वृन्द के दोहे
‘करत करत
अभ्यास के
जड़मति
होत सुजान’
के
याद आते ही
याद आने शुरु
हो जाते हैं
हिन्दी के
मास्टर साहब
श्यामपट चौक
हिन्दी की कक्षा
याद आने
लगता है
‘मार मार कर
मुसलमान
बना दूँगा मगर
हिन्दी जरूर
सिखा दूँगा’
वाली उनकी
कहावत में
मुसलमान
शब्द का प्रयोग
और जब भी
याद आता है
उनका दिया
गुरु मन्त्र
‘लिख
कर पढ़
फिर पढ़
कर समझ’
जड़मति
‘उलूक’
फिर से लिखना
शुरु हो जाता है
लिखना
रोज का रोज
वो सब जो
उसकी समझ में
नहीं आ पाता है
लिखते लिखते
पता नहीं कितना
कितना लिखता
चला जाता है
ना जड़ मिलती है
ना मति सुधरती है
ना ही मुसलमान
हो पाता है
मार पड़ने का
तरीका बदलता
चला जाता है
मार खाता है
लिखता है
लिख कर
चिल्लाता है
फिर भी
ना जाने क्यों
ना हिन्दी ही
आ पाती है
ना
समझ ही
अपनी समझ
को समझ
पाती है
एक पन्ने के
रोज के
अभ्यास को
पढ़ने के लिये
कोई
आता है
कोई नहीं
आता है
कहाँ पता
हो पाता है
यही
‘करत करत
अभ्यास के
जड़मति
होत सुजान’
उससे
पता नहीं
कब तक
कितना कितना
और ना जाने
क्या क्या आगे
लिखवाता है ?
चित्र साभार: http://www.clipartguide.com
मुझे कोई
दिलचस्पी
नहीं है
करने में
मेरा कुत्ता
तेरे कुत्ते से
सफेद कैसे
तेरा कुत्ता
सफेद है
पॉमेरियन है
मेरा कुत्ता
ढटुआ है
भूरा है
ये भी
कोई
बात है
कुत्ते भी
कभी
नापे
जाते हैं
कुत्ते कुत्ते
होते हैं
होते हैं
तो
होते हैं
इसमें
कौन सी
बुराई है
एक कुत्ते
को लेकर
काहे
इतनी सारी
कहानियाँ
बनाना
कुछ लोग
कुत्ते पर ही
रामायण
लिख रहे हैं
आजकल
रामायण या
रामचरित
मानस में
कुत्ते
का जिक्र
हुआ या
नहीं हुआ
उसे
पता होगा
जिसने
पढ़ी होगी
किताबें
तुलसी की
या
बाल्मीकि की
कितने
लोग
पढ़ते हैं
कहाँ पता
चलता है
फिर भी
कुत्ते को
देखकर
बहुत
से लोग
बहुत कुछ
कहते हैं
लोग
और कुत्ते
दो अलग
बातें हैं
कुत्ते को
देखकर
कुछ
कह देना
आसान है
लोग भी
कुत्ते होते हैं
भौकते भी हैं
सारे कुत्तों
को पता
होता है
लोगों का
जो
भौंकते हैं
कुत्तों
की तरह
वफादारी
करना
सबके
बस का
नहीं होता है
बहुत
मन होता है
कुत्ता
हो जाने का
बहुत
मन होता है
भौंकने का
बहुत
मन होता है
काटने का
बहुत
मन होता है
पूँछ हिलाने का
बहुत
मन होता है
बहुत कुछ
करने का
पर
‘उलूक’
कुछ नहीं
हो सकता है यहाँ
जहाँ सब
कुत्ते हो चुके हैं
अपने अपने
हिसाब के
अपनी अपनी
वफादारी बेचकर
कुत्तों को
मानकर
कुत्ता हो जाना
बुरा सौदा नहीं है ।
चित्र साभार: www.wpclipart.com
खुली रखें
खिड़कियाँ
पूरी नहीं
तो आधी ही
इतने में भी
संकोच हो
तो बना लें
कुछ झिर्रियाँ
नजर भर
रखने के लिये
बाहर चलती
हवाओं के
रंग ढंग पर
बस खयाल
रखें इतना
हवायें
आती
जाती रहें
खिड़कियों
से बना कर
गज भर
की दूरी
चलें
सीधे मुँह
मुढ़ें नहीं
कतई
खिड़कियों
की ओर
देखने
समझने
के लिये
रंग ढंग
खिड़कियों के
खिड़कियाँ
समेट लेती हैं
हवा अन्दर की
पर्दे खिड़कियों
पर लटके हुऐ
लगा लेते हैं
लगाम हवाओं पर
समझा लेती
हैं मजहब
हवाओं को
हवाओं का
खिड़कियाँ
मौसम का
हाल देखने
के लिये खुद
अपनी ही
आँखों से
अपने सामने
जरूरी नहीं
खिड़कियों से
बाहर झाँकना
सुबह के
