उलूक टाइम्स

गुरुवार, 19 जनवरी 2012

एक राजा के लम्बे कान

धन्ना नाई
की कहानी

मेरी माँ 
मुझे

सुनाती थी

पेट में उसके
कोई भी
बात नहीं
पच पाती थी

निकल ही
किसी तरह
कही भी
आती थी

राजा ने
बाल काटने
उसे
बुलाया था

उसके
लम्बे कान
गलती से
वो देख
आया था

बताने पर
किसी को भी
उसे मार
दिया जायेगा
ऎसा कह कर
उसे धमकाया था

पर बेचारा
आदत का मारा
निगल
नहीं पाया था

एक
पेड़ के
ठूँठ के सामने
सब उगल
आया था

पेड़ की
लकड़ी का
तबला कभी
किसी ने
बना के
बजाया था

उसकी
आवाज में
राजा का
भेद भी
निकल
आया था

मेरी
आदत भी
उस नाई
की तरह ही
हो जाती है

अपने
आस पास
के सच
देख कर
भड़क जाती है

रोज तौबा
करता हूँ
कहीं
किसी को
कुछ नहीं
बताउंगा

सभी तो
कर रहे हैं
करने दो
मैं कौन सा
कद्दू में तीर
मार ले जाउंगा

उस समय
मैं अपने को
सबसे अलग सा
देखने लग जाता हूँ

सारे लोग
बहुत सही
लगते हैं
और
मैं अकेला
जोकर हो जाता हूँ

एक राजा के
दो लम्बे कान
तो बहुत
पुराने हो गये

कहानी सुने भी
मुझे अपनी माँ से
जमाने हो गये

आज रोज
एक राजा
देख के
आता हूँ
उसके लम्बे
कानों को
भी हाथ
लगाता हूँ
वहाँ कोई
किसी को
भाव नहीं देता
जान जाता हूँ

फिर रोज
धन्ना नाई
की तरह
कसम खाता हूँ

पर यहाँ
आ कर तो
हल्ला मचाने में
बहुत मजा आता है

लगता है
नक्कार खाने मे
तूती बजाने
जैसे कोई जाता है

देखना ये है
कि इस ठूंठ का
कोई कैसे
तबला बना पाता है

फिर
मेरे राजाओं
के लम्बे लम्बे
कानों की खबर
इकट्ठा कर
उनके कान भरने
चला जाता है?

चित्र साभार: Fresh Korean

बुधवार, 18 जनवरी 2012

आशा है

समय के साथ
कितने माहिर
हो जाते हैं हम
चोरी घर में
यूँ ही
रोज का रोज
करते चले
जाते हैं हम
दिल्ली में चोर
बहुत हो गये हैं
जागते रहो
की आवाज भी
बड़ी होशियारी से
लगाते हैं हम
बहुत सारे चोर
मिलकर बगल
के घर में लगा
डालते हैं सेंघ
पर कभी कभी
पड़ोस में ही
होकर हाथ मलते
रह जाते हैं हम
चलो चोरी में
ना मिले हिस्सा
कोई बात नहीं
बंट जायेगा चोरी
का सामान कल
कुछ लोगों में जो
हमारे सांथ नहीं
फिर भी आशा
रखूंगा नहीं
घबराउंगा
बड़े चोर पर ही
अपना दांव
लगाउंगा
आज कुछ भी
हाथ नहीं
आया तो भी
बिल्कुल नहीं
पछताउंगा
कभी तो बिल्ली
के भाग से
छींका जरुर
टूटेगा और
मैं भी अपनी
औकात से
ज्यादा लपक के
ले ही आउंगा।

सोमवार, 16 जनवरी 2012

काले कौआ

कौऔं को बुलाने का
सुबह बहुत सुबह
हल्ला मचाने का
रस्में निभाने का
क्रम आज भी जारी है
कौऔं का याद आना
मास के अंतिम दिन का
मसांति कहलाना
जिस दिन का होता है
भात दाल बचाना
संक्रांति के दिन के
उरद के बड़े सहित
पकवान बनाना
दूसरे दिन सुबह
पकवानों की माला
गले में लटकाना
फिर चिल्ला चिल्ला
के कौऔ को बुलाना
"काले काले घुघुति माला खाले"
दादा जी के जमाने थे
वो भी रस्में निभाते थे
सांथ छत पर आते थे
काले काले भी
हमारे सांथ चिल्लाते थे
देखे थे मैने तब कौऎ आते
जब भी थे उनको हम बुलाते
वो थे आते घुघुती खाते
फिर थे उड़ जाते
समय के सांथ
परिवर्तन हैं आये
कौऔ ने सांथ
हमारे नहीं निभाये
कौऔ को बुलाना
और उनका आना
इतिहास सा हो गया
कौआ पता नहीं
कहाँ
है खो गया
कल को फिर हम
सुबह सुबह चिल्लायेंगे
कौऎ शायद इस बार भी
नहीं आ पायेंगे
लगता है कौऔं के
यहा चुनाव अब नहीं
हो पाते हैं
इस लिये वो जरूरी
नहीं समझते होंगे
और इसीलिये अब
वो हमसे मिलने
पकवान निगलने
शायद नहीं आते हैं।

शुक्रवार, 13 जनवरी 2012

उलूक उवाच अथ चुनाव कथा


दूरदृष्टि
पक्के इरादे
के
साथ

संभाली है
कमान

एक
अच्छे
आदमी
के

चुनाव
की

कुछ
बुरे 
लोगों
की
फौज ने

अच्छे
के
कंधे

अभी
मजबूत
किये
जा रहे हैं

चुनाव
के बाद

गोलियां
इसी कंधे
से
चलाने के लिये

कुछ
अच्छे लोगों
ने

संभाली है
बागडोर

एक
बुरे आदमी
के
चुनाव प्रचार
की

इरादे
नेक हैं
निशाना
एक है

अच्छे
के साथ
भी है
एक भीड़

बुरे
के साथ
भी 
है
दूसरी भीड़

एक
के बाद एक

रोज
निकल के
आ रही हैं
भीड़े
सड़क पर
लगातार

लोग
लगा रहे हैं
गणित
चाय के
खोमचों पर
हमेशा
की तरह
आजकल

अन्ना
और उसकी
सफेद
टोपियां भी
खो गयी हैं

पता 
नहीं
कहां

इन सब
समीकरणों
के बीच

मुझे
मालूम है

मैने
भी
देना है
एक वोट

इन
सभी
भ्रमों से
उलझते हुवे

कुछ
दिन बाद
और

फिर
भूल जाना है
कुछ
सालों के लिए।

गुरुवार, 12 जनवरी 2012

मतदान दूर है

शतरंंज खेलना
हर किसी को
यहाँ कहाँ आता है
फिर भी कोशिश कर
वो एक बिसात
बिछाता है।
काले या सफेद नहीं
मोहरों को दोनो
ओर से चलाता है
हारना नहीं चाहता है
जीतने वाले को
अपना बताता है।
खेल देखने वालों को
कभी भी पता
नहीं चल पाता है
वो कब इधर और
कब उधर पाला
बदल चला जाता है।
लेकिन किस्मत और
उपर वाले के खेल
को कौन भांप
कभी पाता है
जब अचानक
बिसात का एक
मोहरा अपनी
चाल खुद ब खुद
चलता चला
जाता है
बहुत लम्बा
कितना भी
लम्बा खेल
खेलने वाला
क्यों न हो
अपनी ही
चाल में एक बार
कभी कभी
फंस ही जाता है।