उलूक टाइम्स: खेल
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मंगलवार, 14 जून 2022

फिर से एक आधी बकवास पूरे महीने के आधे में ही सही कुछ तो खाँस

 




शर्म एक शब्द ही तो है
मतलब उसका भी है कुछ तब भी

और आधा सच होने मे कोई शर्म नहीं होनी चाहिये
होती भी नहीं है

पूर्णता किसे मिलती है?
 हाँ फख्र दिखता है आधे सच का
जिस पर मिलती हैं शाबाशियाँ
और पीटी जाती हैं तालियाँ

पूरा सच सिक्के के एक तरफ होता भी कहां है
हेड या टैल
दोनो और आधा आधा सच
सिक्का खड़ा भी हो जाये
तब भी दिखेगा एक तरफ का आधा सच ही

और आधे सच का खिलाड़ी
सबसे गजब का खिलाड़ी जो कभी गोल नहीं करता है
क्यों की गोल होने से खेल का परिणाम सामने से होता है
और खेल विराम लेता है

पूर्णता के साथ फिलम खतम करना कोई नहीं चाहता है
आधे भरे गिलास में भरी शराब पानी का करती इंतजार
सबसे बड़ा सपना होता है एक शराबी के लिये
शराबी को नशा होता है वो भी आधा
सुबह होती है यानि कि आधा दिन
और सपना टूट जाता है

जो हम करते हैं
उसे छोड़ कर सब कह देना
लेकिन कभी पूरा नहीं बस आधा आधा छोड़ देना
क्योंकि आधा ही पूर्ण है
पूर्ण मे‌ खुल जाता पूरा झोल है

‘उलूक’ बखिया उधेड़ लेकिन पूरी नहीं
पूरी उधड़ने से खिसक सकती है ढकी हुई झूठ कि पुतली
इसलिये आधा देख आधा फेँक आधा सेक
और मौज में काट ले जिंदगी

वैसे भी कौन सा मरना भी पूरा होता है
कहते हैं फिर जनम होता है
बाकी आधे का हिसाब किताब देने के लिये।


चित्र साभार: https://clipart.me/

मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

डरना मना है /जो डर गया सो मर गया/ डरना है/ डर के आगे जीत है


रोज के डरे हुऐ के लिये 
कोई नयी बात नहीं है एक नया डर
या फिर हमेशा के कुछ
पुराने कई छोटे छोटे अनेक डर 

या
भयानक बड़ा सा एक डर

घेर कर डराने की कला में माहिर
एक डरे हुऐ के पैदा किये हुऐ डरों से डरते
सारे डरे हुऐ घिर गये हैं
डरों के खण्डहरों के अन्दर की
चाहरदीवारों के बीच कहीं

घर घर खेलने बुनने के आदेश का पालन
करने की जुगत लगाते हुऐ
खिसियाये नहीं हैं हर्षित हैं
बाँट रहे हैं खुश्बूदार फूलों से
लबालब भरी टोकरियों के भड़कीले चित्र

जिनके नीचे से किसी कोने में दुबका हुआ है अंधा हो चुका
काला चश्मा लगाया हुआ डर

सब पर सब कुछ लागू नहीं होता है
निडर होना दिखाना निडर होना
अलग अलग पहलू हैं

मृत्यु शाश्वत है
समय निर्धारित है आस्तिकों के लिये
नास्तिक होना गुनाह नहीं है

डर पर निडर के मुखौटे चिपकाये
सकारात्मकता के लबादे ओढ़े
मौसमी संतों के प्रवचनों के संगीत से उछलती
टी आर पी से

पेट में भरे पानी में बनती उर्मियों का
साँख्यिकी में कोई उपयोग होता है अनसुना है

ऐसे ही एक एक कर डरे हुओं का जमा होना
इशारों इशारों में किसी डरे हुऐ के
डरे सिपाहियों की फौज से
टकराने निकल पड़ना
पकड़ कर अपने अपने खाली हवा भरे पेट
गलत कहाँ है

ऐसे में ही
एक भरे पेट को शिकायत होना
दूसरे भरे पेट से
कुछ करते क्यों नहीं
का
उलाहना देना 


