उलूक टाइम्स

रविवार, 7 जून 2015

चिकने खंबे पर ही चढ़ता है रोज उसी तरह फिसलता है हर बार जमीन पर आ जाता है

ये लिखना भी
कोई लिखना
है लल्लू

किसी की
समझ में
कुछ नहीं
आता है

तेरी बेशर्मी
की भी कोई
हद नहीं है


सुनता है
फिर

और भी 
जोर शोर से
लिखना शुरु
हो जाता है

सोचा कर
अगर
सोच सकता है

बता
कोई एक
तुझे छोड़ कर
है कोई
ऐसा दूसरा

जो
तेरी तरह
रोज
शाम होते
ही शुरु
हो जाता है

किसे
फुरसत है
कौन
बेकार है

सबके
पास हैंं
अपने
अपने हैं
और
बहुत सारे
बड़े काम हैं

बेरोजगार
होने का
मतलब
लेखक
हो जाना
नहीं हो
जाता है

गलतफहमी
को
खुशफहमी
बना कर
खुद की
खुद ही
नाचना
शुरु हो
जाने वाला

तेरे अलावा
इस
नक्कारखाने में
कोई दूसरा
नजर नहीं
आता है

क्या किया
जा सकता है
तेरी इस
बीमारी का
जिसका इलाज
अस्पताल में भी
नहीं पाया जाता है

कुऐं में
घुसे हुऐ
मेंढक
की तरह
क्यों
कब तक
किसके लिये
गला फाड़
टर्राता है

समझा कर

छोटे शहर
का पागल
शहर के
कोने कोने में
पहचान
लिया जाता है

इसी लिये
बड़ी जगह
की बड़ी बड़ी
बातों में
उलझाने फँसाने
के खेलों
को सीखने
सिखाने के लिये

एक
समझदार
गली से बाहर
निकल कर

एक खुले
बड़े से
मैदान में
आ जाता है ।

चित्र साभार: girlrunningcrazy.com