उलूक टाइम्स

मंगलवार, 20 जनवरी 2015

खुली बहस होने से अच्छा बंद आँखों से देखना होता है किताबों से बाहर की एक बात जब किसी दिन बताई जाती है

एक लम्बे अर्से से
कूऐं की तलहटी
से मुँडेर तक की
छोटी सी उछाल में
सिमटी हुई जिंदगी
रंगीन हो जाती है
जब एक कूऐं से
होते होते सोच
एक दूसरे कूऐं में
दूर जाकर कहीं
डूब कर तैर कर
नहा धो कर आती है
कई नई बातें सीखने
को मिलती हैं और
कई पुरानी बातों की
असली बात निकल
कर सामने आती है
जरूरी होता है पक्ष
में जाकर बैठ जाना
उस समय जब विपक्ष
में बैठने से खुजली
शुरु हो जाती है
बहस करने की
बात कहना ही एक
गुनाह के बराबर होता है
उस समय जब
अनुशाशन के साथ
शाशन के मुखोटे
बैचने वालों के
चनों में भूनते भूनते
आग लग जाती है
आ गया हो फिर
समय एक बार
दिखाने का अक्ल से
घास किस तरह
खाई जाती है
लोकतंत्र का मंत्र
फिर से जपना
शुरु कर चलना
शुरु कर चुकी होती हैं
कुछ काली और
कुछ सफेद चींंटियाँ
अखबार के सामने
के पन्ने रेडियो
दूर दर्शन में
हाथी दिखाई जाती है
बहुत छोटी होती है
यादाश्त की थैलियाँ
चींंटियों के आकार के
सामने कहाँ कुछ
याद रहता है
कहाँ कुछ याद करने
की जरूरत ही रह जाती है
कृष्ण हुऐ थे
किस जमाने में
और इस जमाने में
गीता सुनाई जाती है
कतारें चींंटियों की
फिर लगेंगी युद्ध
होने ना होने की
बातें हो ना हों
दुँदुभी हर किसी
के हाथ में
बिना आवाज
की बजती
दिखाई जाती है
मेंढकी खयाल ही
सबसे अच्छा
खयाल होता है
अपने कुऐं में
वापस लौट कर
आने पर बात पूरी
समझ में आती है ।

चित्र साभार: www.shutterstock.com