आप ही बता दीजिये
पेट दर्द में मालिश से हवा निकालने की दवा
 
एक जम्हाई के साथ शट डाउन का बटन का दबना
और फिर नींद का आ जाना

अपने डर तू भी निकाल ले ‘उलूक’
माहौल बना बनाया है
फिर क्या पता कब शुरु हो अगली बार
निडरों की जमात का ये खेल
डरना मना है डर के आगे जीत है वाला।

चित्र साभार: https://www.123rf.com/

शनिवार, 12 अगस्त 2017

बस एक कमेटी बना मौत के खेल को कोढ़ के खेल पर ले आ

कहा था
कोढ़ फैला

कोढ़
समझ में
नहीं आया तेरे
मौत फैला आया

आक्सीजन से
कोढ़ भी हो
सकता था
तुझे पता
नहीं था

मौत देने की
क्या जरूरत थी

आक्सीजन
से कोढ़
समझ में
नहीं आ
रहा होगा

होता है

कुछ भी
सम्भव है
किसी चीज
से कुछ भी
हो सकता है

कैसे हो
सकता है


अखबार
वालों से
रेडियो
वालों से
टी वी
वालों से
समबन्ध कुछ
अच्छे बना

समबन्ध
मतलब
वही जो
घर में घर
के लोगों से
घर के जैसे
होते हैं

चिन्ता करने
की जरूरत
नहीं है

अब कर दिया
तो कर दिया
हो गया
तो हो गया

ऐसा कर
अब कमेटी
एक बना

कमेटी में
उन सब को
सदस्य बना
जिनको मौत
समझ में
नहीं आती है
बस कोढ़
समझ में
आता है

कोढ़ का
मतलब
उस बीमारी
से नहीं है
जिसमें शरीर
गलता है थोड़ी सी
आत्मा को गला

कई जगह
कई आत्माएं
सामने सामने
गलती बहती
हुई दिखती हैं
बहुत मौज
में होती हैं

जब कोढ़
हो जाना
या कोढ़ी
कहलाया जाना
किसी जमाने से
सम्मान की बात
हो चुकी होती है

‘उलूक’ को
खुजली होती
ही रहती है
उसकी खुजली
पर मत जा

कोढ़ और कोढ़ी
उन्मूलन के
खिलाफ
कुछ मत बता

बस कुछ
रायता फैला
कुछ दही
कुछ खीरा
अलग कर
और
कुछ नमक
कुछ मसाला
फालतू का मिला

खुद भी खा
कमेटी को
भी कुछ खिला।


चित्र साभार: Weymouth Drama Club

सोमवार, 3 अप्रैल 2017

खेल भावना से देख चोर सिपाही के खेल

वर्षों से
एक साथ
एक जगह
पर रह
रहे होते हैं

लड़ते दिख
रहे होते हैं
झगड़ते दिख
रहे होते हैं

कोई गुनाह
नहीं होता है
लोग अगर
चोर सिपाही
खेल रहे होते हैं

चोर
खेलने वाले
चोर नहीं हो
रहे होते हैं
और
सिपाही
खेलने वाले भी
सिपाही नहीं
हो रहे होते हैं

देखने वाले
नहीं देख
रहे होते हैं
अपनी आँखें

शुरु से
अंत तक
एक ही लेंस से
उसी चीज को
बार बार

अलग अलग
रोज रोज
सालों साल
पाँच साल

कई बार
अपने ही
एंगल से
देख रहे
होते हैं

खेल खेल में
चोर अगर कभी
सिपाही सिपाही
खेल रहे होते है

ये नहीं समझ
लेना चाहिये
जैसे चोर
सिपाही की
जगह भर्ती
हो रहे होते हैं

खेल में ही
सिपाही चोर
को चोर चोर
कह रहे होते है

खेल में ही
चोर कभी चोर
कभी सिपाही
हो रहे होते हैं

खबर चोरों के
सिपाहियों में
भर्ती हो जाने
की अखबार
में पढ़कर

फिर
किस लिये
‘उलूक’
तेरे कान
लाल और
खड़े हो
रहे होते हैं

खेल भावना
से देख
खेलों को
और समझ
रावणों में ही
असली
रामों के
दर्शन किसे
क्यों और कब
हो रहे होते हैं

ये सब खेलों
की मायाएं
होती हैं

देखने सुनने
पर न जा
खेलने वालों
के बीच और
कुछ नहीं
होता है
खेल ही हो
रहे होते हैं ।

