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मंगलवार, 19 मार्च 2019

इस होली पर दिखा देता हजार रंग गिरगिट क्या करे मगर चुनाव उसके सामने से आ जाता है

होली

खेल
तो सही

थोड़ी सी

हिम्मत की
जरूरत है

सात रंग
तेरे
बस में नहीं

तेरी
सबसे बड़ी
मजबूरी है

बातों
में तेरे
इंद्र भी
दिखता है

धनुष भी

तू
किसी तरह
भाषण में
ले आता है

इन्द्र धनुष
लेकिन
कहीं भी

तेरे
आस पास
दूर दूर तक
नजर
नहीं आता है

रंग ओढ़ना

कोई
तुझसे सीखे

इसमें कोई
शक नहीं है

होने भी
नहीं देगा
तू

तेरे
शातिर
होने का

असर
और पता

मेरे
घर में

मेरे
अपनों की

हरकत से
चल जाता है

कुत्तों
की बात

इन्सानों
के बीच में

कहीं पर
होने लगे

अजीब
सी बात
हो जाती है

आठवाँ
आश्चर्य
होता है

जब
आदमी भी

किसी
के लिये

कुत्ते
की तरह
भौंकना

शुरु
हो जाता है

सारे रंग
लेकर
चले कोई
उड़ाने
भी लगे

किसे
परेशानी है

घर का
मुखिया
ही बस

एक लाल
रंग के लिये

वो भी
पर्दा
डाल कर

पीछे
पड़ जाता है

तो
रोना आता है

मुबारक
हो होली

सभी
चिट्ठाकारों को

टिप्पणी
करने
वालों

और
नहीं करने
वालों को भी

टिप्पणी
के साथ
मुफ्त
टिप्पणी
के ऑफर
के साथ

इन्सान
ही होता है

गलती
से चिट्ठा भी
लिखने लगता है

चिट्ठाकारों
में शामिल
भी हो जाता है

‘उलूक’
को तो
वैसे भी

नहीं
खेलनी है
होली

इस होली में

बिरादरी में
किसी का
मर जाना

त्यौहार ही
उठा
ले जाता है ।

चित्र साभार:
https://www.theatlantic.com/

रविवार, 2 दिसंबर 2018

गिरोहबाज गिरोहबाजी सब बहुत अच्छे हैं हाँ कहीं भी नहीं होना कुछ अलग बात है

गिरोह बनाना
अलग बात है
गिरोह बनाते बनाते
एक गिरोह हो जाना

अलग बात है

पिट्सबर्ग़
के कुत्तों का
कुछ दिनों तक
खबरों में रहना

अलग बात है

पैंसेल्विनिया
के सियारों का
सब कुछ हो जाना
समय बदलने के साथ

अलग बात है

गिरोह में
शामिल होकर भी
कुछ अलग नजर आना

अलग बात है

गिरोहबाज
के साथ रहकर भी
गिरोहबाज का
नजर नहीं आना

अलग बात है

अलग बात है

किसी भी गिरोह में
शामिल ना होकर
जिंदा रह लेना

गिरोहों का जलवा होना
जलवों से कुछ अलग रह लेना

अलग बात है

अलग अलग दिखना
अलग अलग गिरोहों को
कितनी अलग बात है

इस गिरोह से
उस गिरोह तक
बिना दिखे
कहीं भी
नहीं दिखायी देना

सबसे अलग बात है

मलाई की
एक मोटी परत
दूध के ऊपर से दिखना

अलग बात है

दूध का
नीचे नीचे से
यूँ ही कहीं और
को खिसक लेना

अलग बात है

गिरोहबाजों
के आसपास ही
भीड़ का हर समय
नजर आना

अलग बात है

इस गिरोह से
उस गिरोह
किसी के
आने जाने को
नजर अन्दाज
कर ले जाना

अलग बात है

‘उलूक’
किसी ने
नहीं रोका है
