उलूक टाइम्स

शुक्रवार, 15 मई 2015

समझदारी समझने में ही होती है अच्छा है समय पर समझ लिया जाये



छलकने तक आ जाये कभी कोई बात नहीं
आने दिया जाये
छलके नहीं जरा सा भी बस इतना ध्यान दिया जाये
होता है और कई बार होता है
अपने हाथ में ही नहीं होता है
निकल पड़ते हैं चल पड़ते हैं
महसूस होने होने तक भर देते हैं
जैसे थोड़े से में गागर से लेकर सागर
रोक दिया जाये 
बेशकीमती होते हैं
बूँद बूँद सहेज लिया जाये
इससे पहले कोशिश करें
गिर जायें मिल जायें
धूल में मिट्टी में लौटा लिया जाये
समझ में आती नहीं कुछ धारायें
मिलकर बनाती भी नहीं
नदियाँ कहीं  ऐसी कि सागर में जाकर ही मिल जायें ।


चित्र साभार: www.clipartpanda.com