कितना भी
कोशिश करें हम
शराफत पोतने की
कोशिश करें हम
शराफत पोतने की
दिख जाता है कहीं से भी
फटा हुआ
किसी छेद से झाँकता हुआ हमारा नजरिया
हम
कब गिरोह हो लेते हैं
कब गिरोह हो लेते हैं
हमें
पता कहाँ चलता है
पता कहाँ चलता है
हम कहा है
उसमें हो सकता है
तुम नहीं आते होगे
बुरा मत मानियेगा
हम कहा है
हमारी ओर
धनुष मत तानियेगा
हम कहने का मतलब
मैं और मेरे जैसे कुछ लोग होते हैं
जो सफेद नहीं होते हैं
सफेद पोश होते हैं
कई दिनों तक
कुछ भी नहीं लिखना
अजीब बात होती है
बकवास
करने वाले के लिये
दिन भी रात होती है
पता कहाँ चलता है
लिखने लिखाने का नशा
कब और कहां उतर जाता है
एक पैग़ का
एक पन्ना होता होगा
दूसरा पैग
हाथ में आने से पहले
हवा के साथ ही पलट जाता है
किससे कहे कोई
लिखने लिखाने में
किस सोच में डूबे हो तुम
महीना गुजर जाता है
कुछ नहीं पर
कुछ भी नहीं
लिख पाने का
गम होना
शुरू हो जाता है
शुरू हो जाता है
कुछ गिनी चुनीं टिप्पणियाँ
गिनती की जाती हैं
आने जाने वालों का
हिसाब भी समझ में आता है
लिखना लिखाना
कविता कहानियाँ
शेरो शायरियोँ
से गिना जाना शुरु हो लेता है
बकवास करने वालों को
गुस्सा आना
जायज नजर आता है
किसलिये मिलाना है
कविता और
कवि की दुनियाँ को
पागलों की दुनियाँ से
हर एक आदमी
बस एक आदमी है
पागल ‘उलूक’
रात के अंधेरे में
अपनी बंद आँख से
पता नहीं क्या देखना
क्या गिनना चाहता है?
चित्र साभार: https://www.pinterest.es/