उलूक टाइम्स: बूँद
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शुक्रवार, 15 मई 2015

समझदारी समझने में ही होती है अच्छा है समय पर समझ लिया जाये

छलकने तक
आ जायें कभी
कोई बात नहीं
आने दिया जाये
छलकें नहीं ,
जरा सा भी
बस इतना
ध्यान दिया जाये
होता है और
कई बार
होता है
अपने हाथ
में ही नहीं
होता है
निकल पड़ते हैं
चल पड़ते हैं
महसूस होने
होने तक
भर देते हैं
जैसे थोड़े से
में गागर से
लेकर सागर
रोक दिया जाये
बेशकीमती
होते हैं
बूँद बूँद
सहेज लिया जाये
इससे पहले
कोशिश करें
गिर जायें
मिल जायें
धूल में मिट्टी में
लौटा लिया जाये
समझ में
आती नहीं
कुछ धारायें
मिलकर बनाती
भी नहीं
नदियाँ कहीं
ऐसी कि सागर
में जाकर
ही मिल जायें ।

चित्र साभार: www.clipartpanda.com

गुरुवार, 17 जुलाई 2014

सभी के होते हैं रिश्ते सभी बनाना चाहते हैं


कंकड़
पत्थर
की ढेरी के
एक कंकड़
जैसे हो जाते हैं

रिश्ते
साथ रहते हुऐ भी
अलग हो जाते हैं

जब
इच्छा होती है
इस ढेरी से
उस ढेरी में
डाल दिये जाते हैं

पता
चल जाता है
आकार प्रकार
और रंग से

अभी
तक कहीं
और थे
अभी
अभी कहीं
और
पाये जाते हैं

रस्सी
नहीं होते हैं
गांठो में नहीं
बांधे जाते है

खोलने
बांधने के
मौके जबकि
बहुत बार
सामने से आते हैं

मिलने जुलने
से लेकर
बिछोह
होने तक
रिश्ते गरम
से होते हुऐ
कब ठंडे
हो जाते हैं

रिश्ते
आसमान से
गिरते जल की
ऐसी बूँदे भी
हो सकते हैं

गिरते गिरते ही
एक दूसरे में
जो आत्मसात
हो जाते हैं

पानी में से
पानी को
अलग कर पाना
अभी तक यहाँ
कहीं भी नहीं
सिखाते हैं

अपनी अपनी
की धुन में
नाचती अपनी
जिंदगी में

कब
बूँद बन कर
आसमान
से नीचे की ओर
गिरते हुऐ आते हैं

किसी
दूसरी बूंद में
मिलने से पहले ही
कब पत्थर हो जाते हैं

जानते हैं
समझते हैं
पर समझना ही
कहाँ चाहते हैं

एक ढेरी के
कंकड़ो
में गिरकर
इधर से उधर
लुढ़कते लुढ़कते
किसी दूसरी ढेरी
में पहुँच जाते है

रिश्ते
पानी की बूँदें
नहीं हो पाते हैं ।