चित्र साभार: bechdo.in

शुक्रवार, 30 दिसंबर 2016

आओ खेलें झूठ सच खेलना भी कोई खेलना है



प्रतियोगिता झूठ बोलने की ही हो रही है
हर तरफ आज के दिन पूरे देश में
किसी एक झूठे के बड़े झूठ ने ही जीतना है

झूठों में सबसे बड़े झूठे को मिलना है ईनाम
किसी नामी बेनामी झूठे ने ही
खुश हो कर अन्त में उछलना है कूदना है

झूठे ने ही देना है झूठे को सम्मान
सारे झूठे नियम बन चुके हैं
झूठे सब कुछ झूठ पर पारित कर चुके हैं
झूठों की सभा में
उस पर जो भी बोलना है जहाँ बोलना है
किसी झूठे को ही बोलना है

सामने से होता हुआ नजर आ रहा है
जो कुछ भी कहीं पर भी
वो सब बिल्कुल भी नहीं देखना है
उस पर कुछ भी नहीं कुछ बोलना है

झूठ देखने से नहीं दिखता है
इसलिये किसलिये
आँख को अपनी किसी ने क्यों खोलना है
झूठ के खेल को पूरा होने तक खेलना है

झूठ ने ही बस स्वतंत्र रहना है
झूठ पकड़ने वालों पर रखनी हैं निगाहें
हरकत करने से पहले उनको
पकड़ पकड़ उसी समय
झूठों ने साथ मिलकर पेलना है

जिसे खेलना है झूठ
उसे ही झूठ के खेल पर करनी है टीका टिप्पणी
झूठों के झूठ को झूठ ने ही झेलना है

‘उलूक’ तेरे पेट में होती ही रहती है मरोड़
कभी भरे होने से कभी खाली होने से
लगा क्यों नहीं लेता है दाँव
ईनाम लेने के लिये झूठ मूठ में ही
कह कर बस कि
पूरा कर दिया तूने भी कोटा झूठ बोलने का
हमेशा सच बोलना भी कोई बोलना है ।

चित्र साभार: www.clipartkid.com

बुधवार, 13 अप्रैल 2016

दूर कहीं जा अपने घर से जिसके भी घर जितना चाहे खेल कबड्डी

कौन
देख रहा
किस ब्रांड की
किसकी चड्डी

रहने दे
खुश रह
दूर कहीं
अपने घर
से जाकर

जितना
मन चाहे
खेल कबड कबड्डी

अपने
घर की
रेलमपेल

खेलने वाले
तेरे ही अपने
उनके खेल
तेरे ही खेल

मत बन
अपने ही
घर के
अपनों के

कबाब की
खुद ही तू हड्डी

दूर कहीं
अपने घर
से जाकर
जितना मन चाहे
खेल कबड कबड्डी

खबर छाप
फोटो खींच

दिखा दूर
कहीं जंगल में
जहरीला सांप

घर में बैठा
एक नहीं
हर कोई
लागे जब

अपना ही
मुहँबोला बाप

बातें सुन
घर की घर में
बड्डी बड्डी

मत कर
ताँक झाँक
रहने दे
झपट्टा झपट्टी

मालूम होता
है खुद का
खुद को

सब कुछ
कहाँ से

कितनी
अंदर की

कहाँ से
कहाँ तक
फटी हुई है
अपनी खुद
की ही चड्डी

दूर कहीं
अपने घर से
जाकर
जितना मन चाहे
खेल कबड कबड्डी

लेकर हड्डी
दूर निकल कर

बहुत
दूर से
नहीं नजर
पड़े जहाँ से
अपने घर की
शराब की भड्डी

इसके उसके
सबके घर में

जा जा कर
झंडे लहराकर

सबको समझा
इसके उसके
घर की
फड्डा फड्डी

दूर कहीं
अपने घर से
जाकर
जितना मन चाहे
खेल कबड कबड्डी ।

चित्र साभार: www.vidhyalya.in

मंगलवार, 15 मार्च 2016

जमूरे सारे कुछ जमूरों को छोड़ कर मदारी के इशारे पर मदारी मदारी खेलने निकल कर चले

कुछ जमूरे मिलें
शागिर्दी के लिये

तमन्ना है जिंदगी
में एक बार
बस
एक ही बार

मदारी होने का
ज्यादा नहीं
एक ही मिले
मौका तो मिले

जमूरा बना रह
जाये कोई
ताजिंदगी
निकलते चलें
इधर से भी
और
उधर से भी

कब कौन
बन जाये
मदारी
सामने सामने
कैसे किस
तरीके से
कभी तो
ये राज
थोड़ा सा
ही सही
कुछ तो खुले

