी 

एक बड़े झूठ को 
उसके कहने पर
जैसे 
सच मुच का सच मैं समझ रहा था 

रुई की लम्बी बाती 
बस एक ही नहीं थी
और बहुत सारी अगल और बगल में भी रख रहा था 
सिरा उसके पास ही था सभी का
और 
पूँछ से जिनकी कई और चिरागों से 
कुछ ना कुछ चख रहा था 

अपने तेल के स्तर 
को बराबर
उसी 
स्तर पर बनाये भी रख रहा था 
भूखे चिरागों के लड़ने की ताकत को
उनके तेल के 
स्तर के घटने से परख रहा था 

रोशनी की बातों को 
रोशनी में
बहुत जोर 
दे दे कर सामने से 
जनता के रख रहा था 

एक खोखला चिराग 
रोशन चिराग का पता
अपनी छाती 
पर चिपकाये 
पता नहीं कब से कितनों को ठग रहा था 

अंधा ‘उलूक’ 
अंधेरे में बैठा दोनों आँख मूँदे 
ना जाने कब से रोशनी ही रोशनी 
बस बक रहा था । 


चित्र साभर: http://www.shutterstock.com/