किसी को

किसी भी
गिरोह के साथ
आने जाने के लिये

तेरी
मजबूरी
तू जाने

गिरोहबाजों
के बीच
रहकर भी
गिरोहबाजी
लिख ले जाना

अलग बात है

www.fotosearch.com

बुधवार, 16 मार्च 2016

जब जनाजे से मजा नहीं आता है दोबारा निकाला जाता है

लाश को
कब्र से
निकाल कर

फिर से
नहला
धुला कर

नये कपड़े
पहना कर

आज
एक बार
फिर से
जनाजा
निकाला गया

सारे लोग
जो लाश के
दूर दूर तक
रिश्तेदार
नहीं थे
फिर से
इक्ट्ठा हुऐ

एक कुत्ते
को मारा
गया था
शेर मारने
की खबर
फैलाई
गई थी
कुछ ही
दिन पहले

मजा नहीं
आया था
इसलिये
फिर से
कब्र
खोदी गई

कुत्ते की
लाश
निकाल कर
शेर के
कपड़े
पहनाये गये

जनाजा
निकाला गया
एक बार
फिर से

सारे कुत्ते
जनाजे
में आये

खबर
कल के सारे
अखबारों
में आयेगी
चिंता ना करें

समझ में
अगर नहीं
आये कुछ
ये पहला
मौका
नहीं है जब

कबर
खोद कर
लाश को
अखबार
की खबर
और फोटो
के हिसाब से
दफनाया और
फिर से
दफनाया
जाता है

कल का
अखबार
देखियेगा
खबर
देखियेगा

सच को
लपेटना
किसको
कितना
आता है

ठंड
रखा कर
'उलूक'
तुझे
बहुत कुछ
सीखना
है अभी

आज बस
ये सीख
दफनाये गये
एक झूठ को
फिर से
निकाल
कर कैसे
भुनाया
जाता है ।

http://www.fotosearch.com/

मंगलवार, 7 अप्रैल 2015

पुराने एक मकान की टूटी दीवारों के अच्छे दिन आने के लिये उसकी कब्र को दुबारा से खोदा जा रहा था

सड़कों पर सन्नाटा
और सहमी हुई सड़के
आदमी कम और
वर्दियों के ढेर
बिल्कुल साफ
नजर आ रहा था
पहुँचने वाला है
जल्दी ही मेरे शहर में
कोई ओढ़ कर एक शेर
शहर के शेर भी
अपने बालों को
उठाये नजर आ रहे थे
मेरे घर के शेर भी
कुछ नये अंदाज में
अपने नाखूनों को
घिसते नजर आ रहे थे
घोषणा बहुत पहले ही
की जा चुकी थी
एक पुराने खंडहर
की दीवारें बाँटी
जा चुकी थी
अलग अलग
दीवार से
अलग अलग
घर उगाने का
आह्वान किया
जा रहा था
एक हड्डी थी बेचारी
और बहुत सारे बेचारे
कुत्तों के बीच नोचा
घसीटा जा रहा था
बुद्धिजीवी दूरदृष्टा
योजना सुना रहा था
हर कुत्ते के लिये
एक हड्डी नोचने
का इंतजाम
किया जा रहा था
बहुत साल पहले
मकान धोने सुखाने
का काम शुरु
किया गया था
अब चूँकि खंडहर
हो चुका था
टेंडर को दुबारा
फ्लोट किया
जा रहा था
हर टूटी फूटी
दीवार के लिये
एक अलग
ठेकेदार बन सके
इसके जुगाड़
करने पर
विमर्श किया
जा रहा था
दलगत राजनीति
को हर कोई
ठुकरा रहा था
इधर का
भी था शेर
और उधर का
भी था शेर
अपनी अपनी
खालों के अंदर
मलाई के सपने
देख देख कर
मुस्कुरा रहा था
‘उलूक’ नोच रहा था
अपने सिर के बाल
उसके हाथ में
बाल भी नहीं
आ रहा था
बुद्धिजीवी शहर के
बुद्धिजीवी शेरों की
बुद्धिजीवी सोच का
जलजला जो
आ रहा था ।


