उलूक टाइम्स: मोहरा
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गुरुवार, 31 जनवरी 2013

कलियुगी गांंधियों का कारनामा बापू तू ना घबराना


टाँग अढ़ाना 
अब छोड़ दे पूरा का पूरा आदमी अढ़ा
खुद नहीं कर सकता है अगर किसी एक को मोहरा तू बना

मोहरा
हाथी 
घोड़ा या ऊँट में से कोई भी हो सकता है
प्यादों को एक आवाज में सजा या गजबजा सकता है 

प्यादे
नये 
जमाने की हवा खाये खिलखिलाये होते हैं
समझदारी से अपनी टाँगों का बीमा भी कराये होते हैं
टाँग अढ़ाने वाले को मुँह बिल्कुल नहीं लगाते हैं
पूरा फसाने वाले पर दिलो जान से कुर्बान बातों बातों में हो जाते हैं
मौज में आते हैं
तो कम्बल 
डाल कर फोटो भी खिंचवाने में जरा भी नहींं शर्माते हैं

टाँग अढा‌ने 
वाला तो 
बेचारा सतयुग से मार खाता ही आ रहा है
राम के जमाने में तो रावण मारा गया था
कलियुग में आकर राम ही खुद अपनी टाँग अढ़ा रहा है

सबको प्यार 
से समझाया जा रहा है
अभी भी वक्त है
थोड़ी 
समझदारी खरीद या लूट कर जा ले आ
जवान बंदरों की सेना ही बस अब बना
पुराने बंदरों को घर पर ही रहना है का नुस्खा जा थमा

हनुमान जी 
की 
फोटो बंटवा छपवा बिकवा राम को पेड़ पर चढ़ा
रावण के हाथ में एक आरी दे के आ

टाँग अढ़ाना 
बन्द कर पूरा अढ़ना सीख जा
नये जमाने का गांंधी तू ही कहलायेगा सब्र कर थोड़ा रुक जा

ताली बजवाना 
जारी रख हाथों को काम में ला
टाँग का भरोसा छोड़ दे मान भी जा मत अढ़ा।

 चित्र साभार: https://xioenglish.wordpress.com/

गुरुवार, 12 जनवरी 2012

मतदान दूर है

शतरंंज खेलना
हर किसी को
यहाँ कहाँ आता है
फिर भी कोशिश कर
वो एक बिसात
बिछाता है।
काले या सफेद नहीं
मोहरों को दोनो
ओर से चलाता है
हारना नहीं चाहता है
जीतने वाले को
अपना बताता है।
खेल देखने वालों को
कभी भी पता
नहीं चल पाता है
वो कब इधर और
कब उधर पाला
बदल चला जाता है।
लेकिन किस्मत और
उपर वाले के खेल
को कौन भांप
कभी पाता है
जब अचानक
बिसात का एक
मोहरा अपनी
चाल खुद ब खुद
चलता चला
जाता है
बहुत लम्बा
कितना भी
लम्बा खेल
खेलने वाला
क्यों न हो
अपनी ही
चाल में एक बार
कभी कभी
फंस ही जाता है।