फलसफा
जिंदगी का
सीखने की
जरा सी भी
कोशिश
कभी
थोड़ी सी भी
किया होता
आधी सदी
बीत गई
तुझे आये
हुऐ यहाँ
इस जमीन
इस जगह पर
कभी
किसी दिन
एक दिन के
लिये ही सही
एक अदद
आदमी
कुछ देर के
लिये ही सही
हो तो गया होता
जानवर
ही जानवर
लिखने
लिखाने में
कूद कर
नहीं आते
तेरे इस
तरह हमेशा
आदमी
लिखने का
इतना तो
हौसला
हो ही
गया होता
सपेरे
नचा रहे हैं
अपने अपने साँप
अपने अपने
हिसाब से
साँप नहीं
भी हो पाता
नाचना तो
थोड़ा बहुत
सीख ही
लिया होता
कपड़े
उतारने से बहुत
आसान होने
लगी है जिंदगी
दिखता है
हर तरफ
धुँधला नहीं
बहुत ही
साफ साफ
कुँआरे
शीशे की तरह
बहुत सारे
नंगों के बीच में
खड़ा कपड़े
पहने हुऐ
इस तरह शरमा
तो नहीं रहा होता
क्या
क्या कहेगा
कितना कहेगा
कब तक कहेगा
किस से कहेगा
‘उलूक’
हर कोई
कह रहा
है अपनी
कौन
सुन रहा
है किसकी
फैसला
जिसकी भी
अदालत में होता
तेरे सोचने के जैसा
कभी भी नहीं होता
रोज
उखाड़ा कर
रोज
बो लिया कर
कुछ
शब्द यहाँ पर
शब्दों
के होते
हुए कबाड़ से
खाली
दिमाग के
शब्दों को
इतना नंगा
कर के भी
हर समय
खरोचने
की आदत
से कहीं
भी कुछ
नहीं होता।
चित्र साभार: www.shutterstock.com
जिंदगी का
सीखने की
जरा सी भी
कोशिश
कभी
थोड़ी सी भी
किया होता
आधी सदी
बीत गई
तुझे आये
हुऐ यहाँ
इस जमीन
इस जगह पर
कभी
किसी दिन
एक दिन के
लिये ही सही
एक अदद
आदमी
कुछ देर के
लिये ही सही
हो तो गया होता
जानवर
ही जानवर
लिखने
लिखाने में
कूद कर
नहीं आते
तेरे इस
तरह हमेशा
आदमी
लिखने का
इतना तो
हौसला
हो ही
गया होता
सपेरे
नचा रहे हैं
अपने अपने साँप
अपने अपने
हिसाब से
साँप नहीं
भी हो पाता
नाचना तो
थोड़ा बहुत
सीख ही
लिया होता
कपड़े
उतारने से बहुत
आसान होने
लगी है जिंदगी
दिखता है
हर तरफ
धुँधला नहीं
बहुत ही
साफ साफ
कुँआरे
शीशे की तरह
बहुत सारे
नंगों के बीच में
खड़ा कपड़े
पहने हुऐ
इस तरह शरमा
तो नहीं रहा होता
क्या
क्या कहेगा
कितना कहेगा
कब तक कहेगा
किस से कहेगा
‘उलूक’
हर कोई
कह रहा
है अपनी
कौन
सुन रहा
है किसकी
फैसला
जिसकी भी
अदालत में होता
तेरे सोचने के जैसा
कभी भी नहीं होता
रोज
उखाड़ा कर
रोज
बो लिया कर
कुछ
शब्द यहाँ पर
शब्दों
के होते
हुए कबाड़ से
खाली
दिमाग के
शब्दों को
इतना नंगा
कर के भी
हर समय
खरोचने
की आदत
से कहीं
भी कुछ
नहीं होता।
चित्र साभार: www.shutterstock.com