चित्र साभार: imgkid.com

शनिवार, 4 अप्रैल 2015

सपने बदलने से शायद मौसम बदल जायेगा

किसी दिन
नहीं दिखें
शायद
सपनों में
शहर के कुत्ते
लड़ते हुऐ
नोचते हुऐ
एक दूसरे को
बकरी के नुचे
माँस के एक
टुकड़े के लिये

ना ही दिखें
कुछ बिल्लियाँ
झपटती हुई
एक दूसरे पर
ना नजर आये
साथ में दूर
पड़ी हुई
नुची हुई
एक रोटी
जमीन पर

ना डरायें
बंदर खीसें
निपोरते हुऐ
हाथ में लिये
किसी
दुकान से
झपटे हुऐ
केलों की
खीँचातानी
करते हुऐ
कर्कश
आवाजों
के साथ

पर अगर
ये सब
नहीं दिखेगा
तो दिखेंगे
आदमी
आस पास के
शराफत
के साथ
और
अंदाज
लूटने
झपटने का
भी नहीं
आयेगा
ना आयेगी
कोई
डरावनी
आवाज ही
कहीं से

बस काम
होने का
समाचार
कहीं से
आ जायेगा

सुबह टूटते
ही नींद
उठेगा डर
अंदर का
बैठा हुआ
और
फैलना शुरु
हो जायेगा
दिन भर
रहेगा
दूसरे दिन
की रात
को फिर
से डरायेगा

इससे
अच्छा है
जानवर
ही आयें
सपने में रोज
की तरह ही

झगड़ा कुत्ते
बिल्ली बंदरों
का
रात में ही
निपट जायेगा
जो भी होगा
उसमें वही होगा
जो सामने से
दिख रहा होगा

 खून भी होगा
गिरा कहीं
खून ही होगा
मरने वाला
भी दिखेगा
मारने वाला भी
नजर आयेगा

‘उलूक’
जानवर
और आदमी
दोनो की
ईमानदारी
और सच्चाई
का फर्क तेरी
समझ में
ना जाने
कब आयेगा

जानवर
लड़ेगा
मरेगा
मारेगा
मिट जायेगा

आदमी
ईमानदारी
और
सच्चाई को
अपने लिये ही
एक छूत
की बीमारी
बस बना
ले जायेगा

कब
घेरा गया
कब
बहिष्कृत
हुआ
कब
मार
दिया गया

घाघों के
समाज में
तेरे
सपनों के
बदल जाने
पर भी
तुझे पता
कुछ भी
नहीं चल
पायेगा ।


चित्र साभार: http://www.clker.com/

सोमवार, 29 दिसंबर 2014

पी के जा रहा है और पी के देख के आ रहा है

अरे ओ मेरे
भगवान जी
तुम्हारा मजाक
उड़ाया जा रहा है
आदमी पी के जैसी
फिलम बना रहा है
जनता देख रही है
मारा मारी के साथ
बाक्स आफिस का
झंडा उठाया
जा रहा है
ये बात हो रही थी
भगवान अल्ला
ईसा और भी
कई कई
कईयों के देवताओं
के सेमिनार में
कहीं स्वरग
या नरक या
कोई ऐसी ही जगह
जिसका टी वी
कहीं भी नहीं
दिखाया जा रहा है
एक देवता भाई
दूसरे देवता को
देख कर
मुस्कुरा रहा है
समझा रहा है
देख लो जैसे
आदमी के कुत्ते
लड़ा करते हैं
आपस में पूँछ
उठा उठा कर
बाल खड़े
कर कर के
कोई नहीं
कह पाता है
आदमी उनको
लड़ा रहा है
तुमने आदमी को
आदमी से
लड़वा दिया
कुत्तों की तरह
पूरे देश का
टी वी दिखा रहा है
भगवान जी
क्या मजा है
आप के इस खेल में
आपकी फोटो को
बचाने के लिये
आदमी आदमी
को खा रहा है
आप के खेल
आप जाने भगवान जी
हम अल्ला जी के साथ
ईसा जी को लेकर
कहीं और किसी देश में
कोई इसी तरह की
फिलम बनाने जा रहे हैं
बता कर जा रहे हैं
फिर ना कहना
भगवान जी का
कापी राईट है
और किसी और का
कोई और भगवान
उसकी नकल बना कर
मजा लेने जा रहा है ।

