उलूक टाइम्स

शनिवार, 4 अप्रैल 2015

सपने बदलने से शायद मौसम बदल जायेगा

किसी दिन
नहीं दिखें
शायद
सपनों में
शहर के कुत्ते
लड़ते हुऐ
नोचते हुऐ
एक दूसरे को
बकरी के नुचे
माँस के एक
टुकड़े के लिये

ना ही दिखें
कुछ बिल्लियाँ
झपटती हुई
एक दूसरे पर
ना नजर आये
साथ में दूर
पड़ी हुई
नुची हुई
एक रोटी
जमीन पर

ना डरायें
बंदर खीसें
निपोरते हुऐ
हाथ में लिये
किसी
दुकान से
झपटे हुऐ
केलों की
खीँचातानी
करते हुऐ
कर्कश
आवाजों
के साथ

पर अगर
ये सब
नहीं दिखेगा
तो दिखेंगे
आदमी
आस पास के
शराफत
के साथ
और
अंदाज
लूटने
झपटने का
भी नहीं
आयेगा
ना आयेगी
कोई
डरावनी
आवाज ही
कहीं से

बस काम
होने का
समाचार
कहीं से
आ जायेगा

सुबह टूटते
ही नींद
उठेगा डर
अंदर का
बैठा हुआ
और
फैलना शुरु
हो जायेगा
दिन भर
रहेगा
दूसरे दिन
की रात
को फिर
से डरायेगा

इससे
अच्छा है
जानवर
ही आयें
सपने में रोज
की तरह ही

झगड़ा कुत्ते
बिल्ली बंदरों
का
रात में ही
निपट जायेगा
जो भी होगा
उसमें वही होगा
जो सामने से
दिख रहा होगा

 खून भी होगा
गिरा कहीं
खून ही होगा
मरने वाला
भी दिखेगा
मारने वाला भी
नजर आयेगा

‘उलूक’
जानवर
और आदमी
दोनो की
ईमानदारी
और सच्चाई
का फर्क तेरी
समझ में
ना जाने
कब आयेगा

जानवर
लड़ेगा
मरेगा
मारेगा
मिट जायेगा

आदमी
ईमानदारी
और
सच्चाई को
अपने लिये ही
एक छूत
की बीमारी
बस बना
ले जायेगा

कब
घेरा गया
कब
बहिष्कृत
हुआ
कब
मार
दिया गया

घाघों के
समाज में
तेरे
सपनों के
बदल जाने
पर भी
तुझे पता
कुछ भी
नहीं चल
पायेगा ।


चित्र साभार: http://www.clker.com/