ना धूल दिख
रही है कहीं
ना धुआँ ही
दिख रहा है
एक बेवकूफ
कह रहा है
साँस नहीं
ली जाती है
और दम
घुट रहा है
हर कोई
खुश है
खुशी से
लबालब है
सरोबार
दिख रहा है
इतनी खुशी है
सम्भलना ही
उनका मुश्किल
दिख रहा है
हर कदम
बहक रहा है
बस एक दो
का नहीं
पूरा शहर
दिख रहा है
देखने वाले
की मुसीबत है
कोई पूछ ले उससे
तू पिया हुआ सा
नहीं दिख रहा है
कोई नहीं
समझ रहा है
ऐसा हर कोई
कह रहा है
अपने अपने चूल्हे हैं
अपनी अपनी आग है
हर कहने वाला
मौका देख कर
अपनी सेक रहा है
‘उलूक’
देख रहा है
कोई नहीं
जानता है उसको
और उसकी
बकवास को
उसकी तस्वीर
का जनाजा
अभी तक कहीं
नहीं निकल रहा है
क्या कहें दूर
कहीं बैठे
साहित्यकारों से
जो कह रहे हैं
किसी से
मिलने का
दिल कर रहा है
हर शाख पर बैठे
उल्लू के प्रतीक
उलूक को
सम्मानित करने
वाली जनता
‘उलूक’
उल्लू का पट्ठा
कौड़ियों के
मोल का
अपने शहर का
बाहर कहीं
लग रहा है
गलतफहमी में
शायद कुछ
ज्यादा ही
बिक रहा है ।
चित्र साभार: twodropsofink.com
रही है कहीं
ना धुआँ ही
दिख रहा है
एक बेवकूफ
कह रहा है
साँस नहीं
ली जाती है
और दम
घुट रहा है
हर कोई
खुश है
खुशी से
लबालब है
सरोबार
दिख रहा है
इतनी खुशी है
सम्भलना ही
उनका मुश्किल
दिख रहा है
हर कदम
बहक रहा है
बस एक दो
का नहीं
पूरा शहर
दिख रहा है
देखने वाले
की मुसीबत है
कोई पूछ ले उससे
तू पिया हुआ सा
नहीं दिख रहा है
कोई नहीं
समझ रहा है
ऐसा हर कोई
कह रहा है
अपने अपने चूल्हे हैं
अपनी अपनी आग है
हर कहने वाला
मौका देख कर
अपनी सेक रहा है
‘उलूक’
देख रहा है
कोई नहीं
जानता है उसको
और उसकी
बकवास को
उसकी तस्वीर
का जनाजा
अभी तक कहीं
नहीं निकल रहा है
क्या कहें दूर
कहीं बैठे
साहित्यकारों से
जो कह रहे हैं
किसी से
मिलने का
दिल कर रहा है
हर शाख पर बैठे
उल्लू के प्रतीक
उलूक को
सम्मानित करने
वाली जनता
‘उलूक’
उल्लू का पट्ठा
कौड़ियों के
मोल का
अपने शहर का
बाहर कहीं
लग रहा है
गलतफहमी में
शायद कुछ
ज्यादा ही
बिक रहा है ।
चित्र साभार: twodropsofink.com