चित्र साभार: galleryhip.com

गुरुवार, 22 मई 2014

पहचान के कटखन्ने कुत्तों से डर नहीं लगता है

पालतू
भेड़ों की
भीड़ को
अनुशाशित
करने के
लिये ही

पाले
जाते हैं
कुत्ते
भेड़ों को
घेर कर
बाड़े तक
पहुँचाने में
माहिर
हो जाने से
निश्चिंत
हो जाते हैं
भेड़ों के
मालिक

कुत्तों के
हाव भाव
और चाल
से ही रास्ता
बदलना
सीख लेती
हैं भेड़े

मालिक
बहुत सारी
भेड़ों को
इशारा करने
से अच्छा
समझते हैं
कुत्तों को
समझा लेना

भेड़ों
को भी
कुत्तों से
डर नहीं
लगता है

जानती हैं
डर के आगे ही
जीत होती है

भेड़ों को
घेर कर
बाड़े तक
पहुँचाने का
इनाम

कुछ
माँस के टुकड़े

कुत्ते
भेड़ों के
सामने से
ही नोचते हैं

भेड़े
ना तो खाती हैं
ना ही माँस
पसँद करती हैं

पर
उनको
कुत्तों को
माँस नोचता
देखने की
आदत
जरूर हो
जाती है

रोज
होने वाले
दर्द की
आदत
हो जाने
के बाद
दवा की
जरूरत
महसूस
नहीं होती है ।

रविवार, 23 फ़रवरी 2014

हिमालय देखते देखते भी अचानक भटक जाती है सोच गंदे नाले की ओर


शायद
किसी 
सुबह हो या किसी शाम को ढलते 
सूरज दिखे

लालिमा सुबह की
चमकती सफेद चाँदी के रंग में
या फिर
स्वर्ण की चमक से ढले हुऐ हिमालय
कवि सुमित्रानंदन की तरह सोच भी बने

क्या जाता है 
सोच लेने में
वरना दुनियाँ ने कौन सी सहनी है
हँसी मुस्कुराहट 
किसी के चेहरे की बहुत देर तक

कहते हैं
समय 
खुद को ही बदल चुका है
और बढ़ी है भूख भी बहुत

पर
लगता कहाँ है
सारे के सारे
गली मुहल्ले से लेकर
शहर की 
पौश कौलोनी के
उम्दा ब्रीड के कुत्तों के मुँह से टपकती लार
उनके भरे हुऐ पेटों के आकार से भी प्रभावित कभी नहीं होती

सभी को नोचते 
चलना है माँस
सूखा हो या खून से सना
पुराना हो सड़ गया हो या ताजा भुना हुआ

बस खुश नहीं 
दिखना है कोई चेहरा
मुस्कुराता 
हुआ बहुत देर तक

क्योंकि
जो सिखाया 
पढ़ाया जा रहा है
वो सब
किताब 
कापियों तक सिमट कर रह गया
और
 नहीं तैयार हुई 
कुछ ममियाँ
नुची हुई
मुस्कुराहटों 
के चेहरों के साथ

समय और इतिहास 
माफ नहीं करेगा इन सभी भूखों को

जो तैयार हैं 
नोचने के लिये कुछ भी कहीं भी 
अपनी बारी के इंतजार में
सामने रखे हुऐ कुछ सपनों की लाशों को
दुल्हन बना कर सजाये हुऐ।