नहीं दिखा
एक भी
मदारी
सोचता
हुआ सा
भी कभी

उसका
कोई जमूरा
उसके बराबर
आ कर
खड़ा हो कर
उसके जैसा
ही नहीं
कभी भी कुछ
छोटा मोटा
सा भी
मदारी की
तरह का कहीं
गलती से भी
कभी कहीं
जा कर बने

मदारी हों
जमूरे हों
जमूरे मदारी
के ही हो
मदारी जमूरों
के ही हो
दोनो ही रहें

एक दूजे
के लिये
ही बने
होते हैं
दोनो ही रहें
दोनों ही बनें
एक दूसरे
के साथ
रह कर
चलायें
सरकस
कहीं का
भी हो

सरकस चलें
चलते रहें
बिना मदारी का
हो जाये ‘उलूक’
जैसा जमूरा
ना बन पाये
मदारी भी कभी

खबर
जब मिले

जमूरे कुछ
जमूरों को
छोड़ सारे
जमूरों के
साथ मिल
मदारी के लिये

एक बार
फिर
मिल जुल
कर सभी
कुछ सुना है
बहुत कुछ
करने को
हाथ में
लेकर हाथ
ये चले
और
वो चले ।

चित्र साभार: www.garylellis.org

मंगलवार, 27 अक्तूबर 2015

आ जाओ अलीबाबा फिर एक बार खेलने के लिये चोर चोर


रोज जब चोरों से सामना होता है 
अलीबाबा तुम बहुत याद आते हो

सारे चोर खुश नजर आते हैं
जब भी चोर चोर खेल रहे होते हैं
और जोर जोर से चोर चोर चिल्लाते हैं

चोर अब चालीस ही नहीं होते हैं
मरजीना अब नाचती भी नहीं है

अशर्फियाँ तोलने के तराजू
और अशर्फियाँ भी अब नहीं होते हैं

खुल जा सिमसिम अभी भी कह रहे हैं लोग
खड़े हैं चट्टानों के सामने से
इंतजार में खुलने के किसी दरवाजे के

अलीबाबा बस एक तुम हो
कि दिखाई ही नहीं देते हो

आ भी जाओ 
इससे पहले हर कोई
निशान लगाने लगे दरवाजे दरवाजे
इस देश में

और पैदा होना शुरु हों गलतफहमियाँ
लुटने शुरु हों घर घर में ही घर घर के लोग

डर अंदर के फैलने लगें बाहर की तरफ
मिट्टी घास और पेड़
पानी बादल और काले सफेद धुऐं में भी

रहम करो
ले आओ कुछ ऐसा जो ले पाये जगह
खुल जा सिमसिम की
और पिघलना शुरु हो जायें चट्टाने

बहने लगे वो सब
जो मिटा दे सारे निशान और पहचान

सारी कायनात एक हो जाये
और समा जाये सब कुछ कुछ कुछ ही में

आ भी जाओ अलीबाबा
इस से पहले कि देर हो जाये 
और ‘उलूक’ को नींद आ जाये
एक नये सूरज उगने के समय ।

