उलूक टाइम्स: सीखना
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रविवार, 11 अक्टूबर 2015

अनदेखा ना हो भला मानुष कोई जमाने के हिसाब से जो आता जाता हो

पापों को
अगर अपने
किसी ने
कह
दिया हो
फिर सजा
देने की बात
सोचने की
सोच किसी
की ना हो

हो अगर कुछ
उसके बाद
थोड़ा कुछ
ईनाम
वीनाम हो 
थोड़ा बहुत
नाम वाम हो 

कुछ सम्मान
वम्मान हो
उसका भी हो
तुम्हारा भी हो
हमारा भी हो

झूठ
वैसे भी
बिक नहीं
सकता कभी
अगर
खरीदने वाला
खरीददार
ही ना हो

कुछ
बेचने की
कुछ
खरीदने की
और
कुछ
बाजार की
भी बात हो
चाहे कानो
कान हो

सोच लो
अभी भी
मर ना
पाओगे
मोक्ष पाने
के लिये
कीड़ा
बना कर
लौटा कर
फिर वापस
यहीं कहीं
भेज दिये
जाओगे

जमाने के
साथ चलना
इसलिये भी
सबके लिये
बराबर हो
और
जरूरी हो

सीखना
झूठ बेचना
भी सीखने
सिखाने में हो
बेचना नहीं
भी अगर
सीखना हो
कम से कम
कुछ खरीदना
ही थोड़ा बहुत
समझने
समझाने में हो

खुद भी
चैन से
रहना
और
रहने
देना हो

‘उलूक’
आदत हो
पता हो
आदमी के
अंदर से
आदमी को
निचोड़ कर
ले आना
समझ में
आता हो

अनदेखा
ना
होता हो
भला मानुष
कोई भी
कहीं इस
जमाने में
जो किताबों
से इतर
कुछ मंत्र
जमाने के
हिसाब के
नये
बताता हो
समझाता हो ।

चित्र साभार: sushkrsh.blogspot.com

रविवार, 7 जून 2015

चिकने खंबे पर ही चढ़ता है रोज उसी तरह फिसलता है हर बार जमीन पर आ जाता है

ये लिखना भी
कोई लिखना
है लल्लू

किसी की
समझ में
कुछ नहीं
आता है

तेरी बेशर्मी
की भी कोई
हद नहीं है


सुनता है
फिर

और भी 
जोर शोर से
लिखना शुरु
हो जाता है

सोचा कर
अगर
सोच सकता है

बता
कोई एक
तुझे छोड़ कर
है कोई
ऐसा दूसरा

जो
तेरी तरह
रोज
शाम होते
ही शुरु
हो जाता है

किसे
फुरसत है
कौन
बेकार है

सबके
पास हैंं
अपने
अपने हैं
और
बहुत सारे
बड़े काम हैं

बेरोजगार
होने का
मतलब
लेखक
हो जाना
नहीं हो
जाता है

गलतफहमी
को
खुशफहमी
बना कर
खुद की
खुद ही
नाचना
शुरु हो
जाने वाला

तेरे अलावा
इस
नक्कारखाने में
कोई दूसरा
नजर नहीं
आता है

क्या किया
जा सकता है
तेरी इस
बीमारी का
जिसका इलाज
अस्पताल में भी
नहीं पाया जाता है

कुऐं में
घुसे हुऐ
मेंढक
की तरह
क्यों
कब तक
किसके लिये
गला फाड़
टर्राता है

समझा कर

छोटे शहर
का पागल
शहर के
कोने कोने में
पहचान
लिया जाता है

इसी लिये
बड़ी जगह
की बड़ी बड़ी
बातों में
उलझाने फँसाने
के खेलों
को सीखने
सिखाने के लिये

एक
समझदार
गली से बाहर
निकल कर

एक खुले
बड़े से
मैदान में
आ जाता है ।

चित्र साभार: girlrunningcrazy.com

शनिवार, 22 नवंबर 2014

लिखता लिखता ही पढ़ना भी सीख लेगा

जिस दिन
सीख लेगा
लिखना
बता उस दिन
क्या लिखेगा
अभी बताने
में भी कोई
हर्ज नहीं है
कविता
लिखेगा
या फिर कोई
गजल
लिखेगा
तब तक
ऐसा वैसा
भी लिखेगा
वो भी चलेगा
लिखना सीखने
के लिये जो
भी लिखेगा
वही तो
एक दिन
लिखना
सिखाने
के लिये
भी लिखेगा
लिखना एक
अलग बात है
लिखने वाला
बस लिखेगा
पढ़ना एक
अलग बात है
पढ़ने वाला
बस पढ़ेगा
लिखना पढ़ना
साथ करने
की कोशिश
जो भी करेगा
ना लिख
पायेगा कुछ
ना ही पढ़ेगा
लिखना सीख
ले कुछ
लिख लिखा
कर कुछ
दिनों तक
लिखना
सीख लेगा
जब ‘उलूक’
पूरा का पूरा
आधा
कम से कम
पढ़ना भी
सीख लेगा ।

चित्र साभार: www.clipartof.com

बुधवार, 3 सितंबर 2014

कतार बनाना सीख जाता तो तेरा भी बेड़ा पार हो जाता


कतार में लगी हो कोई भी चीज
तो सभी को बहुत अच्छी लगती है

और हर जगह के
कुछ लोग बहुत माहिर होते हैं कतार बनवाने में

ऐसे सभी कतार बनाने वाले 
जानते हैं बहुत अच्छी तरह एक दूसरे को 

इन सब कतार बनाने वालों की रिश्तेदारियाँ
कभी जात हो जाती है
कभी इलाका हो जाता है
कभी धर्म हो जाता है
मजे की बात है कभी कभी सकर्म हो जाता है

कतार बनाने वाले पहचानते हैं
कौन सबसे अच्छी कतार बनाता है

कतार बनाने की इच्छा पूरी करने के लिये
एक कतार बनाने वाला
दूसरे कतार बनाने वाले के पास ही जाता है

कतारें देख कर कतार बनाने वाले
कभी सीखते हैं कतार बनाना 
और
अपनी अपनी कतार की कमिंयों को दूर कर ले जाना

लेकिन ये सारे कतारें बनाने वाले
कभी किसी कतार में नहीं होते हैं
सही बात भी है
हलवाई भी कहाँ खाता है अपनी बनाई हुई मिठाई
और
इसमें कहाँ कहा जा सकता है कि है कोई भी बुराई

पता नहीं तुम्हारे जमाने में क्या होता होगा
पर मेरे जमाने में हर दूसरा आदमी
जो अपनी जिंदगी में कभी भी
किसी कतार में शामिल नहीं हो पाता है
कतार बना ही ले जाता है

और जो कतार में चला जाता है 
पूरी जिंदगी कतार से बाहर नहीं आ पाता है

उसके लिये लैफ्ट लैफ्ट रह जाता है
और राईट राईट रह जाता है

‘उलूक’ को अपने चारों ओर दिखाई देते हैं
बस और बस कतार बनाने वाले
और फिर भी बेचारा
ना कतार बनाना सीख पाता है
ना ही किसी कतार में शामिल ही हो पाता है ।

चित्र साभार: http://www.shutterstock.com/