चित्र साभार: 
https://www.istockphoto.com/

गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

उधर ना जाने की कसम खाने से क्या हो वो जब इधर को ही अब आने में लगे हैं

जंगल के
सियार
तेंदुऐ
जब से
शहर की
तरफ
अपने पेट
की भूख
मिटाने
के लिये
भाग आने
लगे हैं

किसी
बहुत दूर
के शहर
के शेर का
मुखौटा लगा

मेरे शहर
के कुत्ते
दहाड़ने का
टेप बजाने
लगे हैं

सारे
बिना पूँछ
के कुत्ते
अब एक
ही जगह
पर खेलते
नजर आने
लगे हैं

पूँछ वाले
पूँछ वालों
के लिये ही
बस अब
पूँछ हिलाने
डुलाने लगे हैं

चलने लगे हैं
जब से कुछ
इस तरीके के
अजब गजब
से रिवाज

जरा सी बात
पर अपने ही
अपनों से दूरी
बनाने लगे हैं

कहाँ से चल
कर मिले थे
कई सालों
में कुछ
हम खयाल

कारवाँ बनने
से पहले ही
रास्ते बदल
बिखर
जाने लगे हैं

आँखो में आँखे
डाल कर बात
करने की
हिम्मत नहीं
पैदा कर सके
आज तक भी

चश्मे के ऊपर
एक और
चश्मा लगा
दिन ही नहीं
रात में तक
आने लगे हैं

अपने ही
घर को
आबाद
करने की
सोच पैदा
क्यों नहीं
कर पा
रहे हो
'उलूक'