चित्र साभार: www.bpiindia.com

सोमवार, 8 जून 2015

परेशानी तब होती है जब बंदर मदारी मदारी खेलना शुरु हो जाता है

मदारी को इतना
मजा आता है
जैसे एक पूरी
बोतल का नशा
हो जाता है
जब वो अपने
बंदर को सामने
वाले के सिर पर
चढ़ कर
जनता के बीच में
उसकी टोपी
उतरवाना सिखाता है
बालों पर लटक
कर नीचे उतरना
कंधे पर चढ़ कर
कानों में खों खों करना
देखते ही मदारी के
चेहरे की रंगत में
रंग आ जाता है
जब पाला पोसा हुआ
बंदर खीसें निपोरते हुऐ
गंजे के सिर में
तबला बजाता है
मदारी खुद सीखता
भी है सिखाना
अपने ही आसपास से
सब कुछ देख देख कर
बड़े मदारी की हरकतों को
कैसे बंदरों के कंधों में
हाथ रख रख कर
अपने लिये बड़ा मदारी
बंदरों से अपने सारे
काम निकलवाता है
काम निकलते ही
बंदरों को भगाने के लिये
दूसरे पाले हुऐ बंदरों से
हाँका लगवाता है
सब से ज्यादा मजा तो
आइंस्टाइन को आता है
सामने के चौखट पर
खड़े होकर जब वो खुद
एक प्रेक्षक बन जाता है
'जय हो सापेक्षता के
सिद्धाँत की' उस समय
अनायास ही जबान से
निकल जाता है जब
एक मदारी के सर पर ही
उसका सिखाया पाल पोसा
चढ़ाया हुआ बंदर
उसके ही बाल नोचता
नजर आता है ।



चित्र साभार: jebrail.blogfa.com

सोमवार, 27 अप्रैल 2015

बचपन का खिलौना भी कभी बड़ा और जवान होता है एक खिलाड़ी जानता है इस बात को उसे पता होता है


जब तक पहचान नहीं पाता है खिलौनों को
खेल लेता है किसी के भी खिलौने से
किसी के भी साथ कहीं भी किसी भी समय

समय के साथ ही आने शुरु होते हैं समझ में खिलौने और खेल भी
खेलना खेल को खिलौने के साथ होना शुरु होता है
तब आनंददायक और भी

कौन चाहता है खेलना वही खेल उसी खिलौने से 
पर किसी और के

ना खेल ही चाहता है बदलना
ना खिलौना ही ना ही नियम खेल के
इमानदारी के साथ ही

पर खेल होना होता है उसके ही खिलौने से 
खेलना होता है खेल को उसके साथ ही
तब खेल खेलने में उसे कोई एतराज नहीं होता है

खेल होता चला जाता है
उस समय तक जब तक खेल में
खिलौना होता है और उसी का होता है ।

चित्र साभार: johancaneel.blogspot.com

सोमवार, 3 मार्च 2014

आदमी खेलता है आदमी आदमी आदमी के साथ मिलकर

हाड़ माँस और
लाल रक्त
आदमी का जैसा
ही होता है आदमी
कोशिश करता है
घेरने की एक
आदमी को ही
मिलकर एक
आदमी के साथ
आखेट करने वाले
के निशाने पर
होता है उस
समय भी
एक आदमी
बहुत सी मौतें
स्वाभाविक
होती हैं जिनमें
आदमी की
मृत्यू होती है
मरने वाला भी
आदमी होता है
मारने वाला भी
आदमी होता है
मर जाना यानि
मुक्त हो जाना
मोक्ष पा जाना
छुटकारा मिल जाना
आदमी को एक
आदमी से ही
इतना आसान
नहीं होता है
जितना कहने
सुनने और लिखने
में लगता है
आदमी का सबसे
प्रिय खेल भी
यही होता है
जंगल के शेर
के शिकार में
वो नशा कभी
नहीं होता है
जैसा आदमी के
शिकार में आदमी
के साथ मिलकर
एक आदमी ही
आदमी को घेरेते
चले जाता है
आदमी को भी
पता होता है
घेरेने वाला भी
अपना ही होता है
धागे भी बहुत
पक्के होते हैं
जाल कसता
चला जाता है
आदमी बस
कसमसाता है
पकड़ मजबूत
होते चली जाती है
आदमी के पंजे में
एक आदमी
आ जाता है
मरता कहीं भी
कोई नहीं है
पकड़ने वाला
मारना ही
नहीं चाहता है
फाँसी देने से
बेहतर उम्र कैद
को माना जाता है
क्या क्या नहीं
करता है आदमी
आदमी के साथ
बस बचा हुआ
कुछ है तो
आदमी की नींद
का एक सपना
जो उसका अपना
कहलाता है
आदमी का मकसद
होता है जिसे
अपनी मुट्ठी
में करना
बस यहीं पर
आदमी आदमी
से मात
खा जाता है
आदमी आदमी
के साथ मिलकर
आदमी को
कभी मोक्ष
नहीं दे पाता है ।