अखबार
दूरदर्शन के
जिन्दा समाचार
बहुत होते हैं
पता करने के
लिये हवाओं
के मौसम
का हाल
बेहाल हवायें
खुद ही छिपा
लेती हैं
अपने मुँह
बहुत
आसान
होता है
हवा हवा
खेलना
बैठकर दूर
कहीं अंधेरे में
और
समझ लेना
रुख हवा का
‘उलूक’
हवा देता है
हवा हवा
खेलने वाले
कहाँ परवाह
करते हैं
बहुत
आसान
होता है
फैला देना
किसी के
लिये भी
हवा में
कह कर
हवा
लग गई है ।
चित्र साभार: http://www.fotosearch.com
कोई
बुरी बात
नहीं है
ढूँढना
लिखे हुवे
के चेहरे को
कुछ
लोग आँखें
भी ढूँढते हैं
कुछ
की नजर
लिखे हुवे की
कमर पर
भी होती है
कुछ
पाजेब और
बिछुओं को
देख भर लेने
की ललक
के साथ
शब्दों से
ढके हुऐ
पैरों की
अँगुलियों
के दीदार
भर के लिये
नजरें तक
बिछा देते हैं
सबके लिये
रस्में हैं
अपने
हिसाब से
जगह के
हिसाब से
समय के
हिसाब से
कुछ को
लिखे हुऐ में
अपना चेहरा
भी नजर
आ जाता है
कुछ
के लिये
बहुत साफ
कुछ
के लिये
कुछ धुँधला सा
कुछ
के लिये चाँद
हो जाता है
कुछ नहीं
किया जा
सकता है
अगर कोई
ढूँढना शुरु
कर दे रिश्ते
लिखे हुऐ के
पीछे से
झाँकते हुऐ
अर्थों में
बबाल तो
हर जगह
होते हैं
कुछ
बने बनाये
होते हैं
कुछ
खुद के लिये
कुरेद कर
पन्नों को
बिना नोंक
की पेन्सिल से
खुद ही
बनाये गये
होते हैं
फट चुके
कागज भी
चुगली करने में
माहिर होते हैं
अब
इस सब से
‘उलूक’ को
क्या लेना देना
फटे में
अपनी टाँग
अढ़ाने के
चक्कर में
कई बार
खुद भी
फटते फटते
बचा हो कोई
या
फट भी
गया हो
तो भी
क्या है
होना तो
वही होता है
जो सुना
जा चुका
होता है
‘राम जी रच चुके हैं’
गाल पीटने
वालों के
गालों से
उन सब
को कहाँ
मतलब
होता है
जिन्हें
पिटने
या
पीटने की
आवाज
संगीत ही
सुनाई
देती हो
रहने दीजिये
ये रामायण
का आखरी
पन्ना नहीं है
अभी
कई राम
और पैदा
होने के
आसार हैं
भविष्यवाणी
करना ठीक
नहीं है
हनुमानों
पर नजर
रखते चलिये
कुछ
ना कुछ
संकेत
जरूर मिलेंगे
अब
लिखा हुआ
ही आईना हो
या
आईने में ही
लिखा गया हो
रहने
भी दीजिये
इस पर
फिर कभी कुछ
अगली
बकवास
के पैदा होने
तक के लिये
‘राम राम’
चित्र साभार: study.com
दो दिन
निकल लिये
कौन से
कैलेण्डर
के निकले
पता नहीं है
सोमवार
मंगलवार
की चीर फाड़
कब
शुरु होगी
कौन करेगा
अभी तो
किसी ने कुछ
कहा नहीं है
दो दिन पहले
घर पर लटके
कैलेण्डर में
चढ़ी तारीख
उछल रही थी
देखा था
सपने में
सपने
देखने पर
अभी तक तो
कोई पैसा
लगा नहीं है
पूना में हुई है
मारपीट
सुना है
अभी अभी
समाचार में
कौन मरा है
किसने मारा है
कितने मरे हैं
क्यों मारे हैं
इस सब से
किस
कैलेण्डर
को कहाँ
लटकना
है से
कुछ भी तो
लेना देना
नहीं है
दो दिन पहले
महसूस हुआ था
शुभकामनाएं ले लो
किसी से कहा था
जवाब मिला था
मेरा तो आज
नहीं होता है
मना किया
गया है मुझे
आज कुछ भी
किसी से
लेना नहीं है
इन्तजार होना
शुरु हो गया है
‘उलूक’ को
देखने का
हाथों को अलग
पैरों को अलग
आँखों को अलग
कानो को अलग
नाचते हुऐ
अलग अलग
अपने अपने
घरों में अलग
वैसे भी
आदमी को पूरा
एक साथ खुद में
आदमी रह कर
अब होना भी
कोई होना नहीं है ।
चित्र साभार: https://drawception.com