कुछ आबाद
खुद की ही
बगिया के
फूलों को
रौँदने के
तरीके

अपनो को
ही सिखाने
लगे हैं ।

सोमवार, 16 दिसंबर 2013

कुत्ते का भौंकना भी सब की समझ में नहीं आता है पुत्र


कल
दूरभाष
पर 

हो रही
बात पर 
पुत्र
पूछ बैठा 

पिताजी
आपकी 
लम्बी लम्बी
बातें तो 
बहुत हो जा रही हैं 

मुझे
समझ में ही 
नहीं आ रहा है 
ये क्या सोच कर 
लिखी जा रही हैं 

मैं
हिसाब 
लगा रहा हूँ 
ऐसा ही अगर 
चलता चला जायेगा 

तो
किसी दिन 
कुछ साल के बाद 

ये
इतना हो जायेगा 
ना
आगे का दिखेगा 
ना
पीछे का छोर
ही 
कहीं नजर आयेगा 

इतना
सब लिखकर 
वैसे भी
आपका 
क्या
कर ले जाने 
का इरादा है

या 
ऐसा ही
लिखते रहने 
का
आप किसी
से 
कर चुके
कोई वादा हैंं 

सच पूछिये

तो 
मेरी समझ में 

आपकी लिखी 
कोई बात 
कभी भी 
नहीं आती है 

उस
समय 
जो लोग 
आपके लिखे 
की
तारीफ
कर रहे होते हैं 

उनकी
 पढ़ाई लिखाई 
मेरी
पढ़ाई लिखाई
से 
बहुत ही ज्यादा 
आगे
नजर आती है 

ये सब
को
सुन कर 

पुत्र को
बताना 
जरूरी हो गया 

लिखने विखने
का 
मतलब समझाना 
मजबूरी
हो गया 

मैंने
बच्चे को
अपने 
कुत्ते का
उदाहरण 
देकर बताया 

क्यों
भौंकता रहता है 
बहुत बहुत
देर तक 
कभी कभी

इस पर 
क्या
उसने कभी 
अपना
दिमाग लगाया है 

क्या
उसका भौंकना 
कभी
किसी के समझ
में 
थोड़ा सा भी
आ पाया है 

फिर भी
चौकन्ना 
करने की कोशिश 
उसकी
अभी भी जारी है 

रात रात
जाग जाग
कर 
भौंकना नहीं लगता 
उसे
कभी भी भारी है 

मै

और
मेरे जैसे
दो चार 
कुछ
और

इसी तरह 
भौंकते
जा रहे हैं 

कोई
सुने ना सुने 
इस बात
को

हम भी 
कहाँ
सोच पा रहे हैं 

क्या पता
किसी दिन 
सियारों
की 
टोली की तरह 

हमारी
संख्या 
भी
बढ़ जायेगी 

फिर
सारी टोली 
एक साथ
मिलकर 
हुआ हुआ
की 
आवाज लगायेगी 

बदलेगा
कुछ ना कुछ 
कहीं ना कहीं
कभी तो 

और
यही आशा 
बहुत कुछ 
बहुत दिनों
तक 
लिखवाती
ही 
चली जायेगी 

शायद
अब मेरी बात 
कुछ कुछ
तेरी भी 
समझ में
आ जायेगी ।
चित्र साभार: 
https://www.fotosearch.com/

शनिवार, 26 जनवरी 2013

डाक्टर नहीं कहता कबाड़ी का लिखा पढ़ने की कोशिश कर



आसानी से
अपने आस पास की मकड़ी हो जाना

या फिर एक केंचुआ मक्खी या मधुमक्खी
पर आदमी हो जाना सबसे बड़ा अचम्भा

उसपर जब चाहो
मकड़ी कछुऎ बिल्ली कुत्ते उल्लू
या एक बिजली का खम्बा छोटा हो या लम्बा

समय के हिसाब से
अपनी टाँगों को यूं कर ले जाना

उस पर मजे की बात
पता होना कि कहाँ क्या हो रहा है
पर
ऎसे दिखाना जैसे सारा जहाँ
बस उसके लिये ही तो रो रहा है

वो एहसान कर
हंसने का ड्रामा तो कर रहा है
शराफत से निभाना

गाली को गोली की तरह पचाना
सामने वाले को
सलाम करते हुऎ बताते चले जाना
समझ में सबकुछ ऎसे ही आ जाना

पर दिखाना
जैसे 
बेवकूफ हो सारा का सारा जमाना
टिप्पणी करने में हिचकिचाना

क्योंकी
पकडे़ जाने का क्यों छोड़ जाना
एक कहीं निशाना

चुपके से आना पढ़ ले जाना
मुस्कुराना और बस सोच लेना

एक बेवकूफ को
अच्छा हुआ कि कुछ नहीं पढ़ा
अपनी ओर से कुछ भी बताना ।

चित्र साभार: https://www.thequint.com/

बुधवार, 26 सितंबर 2012

मसला कुत्ते की टेढ़ी पूँछ

वैसे तो 
कुत्ते के पास मूँछ है 

पर 
ध्यान में ज्यादा रहती 
उसकी टेढ़ी पूँछ है 

उसको 
टेढ़ा रखना अगर उसको भाता है 

हर कोई 
क्यों उसको फिर
सीधा करना चाहता है 

उसकी 
पूँछ तक रहे बात 
तब भी समझ में आती है 

पर 
जब कभी किसी को 
अपने सामने वाले की 
कोई बात पागल बनाती है 

ना जाने तुरंत उसे 
कुत्ते की टेढ़ी पूँछ ही 
क्यों याद आ जाती है 

हर किसी की 
कम से कम 
एक पूँछ तो होती है 
किसी की जागी होती है 
किसी की सोई होती है 

पीछे 
होती है
इसलिये 
खुद को दिख नहीं पाती है 

पर 
फितरत देखिये जनाब 
सामने वाले की
पूँछ पर 
तुरंत नजर चली जाती है 

अपनी पूँछ उस समय 
आदमी भूल जाता है 

अगले की पूँछ पर 
कुछ भी कहने से बाज 
लेकिन नहीं आता है 

अच्छा किया हमने 
अपनी श्रीमती की सलाह पर 
तुरंत कार्यवाही कर डाली 

अपनी 
पूँछ कटवा कर 
बैंक लाकर में रख डाली 

अब 
कटी पूँछ पर कोई 
कुछ नहीं कह पाता है 

पूँछ 
हम हिला लेते हैं 
किसी के सामने 
जरूरत पड़ने पर कभी
तो 
किसी को 
नजर भी नहीं आता है 

