खोला तो
रोज ही
जाता है
लिखना भी
शुरु किया
जाता है
कुछ नया
है या नहीं है
सोचने तक
खुले खुले
पन्ना ही
गहरी नींद में
चला जाता है
नींद किसी
की भी हो
जगाना
अच्छा नहीं
माना जाता है
हर कलम
गीत नहीं
लिखती है
बेहोश
हुऐ को
लोरी सुनाने
में मजा भी
नहीं आता है
किस लिये
लिख दी
गयी होती हैं
रात भर
जागकर नींदें
उनींदे
कागजों पर
सोई हुवी
किताबों के
पन्नों को जब
फड़फड़ाना
नहीं आता है
लिखने
बैठते हैं
जो
सोच कर
कुछ
गम लिखेंगे
कुछ
दर्द भी
लिखना
शुरु होते ही
उनको अपना
पूरा शहर
याद
आ जाता है
सच लिखने की
हसरतों के बीच
कब किसी झूठ
से उलझता है
पाँव कलम का
अन्दाज ही
नहीं आता है
उलझता
चला जाता है
बहुत आसान
होता है
क्योंकि
लिख देना
एक झूठ ‘उलूक’
जिस पर
जब चाहे
लिखना
शुरु करो
बहुत कुछ
और
बहुत सारा
लिखा जाता है
घर
और तमाशे
से शुरु कर
एक बात को
चाँद
पर लाकर
इसी तरह से
छोड़ दिया
जाता है ।
चित्र साभार: https://www.canstockphoto.com
रोज ही
जाता है
लिखना भी
शुरु किया
जाता है
कुछ नया
है या नहीं है
सोचने तक
खुले खुले
पन्ना ही
गहरी नींद में
चला जाता है
नींद किसी
की भी हो
जगाना
अच्छा नहीं
माना जाता है
हर कलम
गीत नहीं
लिखती है
बेहोश
हुऐ को
लोरी सुनाने
में मजा भी
नहीं आता है
किस लिये
लिख दी
गयी होती हैं
रात भर
जागकर नींदें
उनींदे
कागजों पर
सोई हुवी
किताबों के
पन्नों को जब
फड़फड़ाना
नहीं आता है
लिखने
बैठते हैं
जो
सोच कर
कुछ
गम लिखेंगे
कुछ
दर्द भी
लिखना
शुरु होते ही
उनको अपना
पूरा शहर
याद
आ जाता है
सच लिखने की
हसरतों के बीच
कब किसी झूठ
से उलझता है
पाँव कलम का
अन्दाज ही
नहीं आता है
उलझता
चला जाता है
बहुत आसान
होता है
क्योंकि
लिख देना
एक झूठ ‘उलूक’
जिस पर
जब चाहे
लिखना
शुरु करो
बहुत कुछ
और
बहुत सारा
लिखा जाता है
घर
और तमाशे
से शुरु कर
एक बात को
चाँद
पर लाकर
इसी तरह से
छोड़ दिया
जाता है ।
चित्र साभार: https://www.canstockphoto.com