उलूक टाइम्स

शनिवार, 10 दिसंबर 2011

अन्नाभाई अविनाश जी

अविनाश वाचस्पति

कभी थे मुन्नाभाई

अन्ना
का हुवा जब
अवतरण देव रुप सा

चिपका
लिया इन्होने
भी
अन्नाभाई

और
दिया मुन्नाभाई
को
विश्राम का आदेश

अभी तक
मुलाकात
तो हुवी नहीं
पर होंगे
एक अदद आदमी ही

ऎसा महसूस
होता
सा रहता है
हमेशा

बड़े अजब गजब
से
करतब दिखाते हैं

शब्दों के
कबूतर
बना
यहां से वहां
हमेशा उड़ाते हैं

और
हम पकड़ने
के 
लिये
जाल भी बिछा दें
तो भी नहीं
पकड़
पाते हैं

जब भी करी
कोशिश
अपने को ही
शब्दों के मायाजाल
से घिरा पाते हैं

ब्लागिंग
का रोग
बहुत फैलाया है

थोड़ा सा वायरस
इधर भी आया है

इनको
तो नींद भी
कहाँ आती है

ये तो सोते हैं नहीं
हमें सपने में डराते हैं

इनके ब्लागों में
कितना माल समाया है
हम तो चटके लगाने में
ही
भटक जाते हैं

इनके उपर लिखने
के लिये
बहुत सामान
हो गया है जमा

अब जरूरत है
एक
बड़ी आस की
और
एक अदद राम के
तुलसीदास
की

देखिये
कब तक
ढूँढ कर ला पाते हैं।

शुक्रवार, 9 दिसंबर 2011

भूखे के लिये सेमिनार

मैं जानता हूँ
बहुत दिनो से
उसकी जरूरत
भूख से बिलबिलाती
आंतो का हाल
जो उसके मुंह
पर साफ नजर
आता है और
मुझे ये भी
मालूम है
कि केवल एक
रोटी की जरूरत
भर से उसके
चेहरे पर
लाली भरपूर
आने वाली है
मैं खुश हूँ
तब से
जब से
सुना है
मैंने
बहुत जल्दी
ही होने
वाला है
इसका समाधान
शिक्षाविदों
कृषि विशेषज्ञों
पर्यावरण विशेषज्ञों
के एक
विशालकाय
सम्मेलन में।

गुरुवार, 8 दिसंबर 2011

सौदागर

दूसरों के हिस्से की
धूप और चांदनी का
सौदा करने वालों को
इस बात से क्या
फरक पड़ता है कि
उनके उजाले में कोई
बरकत नहीं होने
वाली इस बात से
इतना भरोसा है
उनको अपने आप पर
कि वो रोक लेंगे
सावन की बूदों को
उसको भिगाने से
पहले कभी भी
हवा को रोकने का
दम भी रखते हैं
हमेशा से अपने पास
सांसे गिनने के
कारोबार से
सुना है बहुत
नफे में रहते हैं
पर जिसके हिस्से
की धूप चांदनी
सावन और सांसों
पर नजर रखते है वो
उसने कब परवाह
की ऎसे नादानों की
और फटेहाली
पर भी जो
मुस्कुराहट उसके
चेहरे पै आती है
उनको कहां
बता पाती है
कि ये सब
उन्ही ने दे
दिया उसको
भूल से।

बुधवार, 7 दिसंबर 2011

गौरैया

गौरैया
रोज की तरह
आज 
सुबह

चावल
के
चार दाने
खा के
उड़ गयी

गौरैया
रोज आती है

एक मुट्टी
चावल
से
बस चार दाने
ही
उठाती है

पता नहीं क्यों

गौरेया
सपने नहीं देखती
होगी शायद

आदमी
चावल के बोरों
की
गिनती करते
हुवे
कभी नहीं थकता

चार मुट्ठी चावल
उसकी किस्मत
में होना
जरूरी 
तो नहीं

फिर भी
अधिकतर
होते ही हैं
उसे मालूम है
अच्छी तरह

जाते जाते
सारी बंद मुट्ठियां
खुली रह जाती हैंं 

और
उनमें
चावल 
का
एक दाना
भी नहीं होता

गौरैया
शायद ये
जानती होगी ।

मंगलवार, 6 दिसंबर 2011

पिताजी की सोच

मैंने पिताजी को
मेरे बारे में
माँ से कई बार
पूछते हुवे सुना था
"इसके घोड़े हमेशा
इसकी गाड़ी के पीछे
क्यों लगे होते हैं?"
माँ मुस्कुराती
लाड़ झलकाती
और साड़ी का पल्लू
ठीक कर पिताजी
को तुरंत बताती
चिंता करने की
कोई बात नहीं है
अभी छोटा है
कुछ दिन देखिये
अपने आप सब
जगह पर आ जायेगा
गाड़ी भी और घोड़ा भी
ये बातें मैं कभी
भी नहीं समझ पाया
जब भी कोशिश की
लगता था खाली
दिमाग खपाया
माँ और पिताजी
आज दोनो नहीं रहे
बीस एक साल
और गुजर गये
मैं शायद अब
वाकई मैं बड़ा
हो पडा़ अचानक
आँख खुली और
दिखने लगे आसपास
के घोड़े और गाड़ियां
सब लगे हुवे हैं
उसी तरह जिस
तरह शायद मेरे
हुवा करते थे
और आज मैं
फिर से उसी
असमंजस मैं हूँ
कि आँखिर पिताजी
ऎसा क्यों कहा
करते थे?