इसलिये 
अगले की पूँछ पर 
अगर 
कोई कुछ
कहना चाहता है 

तो 
पहले अपनी पूँछ 
क्यों नहीं
कटवाता है । 

चित्र सभार: https://gfycat.com/

शुक्रवार, 6 जनवरी 2012

बिल्ली युद्ध

आइये शुरू
किया जाये
एक खेल

वही पुराना

बिल्लियों को
एक दूसरे से
आपस मे
लड़वाना

जरूरी नहीं

की बिल्ली
मजबूत हो

बस एक अदद

बिल्ली का होना
है बेहद जरूरी

चूहे कुत्ते सियार

भी रहें तैयार

कूद पड़ें

मैदान में
अगर होने
लगे कहीं
मारा मार

शर्त है

बिल्ली बिल्ली
को छू नहीं
पायेगी

गुस्सा दिखा

सकती है
केवल मूंछ
हिलायेगी

मूंछ का

हिलना बता
पायेगा बिल्ली
की सेना को
रास्ता

सारी लड़ाई

बस दिखाई
जायेगी

अखबार टी वी

में भी आयेगी

कोई बिल्ली

कहीं भी नहीं
मारी जायेगी

सियार कुत्ते

चूहे सिर्फ
हल्ला मचायेंगे

बिल्ली के लिये

झंडा हिलायेंगे

जो बिल्ली

अंत में
जीत पायेगी

वो कुछ

सालों के लिये
फ्रीज कर दी
जायेगी

उसमें फिर

अगर कुछ
ताकत बची
पायी जायेगी

तो फिर से

मरने मरने
तक कुछ
कुछ साल में
आजमाई जायेगी

जो हार जायेगी

उसे भी चिंता
करने की
जरूरत नहीं

उसके लिये

दूध में अलग
से मलाई
लगाई जायेगी।

मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

कुछ कहो

बस दो चार ही
लोग गांव के
अब कुछ
अपने जैसे
नजर आते हैं
सड़क और गली
की बात मगर
कुछ और ही
दिखाई देती है
सारे ही कुत्ते
सामने पा कर
जोर जोर से
अपनी पूंछे
हिलाते हैं
फिर भी समझ
नहीं पाते हैं
पागलखाने के
डाक्टर साहब
को अब भी
नार्मल ही
नजर आते हैं
हां लोग देख
कर थोड़ा सा
अब कतराते हैं
बहुमत साथ ना
होने का फायदा
हमेशा पार्टी के
लोग उठाते हैं
फुसफुसा कर ही
करते हैं बात भी
मोहल्ले वाले
फिर गया दिमाग
कहते तो नहीं हैं
बस सोच कर
सामने सामने से
ही मुस्कुराते हैं
कुछ तो समझाओ
'उलूक' जमाने को
पागल खाने के डाक्टर
ऐसे लोगों को ऐसे में भी
मुहँ 
क्यों नहीं लगाते हैं?

सोमवार, 21 सितंबर 2009

जलन

चारों तरफ बज रही शहनाई है
मेरे घरोंदे में चाँदनी उतर आई है ।

पड़ोसी के चेहरे पे उदासी छाई है
लगता है 
उनको चाँद ने घूस खाई है ।

मेरे कुत्ते की जब से बड़ रही लम्बाई है
पड़ोसन बिल्ली के लिये टोनिक लाई है ।

कितनी मुश्किल से बात छिपाई है
लेकिन वो तो पूरी सी बी आई है ।

पंडित जी की बढ़ गयी कमाई है
बीबी ने दरवाजे पे मिर्ची लटकाई है ।