मंगलवार, 25 फ़रवरी 2014

उलूक एक बस्ती उजाड़ने में बता तेरा क्या रोल होता है

परिपक्व यानी
पका हुआ फल
सुना है मीठा
बहुत होता है
सुनी सुनाई नहीं
परखी हुई बात है
हमेशा तो नहीं
पर कई बार
अपने लिये निर्णयों
पर ही शक बहुत
होने लगता है
मेरा निर्णय
उसका निर्णय
तेरा निर्णय
सब गडमगड
गलत और सही
कहीं किसी किताब
में लिखा ही
नहीं होता है
एक सूखी हुई
नदी के रास्ते के
पत्थरों को वाकई
बहुत घमंड होता है
अपनी मजबूती पर
आपदा के समय
ही पता लगता है
पेंदी और बेपेंदी
की चट्टाने कौन सी
पड़ी रहती है
और कौन सी
चल देती है
पानी के प्रवाह
के साथ बिना
शिकायत के
जीवन हर किसी
के लिये अलग 
पहलू एक होता है
किताबें सिद्धांत
समझने वालों
के लिये होती हैं
पर कोशिश
सब करते हैं
लागू करने की
किसी से हो
ही जाता है और
कोई ऐसी की
तैसी कर लेता है
“उलूक”
तुझे पता है
कितना गोबर
भरा है तेरे भेजे में
फिर भी नहीं
समझ में आता है
तू किस बात के
पंगे ले लेता है
ओलम्पियाड सारी
जिंदगी में दिखेंगे
तुझे हरे लाल
और पीले काले
क्यों फजीहत
करवाता है अपनी
हर बार फेल होता है
मकड़ी सात बार
में चढ़ गई थी
दीवार कभी एक
कहानी रही है
बहुत पुरानी
लोगों के लिये
पता कहाँ
चल पाता है
क्या रोजमर्रा
का जैसा काम
और क्या
कभी कभी का
एक खेल होता है ।

मंगलवार, 19 जून 2012

पति पर सट्टा

घर की लड़की
बहन या पुत्री
के लिये पति
एक सर्वश्रेष्ठ
ही ढूँढा जाता है
ठोक बजा कर
उसे हर कोण से
देखा परखा जाता है
जीवन संगिनी बना
कर फिर उसे प्यार
से सहेज कर भेजा
ससुराल को जाता है
यहाँ पर लेकिन
पति की खोज
एक पूरा खेल
वो भी उल्टा
नजर आता है
पहले तो हर
पाँच साल में
एक पति को
अवकाश दे
दिया जाता है
अगले पति की
खोज में नया
फिर बाजार
सजाया जाता है
पहली बार
इस बार तो
गजब सुना है
पाँच सौ करोड़
का सट्टा भी
खेला जाता है
काम का है या
बेकार का है
बिल्कुल भी
नहीं देखा जाता है
कभी कभी इस
जुए में जोकर
भी एक मौका
पा जाता है
इस बार महसूस
पता नहीं क्यों हो
रहा है कहीं कोई
उपर की मंजिल
खाली तो मौका
नहीं पा जाता है
मालूम सबको है
पर देखना भी है
ऎ राष्ट्र कि इस
बार तू किस
बेवकूफ को
वरमाला इनके
इशारों पर
पहनाता है ।

गुरुवार, 12 जनवरी 2012

मतदान दूर है

शतरंंज खेलना
हर किसी को
यहाँ कहाँ आता है
फिर भी कोशिश कर
वो एक बिसात
बिछाता है।
काले या सफेद नहीं
मोहरों को दोनो
ओर से चलाता है
हारना नहीं चाहता है
जीतने वाले को
अपना बताता है।
खेल देखने वालों को
कभी भी पता
नहीं चल पाता है
वो कब इधर और
कब उधर पाला
बदल चला जाता है।
लेकिन किस्मत और
उपर वाले के खेल
को कौन भांप
कभी पाता है
जब अचानक
बिसात का एक
मोहरा अपनी
चाल खुद ब खुद
चलता चला
जाता है
बहुत लम्बा
कितना भी
लम्बा खेल
खेलने वाला
क्यों न हो
अपनी ही
चाल में एक बार
कभी कभी
फंस ही जाता है।